Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Jativad Samasya evm Samadhan”, “जातिवाद : समस्या एवं समाधान” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
जातिवाद : समस्या एवं समाधान
Jativad Samasya evm Samadhan
यह एक ऐसी समस्या है जिसे मानव ने अपने लिए स्वयं बनाई है, किसी के लिए यह लाभप्रद रही तो किसी के लिए नुकसानदायक।
भगवान बुद्ध ने तो जातिवाद के लिए कहा है कि – मनुष्य जन्म से नहीं वरन अपने कर्म से ब्राह्मण या शूद्र होता है।
भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद् गीता में कहा है कि मनुष्य को चार वर्ण में बांटा जा सकता है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। गुण एवं कर्म के आधार पर हम उनका विभाजन कर सकते हैं।
प्राचीन समय में यह प्रथा थी कि ब्राह्मण का बेटा ही ब्राह्मण का कार्य करेगा, शूद्र ही शूद्र वाले कार्य करेंगे, वैश्य ही व्यापार करेंगे। इस तरह से होता चला आ रहा था। ऐसा नहीं कि वे बदलाव नहीं चाहते थे पर कुछ कट्टर जातिवादियों ने ऐसा कर रखा था। अगर किसी शूद्र के पुत्र को व्यापार या युद्ध में रूचि भी होती तो वह न तो वैश्य बन सकता था और न ही क्षत्रिय, जाति के बाहर भी विवाह करने पर प्रतिबंध था। इस कारण धीरे-धीरे समाज में भाई-चारे का संबंध खत्म होता चला जा रहा था कई जातिवाद झगड़े भी होने लगे थे। मध्यकालीन भारत बुरी तरह से इस रोग से प्रभावित हो चुका था।
जातिवाद किसी भी देश के विकास के लिए सबसे बड़ा बाधक माना जाता है। इससे राष्ट्रीय क्षमता का ह्रास भी होता है। देश अंतराष्ट्रीय स्पद्धाओं पर अपना ध्यान नहीं दे सकता और इसकारण वह पिछड़ जाता है। सामाजिक एकता के स्थान पर जातिवाद समाज को खण्ड-खण्ड में विभाजित कर देता है। देश की आजादी खतरे में पड़ जाती है।
अगर हम अपने भारत को सुखी और शक्तिशाली राष्ट्र बनाना चाहते हैं तो हमें जातिवाद का समूल विनाश करना आवश्यक है। इसके लिए हमें संचार माध्यम जैसे सिनेमा, टी.वी., रेडियो, इंटरनेट आदि के द्वारा जाति विरोधी प्रचार करना आवश्यक है। साथ ही अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिससे दो परिवार आपस में भाई-चाहे को निभाते हुए प्यार से रहें। सरकार द्वारा भी अस्पृश्यता एवं छूआछूत को राष्ट्रीय अपराध घोषित कर देना चाहिए और इसका विरोधव खिलाफत करने वाले को कठिन से कठिन दंड देना चाहिए। मगर आजकल की राजनीति ही जातिवाद पर निर्भर है।
अगर हम भारत की वर्तमान की स्थिति देखें तो हम यह कहने से परहेज नहीं कर सकते कि जातिवाद का विनाश हमारे देश में कभी हो पाएगा।
भारत में अभी भी कई ऐसे मंदिर हैं जहाँ हरिजनों का प्रवेश वर्जित है। बहुत से गांव ऐसे भी हैं जहाँ निम्न जाति वाले लोगों की छाया तक से उच्च जाति वाले लोग परहेज करते हैं।
राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद, महात्मा गांधी, विनोबा भावे आदि ने जो जातिवाद के रोकथाम हेतु मार्ग हमें बताया है अगर हम उसपर चलेंगे तो हमें जल्द ही लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
चुनावों के समय जो नेता जातिवाद को लेकर प्रचार करे उस नेता का हमें बहिष्कार करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचे व विचारे तभी जाकर कहीं हमें इससे निजात मिल सकती है।
पं. जवाहर लाल नेहरू जी ने इस विषय पर कुछ इस तरह से बोला था कि – भारत में जाति-पांति प्राचीन काल में चाहे कितनी भी उपयोगी क्यों रही हो, परन्तु इस समय सब प्रकार की उन्नति के मार्ग में भारी बाधा और रुकावट बन रही है। हमें इसे जड़ से उखाड़कर अपनी सामाजिक रचना दूसरे ही ढंग से करनी चाहिए।
इस जातिवाद के समापन हेतु कई राजनीतिक दल, समाज-सुधारक, धार्मिक संस्थाएँ एवं स्वयं सेवी साथ ही सामाजिक संस्थाएँ आगे बढ़कर कार्य कर रही हैं। और उन्हें सफलता भी मिल रही है, हमें भी उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए क्योंकि यह केवल उनकी या हमारी समस्या नहीं अपितु पूरे देश की समस्या है क्यों कि अगर देश निर्धन होगा तो उस देश की जनता भी निर्धन ही रहेगी और देश अगर समृद्ध होगा तो उस देश की जनता को समृद्ध बनने से कोई रोके भी नहीं सकता।
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