Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Manav Jeevan me Manoranjan ka Mahatva”, “मानव जीवन में मनोरंजन” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
मानव जीवन में मनोरंजन
Manav Jeevan me Manoranjan ka Mahatva
मनोरंजन, हम मनोरंजन का अर्थ इस प्रकार समझ सकते हैं कि ऐसी कोई हरकत का होना जिससे हमें अंदरूनी खुशी मिले। हम सुख का अनुभव करें! शायद । ही ऐसा कोई मनुष्य होगा जो सुखी न रहना चाहता हो। सुखी जीवन के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन और अनुकूल प्राणवायु, जल की आवश्यकता होती है। मनुष्य अपने जीवनयापन के लिए, सुख सुविधाओं की पूर्ति के लिए दिन-रात भी परिश्रम कर सकता है। वह इन सब के लिए किसी मशीन की तरह भी काम कर सकता है।
आदिकाल से ही मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए भिन्न भिन्न साधन की खोज करता आ रहा है। पहले मनुष्य मनोरंजन के लिए गीत, संगीत, नौटंकी, खेल, सर्कस आदि का सहारा लिया करता था।
साहित्य ने आरंभ से ही मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित किया है। मनुष्य कहानी, उपन्यास, नाटक, काव्य आदि पढ़ कर भी मनोरंजन की अनुभूति पा लेता है। पुस्तकें पढ़ने से मनुष्य को ज्ञान भी हासिल होता है।
आज की हकीकत देखी जाए तो आजकल के मानव के पास जब काम करने के लिए ही समय कम पड़ता है वह मनोरंजन के लिए समय कहाँ से लाएगा।
पर स्वास्थ्य की दृष्टि से मानव हो या कोई भी जीव अगर वह मनोरंजन के लिए कुछ नहीं करता है तो उसके जीवन के क्षण कम होते जाते हैं, वह तनावग्रस्त हो जाता है। उसका जीवन उसके लिए बोझ बनने लगता है। इसलिए आज के मानव को अपने जीवन के मानसिक तनाव को दूर करने के लिए मनोरंजन का सहारा लेना ही चाहिए।
आज चूंकि वैज्ञानिक युग चल रहा है आज के मानव के पास मनोरंजन के साधनों की कोई कमी नहीं है। रेडियो, टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाएँ वीडियो गेम सिनेमा। मोबाइल फोन, इंटरनेट, कंप्यूटर आदि सहज उपलब्ध हैं।
मोबाइल वह भी अगर 3जी इंटरनेट के साथ हो तो क्या कहना, सारी दुनियाँ आपकी जेब में, कब कैसे समय बीत जाता है पता ही नहीं चलता।
मनोरंजन में खेल को अत्याधिक महत्व दिया गया है। हॉकी, फटबाल, बोल्लीबाल , क्रिकेट, टेनिस आदि पुश्चिमी खेल हमारे शिक्षित वर्ग में अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि अब कोई भी खेल एकदेशीयन रहकर अंतर्राष्ट्रीय बन चुका है।
कबड्डी, कुश्ती, तैराकी, गुल्ली-डंडा आदि जो कि हमारे परंपरागत खेल हैं। हमारे गांवों में आज भी खेले जाते हैं पर हकीकत में शहर में तो मानव के रहने के लिए ही जगह नहीं है तो वह खेल के लिए जगह कहाँ से लाएगा क्योंकि अधिकांश लोग तो फ्लेट में रहते हैं जहाँ न उनकी छत होती है न जमीन।
सिनेमा के जरीए पहले के मानव अपने 3 घंटों का मनोरंजन कर लेते थे पर आज के मानव ने इसके विकल्प में डी.वी.डी. आदि का इंतजाम कर लिया है।
पहले देखा जाता था कि किसी के घर में खाना पानी हो या न हो पर एक टेलीविजन जरुर होना चाहिए ताकि वह अपनी थकान दूर कर सके। विज्ञान ने भी अपना साथ दिया और पहले केवल दूरदर्शन का राज था पर आज चैनलों की भरमार है।
पहले के मानव के पास नियम था कि शाम के समय सभी दोस्त पार्क में मिलकर टहलते थे जिससे उनका मनोरंजन तो होता ही था साथ ही विचारों का अदान प्रदान भी होता था पर आज के मानव के न तो दोस्त हैं न ही टहलने के लिए पार्क व समय। यही कारण है कि मनुष्य के विचार भी संकीर्ण होते जा रहे हैं।
आज के मानव के लिए तो सारी दुनियाँ उसके मोबाइल फोन और कंप्यूटर ही हैं। कंप्यूटर से इंटरनेट जोड़कर उसे जो भी जानकारी चाहिए वह हासिल भी कर लेता है और मनोरंजन के लिए जो भी करना है वह भी कर लेता है। वह भी इतने कम लागत में की पहले हम सोच भी नहीं सकते थे।
साहित्य पढ़ना है तो इंटरनेट, खेल है तो इंटरनेट, भविष्य जानना है तो इंटरनेट। बस इंटरनेट ही इंटरनेट।
शायद मशीनों के साथ जूझता हुआ आज का मनुष्य भी दिमाग से मशीन ही बन चुका है।