Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Mahanagariya Parivahan Vyavastha”, ”महानगरीय परिवहन-व्यवस्था” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
महानगरीय परिवहन-व्यवस्था
Mahanagariya Parivahan Vyavastha
दिल्ली हो या कलकत्ता, बम्बई हो या मद्रास-इस प्रकार के सभी महानगरों में जन-संचरण के लिए रक्तवाहनियों के समान उचित परिवहन-व्यवस्था का रहना बहुत आवश्यक माना गया है। इसके अभाव में यहाँ का जीवन कहा जा सकता है कि एक कदम ना नहीं चल सकता। एक दिन परिवहन व्यवस्था किसी कारण से न मिल पाने पर लगता जस सारा नगर, सारा वातावरण और वहाँ का सारा जीवन ठहर गया है। सरकारी, गैर- सरकारी सभी प्रकार के काम रुक गए हैं। इस प्रकार की स्थितियों से हम सहज अनुमान कर सकते हैं कि महानगरों के लिए अच्छी, उचित एवं तेज़ गति वाली परिवहन-व्यवस्था शायद ही उतनी ही आवश्यक है कि जितनी रोटी-पानी तथा साँस आदि ले सकने की व्यवस्था।
महानगरों में दैनिक आवा-जाही के लिए साइकिल से लेकर स्थानीय रेलों तक कई प्रकार की परिवहन व्यवस्था प्रायः उपलब्ध कराई जाती एवं रहा करती है। साइकिल, साइकिल-रिक्शा, तांगा-एक्का, दुपहिया स्कूटर, तिपहिया स्कूटर, कार, टैक्सी, बस और परिवहन के ये सारे साधन हरेक महानगर में आवश्यक रूप से उपलब्ध हैं। बम्बई और कलकत्ता जैसे महानगरों में अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में ट्राम-सेवा, मैट्रो सेवा भी उपलब्ध हैं। स्कूटरों पर चलने वाला तबका मध्य और निम्न या फिर निजी व्यापारिक प्रतिष्ठानों में नौकरी करने वाले लोगों का है कि जिन्हें प्रायः प्रतिष्ठानों की ओर से उनके कार्यों के लिए स्कूटर उपलब्ध कराये जाते हैं।
वे उन्हें अपने घर भी ले जा-आ सकते हैं। तिपहिया स्कूटरों का प्रयोग सामान्यतया लोग बहुत जरूरी कामों के लिए किया करते हैं। जिसे कभी स्टेशन पर, बस अड्डे पर बाहर की यात्रा के लिए पहुँचना है। स्टेशनों आदि से सामान के साथ घरों तक पहुँचना या फिर अस्पताल या किसी प्रकार की कोई अन्य आवश्यक यात्रा करनी हो। यही बात टैक्सियों के प्रयोग के लिए भी कही जा सकती है। दो से अधिक सदस्य होने पर साथ रहने के लिए प्रायः लोग टैक्सी करना उचित मानते हैं। हाँ, कभी-कभार बहुत आवश्यक होने पर रोगियों को अस्पताल लाने-ले जाने के लिए भी आम लोग टैक्सी का प्रयोग कर लिया करते हैं। सरकारी-गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में कार्यरत एक ऐसा वर्ग भी होता है कि जिसे स्थानीय स्तर की आवश्यक आवा-जाही या खरीद-फरोख्त के लिए टैक्सी पर यात्रा करने की आज्ञा रहा करती है।
