Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Ho Chi Minh” , ”हो ची मिन्ह” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
हो ची मिन्ह
Ho Chi Minh
वियतनाम : वियतनाम के राष्ट्रनायक
जन्म : 1890 मृत्यु : 1969
हो ची मिन्ह एशिया के उन अग्रणी राजनेताओं एवं देशभक्त सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने साम्राज्यवाद का सामना करके अपने देश को आजाद करा लिया और फिर इतनी सादगी के साथ अपने देश को चलाया कि उसकी मिसाल ढूंढ़ पाना मुश्किल है।
हो ची मिन्ह का जन्म वियतनाम के ने अन प्रांत में 19 मई, 1890 को हुआ था। बचपन में वह कंग नाम से पुकारे जाते थे। पर बाद में उनका नाम न्युएन तात तान रख दिया गया। उन्होंने अपना बचपन उपन्यास, शतरंज और प्रकृति के बीच गुजारा। यद्यपि वह बहुत प्रतिभाशाली थे, परंतु निर्धनता और राष्ट्रीय पराधीनता सदैव उनके आड़े आती रही। इन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों ने उन्हें और भी संघर्षशील बना दिया। वह कुछ समय तक अध्यापक भी रहे, परंतु वह कुछ और ही करना चाहते थे। इसलिए वह ‘बा’ नाम रखकर एक रसोइए के रूप में चुपचाप फ्रांस चले आए। उन दिनों वियतनाम फ्रांस की उपनिवेश था। उसके सैनिक वियतनाम की निर्धन जनता पर बहुत अत्याचार करते थे। वहां उन्होंने देखा कि फ्रांसीसी अपने देश में तो अच्छी तरह रहते हैं, पर अंग्रेजों की तरह वह भी एशिया एवं अफ्रीकी लोगों के जीवन की कोई कीमत नहीं समझते। सन् 1917 में न्युएन इंग्लैंड पहुंचे। तभी प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। तब न्युएन ‘अइ क्वोक’ के छद्म नाम से फ्रांस रवाना हो गए। वहां उनके द्वारा एक संघ की स्थापना की गई, जिसकी मांगों ने ‘वर्सेई सम्मेलन’ में तहलका मचा दिया। न्युएन ने अपने देश के लिए कितने त्याग किए, यह उस समय वियतनामी कम ही जानते थे, क्योंकि न्युएन को फ्रांसीसी आक्रांताओं के कारण ज्यादातर बाहर ही रहना पड़ता था। न्युएन को कभी-कभी भूखा रहना पड़ता था। वह पेरिस की मजदूर बस्ती में भी रहे। वहां मजदूरी भी की, अखबार भी बेचा और विदेशी जेलों की यूँत्रणा भी झेली। एक पत्रकार के रूप में न्युएन ने कई समाचारपत्रों में वियतनाम की समस्याओं पर प्रकाश डाला तथा ‘दि पैरिया’ का संपादन भी किया। ‘फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों के अपराध’ तथा ‘बाम्बडेगन’ (नाटक) उनकी लिखी पुस्तक हैं। ‘बाम्बड़ेगन’ को बाद में गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए न्यान (अब हो ची मिन्हा ने कई संगठन बनाए, जिनके सघर्ष ने एक दिन फ्रांसीसियों को वियतनाम छोडने के लिए विवश कर दिया। इनमे लीग ऑफ़ कोलोनियन कन्ट्रीज, लीग ऑफ़ आप्रेस्ड पीपल इन एशिया’ तथा ‘वियत मिन्ह’ के नाम उल्लेखनीय हैं। फ्रांस की जागरूक सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बनने वाले हो ची मिन्ह पहले। वियतनामी थे। सन् 1941 में पुनः उनके वियतनाम पहुंचते ही वियतनामी स्वतंत्रता आंदोलन का एक नया दौर प्रारंभ हो गया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, परंतु वीर वियतनामी संघर्ष करते रहे। हो के नेतृत्व में वियत मिन्ह ने स्वतंत्र वियतनाम को दुनिया के नक्शे पर अंकित कर दिया।
2 सितंबर, 1945 को राजधानी हनोई में 5 लाख लोगों के बीच डॉ. हो ची मिन्ह वियतनामी जनवादी गणराज्य (उत्तरी वियतनाम) के राष्ट्राध्यक्ष बने। वियतनाम के इतिहास में यह एक गौरवपूर्ण अवसर था। हो ची मिन्ह पर प्रारंभ से ही मार्क्स का काफी प्रभाव था। सन् 1951 में उन्होंने मार्क्स लेनिन के विचारों पर आधारित एक नई पार्टी वियतनाम वर्कर्स पार्टी की स्थापना की।
हो ची मिन्ह का स्वप्न अधूरा रहा। जिनेवा सम्मेलन में वियतनाम के दो टुकड़े कर दिए गए, जिनमें से एक हिस्सा (दक्षिण) अमरीका ने दबा लिया, जिसे पाने के लिए हजारों वियतनामियों ने अपनी आहुति दी थी। 3 सितंबर, 1969 को 79 वर्ष की आयु में हो ची मिन्ह दुनिया से चल बसे।
हो ची मिन्ह का त्याग महान था। भारत उन्हें बडी श्रद्धा से देखता है। फ्रांसीसी, जापानी एवं अमरीकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध उनके संघर्ष को हमेशा याद रखा जाएगा।