Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Jansankhya Samasya aur Samadhan”, “जनसंख्या : समस्या और समाधान” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
जनसंख्या : समस्या और समाधान
Jansankhya Samasya aur Samadhan
जनसंख्या, वह भी बढ़ती हुई जनसंख्या किसी भी राष्ट्र के लिए एक भयावह समस्या है। भारत ही नहीं समस्त विश्व इसकी पीड़ा सह रहा है। स्वाधीनता प्राप्त भारत की हाल ही में की गई जनसंख्या के आंकड़ों से पता चला है कि वह अरबों को पार कर चुका है। सरकार देश की समृद्धि के लिए किए गए श्रेष्ठ कार्यों में भी जनसंख्या का निरंतर बढ़ता जाना एक समस्या बन चुकी है। माना जाता है कि भारत में हर क्षण 10-15 का जन्म होता हैं वहीं 5-9 की मृत्यु। इस हिसाब से यह अंतर जो. बाद में एक विराट रूप ले रहा है यही जनसंख्या की समस्या है।
इसके समाधान के लिए सरकार ने परिवार नियोजन का आह्वान किया है पर अशिक्षा के चलते जो उम्मीद की जा रही थी, वह उस सीमा तक नहीं पहुँच सका।
जैसा कि हम जानते हैं कि सृष्टि के आरंभ में जनसंख्या बहुत कम थी, समाज की समृद्धि व सुरक्षा व सभ्यता के विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि आवश्यक थी। उस समय वंश वृद्धि एक पवित्र कार्य माना जाता था। वेदों में दस पुत्रों की कामना की गई थी। कौरवके तो सौ भाई थे। जो कि उस समय के लिए आवश्यक व उपयोगी भी थीं। पर आज… ।
किसी भी देश की जनसंख्या ही उसकी शक्ति का आधार होती है परंतु एक हद तक परन्तु वही अगर अनियंत्रित गति से बढ़ते जाए तो वही जनसंख्या उस देश के लिए बोझ बन जाती है। किसी भी देश के लिए सीमा से अधिक आबादी गौरवं की बात नहीं बल्कि एक अभिशाप ही कही जाएगी।
भारत इस समय आबादी की दृष्टि से देखा जाए तो दुनिया का सबसे बड़ा देश
भारत में जनसंख्या वृद्धि के अनेक दुष्परिणाम सामने आए हैं जो कि देश की | प्रगति में बाधक होते हैं। जिसका प्रभाव देश के लोगों के जीवन स्तर पर भी पड़ता है। मुख्यता जिस प्रकार से जनसंख्या बढ़ रही है उस स्तर से खाद्यान्नों तथा उद्योग धंधों का विस्तार संभवता नहीं बढ़ पाता जिस कारण महंगाई मुँह फाडे तैयार खड़ी होती है और अपने शिकार को बेवक्त लपक लेती है। जनसंख्या की तेजी से वृद्धि | के कारण जन साधारण की आय में कमी भी होती है। सर्वेक्षण से पता चला है कि राष्ट्रीय आय के एक वहुत बड़ा भाग जनसंख्या पर ही खर्च हो जाता है।
देश में निर्धनता, बेरोजगारी, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि समस्याओं का जन्म भी जनसंख्या में वृद्धि के कारण ही होता है। हाल ही में सरकार ने एक रिपोर्ट सार्वजनिक की है जिसमें लिखा है कि भारत में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है। जिससे चोरी, डाके, अपहरण जैसे अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही है।
भारत में तो विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। जहाँ देश में कुछ धार्मिक पुरुष हिन्दुओं की संख्या न घट जाए इस डर से परिवार नियोजन का विरोध करते हैं तो वहीं पर ईसाई और इस्लाम धर्म भी अपने अपने धार्मिक दृष्टिकोण से इसका विरोध करते हैं पर ऐसी देश विरोधी भावनाओं को राष्ट्र के उत्थान के लिए नष्ट करना नितांत आवश्यक है।
सरकार द्वारा चलाए जा रहे परिवार नियोजन के वर्तमान कार्यक्रमों में कुछ परिवर्तन अपेक्षित हैं। देश में आज भी निर्धन वर्ग जनसंख्या वृद्धि में गौरव का अनुभव करता है। केवल देश का शिक्षित समुदाय पूर्वाग्रह को छोड़कर नियोजित परिवार में विश्वास करता है। अगर सरकार इस ओर अपना ध्यान दे तो शायद कुछ हो सकता है।
सरकार को अपना नारा भी बदलना होगा। सरकार ने पहले कहा था- हम दो हमारे दो। पर आज के समय को ध्यान में रखते हुए हमें कहना होगा – हम दो हमारा एक चाहे ही और शी, बस और नहीं जी। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि देश के विकास में बहुत बड़ी बाधा सिद्ध हो सकती है। इसका समाधान परिवार नियोजन तो है हि पर सरकार इस तथ्य पर भी अनिवार्य रूप से ध्यान दे कि वह बेरोजगारों को रोजगार प्रदान कर सके ताकि वह नवयुवक पथभ्रष्ट न हों।
Not bad