Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Nashile Padarth”, “नशीले पदार्थ Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
नशीले पदार्थ : जीवन के लिए घातक
Nashile Padarth
प्रस्तावना : मानव-जीवन बड़ा ही अमूल्य एवं कठिनता से प्राप्त हुआ माना जाता है। किसी भी प्रकार की बेकार की किल्लतों में पड़ कर इस समय ही इसका नाश-बल्कि सर्वनाश कर लेना बुद्धिमानी तो है नहीं, अन्य किसी भी प्रकार से उचित एवं ! लाभप्रद भी नहीं कहा जा सकता। होता क्या है, कई बार मनुष्य मात्र स्वाद के चक्कर में पड़ कर धीरे-धीरे कोई आदत पाल लेता है। वह आदत जुआ खेलने, सिगरेट पीने, मदिरा या अन्य किसी प्रकार का नशा करने आदि किसी भी प्रकार की हो सकती है। आरम्भ में तो यह महज एक तमाशा, एक प्रकार का स्वाद या मात्र चख कर देखने जैसा ही लगता है; पर धीरे-धीरे जब यह आदत बन जाती है, तो इसके प्रभाव से तन, मन, धन और अपने साथ-साथ घर परिवार का नाश भी करने लगती है, तब यदि होश भी आता है, तो बहुत देर हो चुकी होती है। तब इससे छुटकारा पा सकना कठिन तो होता ही है। कई बार असम्भव भी हो जाता है। नशीले पदार्थों के सेवन की आदत इसी प्रकार की घातक आदत हुआ करती है।
नशे के भिन्न रूप : नशा यों तो रोटी खाने, काम करते रहने, पढ़ने-लिखने, गप्पें हाँकने, हुज्जतबाजी करने आदि का भी हुआ करता है; पर इस प्रकार के नशों को बुरा व बहुत अधिक हानिकारक नहीं माना जाता। काम करने, पढ़ने-लिखने, खेलने या कोई कला-साधना करने के नशे तो अच्छे ही माने जाते हैं। हाँ, जो नशे मनुष्य और समाज सभी के जीवन के लिए घातक माने जाते हैं, जैसे सिगरेट-बीडी या धूम्रपान का नशा, तम्बाकू खाना, भाँग, शराब, अफीम, गाँजा, चरस, कोकीन, स्मैक और हेरोइन आदि का नशा। इन नशों को जिस क्रम से गिनाया गया है, उसी क्रम से उनका प्रभाव विषम, क्रूर और घातक भी होता जाता है। सिगरेट-बीड़ी आदि के नशे अपना प्रभाव यद्यपि धीरे-धीरे डालते हैं, इसी तरह अफीम-मदिरा भी धीरे-धीरे प्राणहारक विष से प्रभावी हुआ करते हैं; पर जीवन के अन्त में जाकर घातक ही होते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। जहाँ तक ब्राउन शुगर या स्मैक-हेरोइन आदि का प्रश्न है, इनका तो आरम्भ ही संघातक सर्वनाश की ओर तेजी से उठने वाले कदम से हुआ करता है, अनुभवों एवं परीक्षणों से यह स्पष्ट है। आजकल पान-मसाले खाने और लाटरी लगाने के नशे के भी घातक परिणाम सामने आने लगे हैं।
घातक प्रभाव : जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, सभी प्रकार के नशों का आरम्भ तो स्वादिष्ट एवं रोचक प्रतीत हुआ करता है; पर अन्त निश्चित रूप से प्राणघातक एवं सर्वस्वहारक हुआ करता है। धूम्रपान धीरे-धीरे फेफड़े तो गला ही देता है, भूख और शरीर को दुर्बल कर तरह-तरह की बीमारियों को भी जन्म देती है। श्वास-रोग तो क्या कैंसर तक होने की सम्भावनाएँ हमेशा बनी रहा करती हैं। अफीम और भाँग का नशा अधिक खाने को उकसा कर धीरे-धीरे शरीर को चूसकर, अनिद्रा, रक्तचाप, तनाव और अन्त में इन सभी के प्रभाव से जीवन की व्यर्थता और निर्जीवता का कारण बन जाया करता है। सपनों के स्वर्ग लोक में ले जाने वाले या एक ही फूक से गुम गलत कर देने वाले गाँजा, चरस, हेरोइन और स्मैक आदि व्यक्ति को और किसी भी काम का न रहने दे, इस प्रकार नशा कोई भी हो, वह तन-मन-धन, सुख-चैन और अन्त में सर्वनाश का कारण बन जाया करता है। यह स्पष्ट है।
नशाबन्दी आवश्यक : आज विशेषकर किशोरों और युवा वर्ग में बिना किसी वर्ग-भेद के सभी प्रकार के नशों का चलन निरन्तर बढ़ता जा रहा है। फलतः पीढ़ियों के नाश और नशाखोरों के नपुंसक होकर जीवन-समाज के लिए एक जीवन्त बोझ बन जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। यदि समाज को एक जीवित लाश या चलती-फिरती लाशों का विचरण स्थल, पागलखाना अथवा अस्पताल नहीं बनने देना है, तो विवेक और कठोरता से काम लेकर, सभी प्रकार के नशों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना, यहाँ तक कि उनके उत्पादक केन्द्रों को जड़-मूल से उखाड़ फेंकना परम आवश्यक है। ऐसी वस्तुएँ बेचने खरीदने वालों के लिए कठोरतम्-यहाँ तक कि मृत्युदण्ड तक का प्रावधान करना बहुत आवश्यक प्रतीत होता है। बहुत सारे देशों ने ऐसा कर भी दिया है। मनुष्य के स्वस्थ सुखी जीवन से बढ़ कर कुछ नहीं है। उसे बचाने के लिए कुछ भी करना अनुचित नहीं कहा या माना जा सकता।
उपसंहार : आज मात्र देखने, प्रतीक्षा करने या फिर केवल समझा-बुझा कर कोई काम निकालने-बनाने का युग नहीं रह गया है। मानवता के हित-साधन के लिए एकदम निष्ठुर बन कर कठोर दण्डात्मक कदम उठाने का युग है। नशे की जहालत, मृत्यु के वारण्ट या साक्षात् यमदूत के रूप से छुटकारा भी तभी संभव हो पाएगा जब कठोर बन कर संघर्ष किया जाएगा, अन्य कोई उपाय या उपचार नहीं है।