कारों में यात्रा करने की सुविधा उच्च सरकारी-व्यापारी वर्ग, उनके परिवार राज नेताओं, मन्त्रियों आदि को सहज ही उपलब्ध है। सरकारी अफसर, मंत्री, आदि प्रायः सरकारी कारों का प्रयोग किया करते हैं जबकि व्यापारी वर्ग निजी कारों का। इनके अतिरिक्त भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरों, काले धन्धे करने वाले तस्करों, डकैतों, अपराधी मनोवृत्तियों वालों को भी अपनी, पराई या उड़ाई गई कारों में यातायात करते देखा जा सकता है। देहाती किस्म के कुछ लोग अपने कार्य स्थलों तक पहुँचने के लिए साइकिलों का प्रयोग करते दिखाई दे जाते हैं। इसी प्रकार कुछ निम्न वर्ग के लोग जो छोटी-छोटी नौकरियाँ या काम-धन्धे किया करते हैं, वे भी अपनी साइकिल का प्रयोग किया करते हैं। सामान्य शहरी भी कई बार आस-पास जाने, आटा या अन्य कुछ भारी सामान लाने के लिए साइकिल का प्रयोग कर लिया करते हैं। रिक्शा का प्रयोग भी सामान्य तंग गली मुहल्ले या आस-पास कहीं आने-जाने के लिए स्थानीय स्तर पर ही किया जाता है। बाकी रह जाती है बस-ट्राम सेवा और लोकल रेलें । महानगरों के उपनगरों या आस-पास स्थित देहातों, गाँव-कस्बों से प्रतिदिन काम-काज के लिए महानगर आदि में आने वाले लोग प्रायः लोकल ट्रेनों में ही आवाजाही करते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रायः पास आदि की सुविधा प्राप्त कर रखी होती है। कभी-कभार आने वाले टिकट, खरीद कर आते जाते है।
महानगरों में जहाँ तक बस-ट्रॉम सेवा का प्रश्न है; मध्य, निम्न मध्य और निम्न वर्ग के प्रायः सभी दैनिक यात्री, सामान्य काम-धन्धा करने वाले, सरकारी दफ्तरों के बाबू, कल-कारखानों और फैक्टरियों में काम करने वाले सभी प्रकार और स्तर के कामगार, बाबू आदि दूकानों पर जाने-आने दुकानदार, स्कूल-कॉलेज आने-जाने वाले छात्र आदि आवाजाही के लिए मुख्य रूप से बस-ट्राम-सेवा का उपयोग ही किया करते हैं। यही कारण है कि सुबह-शाम दफ्तर आदि शुरू तथा छुट्टी होने के समय इनमें अत्यधिक भीड करती है। बच्चों, वृद्धा, महिलाओं के लिए ऐसे समय में यात्रा कर पाना बड़े ही साहस का और कठिन कार्य हुआ करता है। फिर भी सभी की विवशता रहती है अतः कष्ट उठा कर भी साहस करना ही पड़ता है।
महानगरों में आज कल बस-सेवा सरकारी और निजी दोनों प्रकार की उपलब्ध है। फिर भी जनसंख्या और उसकी आवश्यकता की दृष्टि से उसे यद्यपि नहीं कहा जा सकता। फिर जब से पैट्रोल महंगा हो जाने के कारण स्कूटर पर यात्रा करने वालों ने भी बस-यात्रा को अपना लिया है, तब से तो बसों-ट्रामों में भीड़-भाड का आलम और भी भारी एवं बोझिल होने लगा है। वास्तविकता तो यह है कि महानगरों का फैलाव जिस से हो रहा है, वहाँ की जनसंख्या और भीड़ जिस अनुपात से वद्धि पा रही है उस अनुपात से परिवहन सेवाओं का विस्तार नहीं हो पा रहा है। फिर सरकारी बसों को खाली दौड़ने और निजी बसों को दम घुटने की सीमा तक ठसाठस भरकर चलने की दष्टप्रवत्ति एवं दुर्व्यवस्था ने भी महानगरीय परिवहन व्यवस्था का दम घोटू एवं अस्त-व्यस्त हर प्रकार से प्रदूषण फैलाने और आम आदमी का शोषण करने वाली बना रखा है। इसमें सुधार लाने की आवश्यकता तो आरम्भ से ही रही है, वक्त आ गया है कि आम आदमी के हित में इस व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन और सुधार लाया जाए। तभी वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सकता है।