Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Jaisa Boge, Waisa Katoge ” , “जैसा बोओगे, वैसा काटोगे” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
जैसा बोओगे, वैसा काटोगे
Jaisa Boge, Waisa Katoge
कहते हैं न ‘बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय’। यह प्रकृति का नियम है, विज्ञान द्वारा प्रमाणित तथ्य है कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया तद्नुरूप ही होती है। भगवद् गीता’ का तो आधार ही ‘कर्म-सिद्धांत है।’ हम जैसे कर्म करेंगे वैसा ही फल पाएगा। जिसे लोग सौभाग्य या ‘भगवद्-कृपा’ कहते हैं, वास्तव में वह भी हमारे सुकर्मों का ही सुफल होता है। जिस प्रकार बीज बति वृक्ष नहीं बन जाता उसी प्रकार हमारे दुष्कर्मों या सुकर्मों का फल भी कभी-कभी तुरंत नहीं मिलता। अपनी असफलता के कारणा की यदि गहराई से निरपेक्ष होकर जाँच-परख करें तो पाएंगे कि कमी हमारे ही प्रयत्नों में रही होती है। समय का, अवसर का सही उपयोग जितना आवश्यक है उतना ही पूरी लगन और निष्ठा से परिश्रम करना और निरंतर प्रयत्नशील रहना भी आवश्यक है। दूसरे का बुरा चाहने या करने वालों को भले ही कुछ तात्कालिक लाभ प्राप्त हो जाए, अंततः दुष्कर्म का कुफल व्यक्ति को भोगना को पडता है। लोभ या मोहवश भ्रष्ट आचरण करते समय व्यक्ति भूल जाता है कि यहाँ देर भले हो अंधेर नहीं है। ऊपर, वाले की लाठी बेआवाज होती है। कहते हैं न ‘साक्षात किम् प्रमाणम्’। अपने चारों ओर दृष्टिपात कीजिए या स्वयं अपने जीवन को देखिये। भला करने से सदा सुख-शांति का अनुभव होता है और गलती से भी कभी यदि बुरा हो जाए तो एक बेचैनी सी रहती है। इन सूक्तियों में जीवन के अनुभवों का निचोड़ है-
‘कर भला तो हो भला‘, ‘जैसी करनी, वैसी भरनी।‘