Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Hindi Bhasha ki Vartman Dasha”, “हिन्दी भाषा की वर्तमान दशा” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
हिन्दी भाषा की वर्तमान दशा
Hindi Bhasha ki Vartman Dasha
हिन्दी पढ़ना मेरा सौभाग्य है, मेरी विवशता कतई नहीं है। मुझे अपनी भाषा हिंदी पर गर्व है। हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा है। अपनी राष्ट्रभाषा पर मेरा गर्व होना स्वाभाविक ही है। यह प्रश्न मेरी अस्मिता से जुड़ा है।
कोई भी राष्ट्र तब तक स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता जब तक उसकी अपनी ही राष्ट्रभाषा न हो। राष्ट्रभाषा समूचे राष्ट्र की शक्ति का स्त्रोत होती है। राष्ट्रभाषा निज भाषा होती है। राष्ट्रभाषा एक स्नेह सूत्र है जिसमें देश के लाखों-करोड़ों लोग धर्म तथा जाति के बंधनों से मुक्त होकर बँधे होते हैं। राष्ट्रभाषा के द्वारा ही किसी देश की उन्नति संभव है। यह देश की एकता का सूत्र है। देश के जीवन-मरण का प्रश्न भाषा पर निर्भर है। लोगों को प्रांतीयता, धर्म तथा भाषा की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के लिए हिंदी के समर्थन में फैसला करना होगा। देश की जनता को सोचना होगा कि फ्रांस, रूस, जापान, चीन, जर्मनी, अमेरिका सभी विकसित तथा समृद्ध देश सारे राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तथा वैज्ञानिक क्रिया-कलाप अपनी-अपनी भाषाओं में ही कर रहे हैं। राष्ट्र भाषा हिंदी ही समस्त देश को एक सूत्र में बाँध कर राष्ट्र को नव निर्माण तथा उत्थान मार्ग पर अग्रसर करने में भागीदार बनेगी। सभी देशों के नेता अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में अपनी मातृभाषा में बात करते हैं परंतु हमारे नेता विदेशी भाषा बोलने में वर्ग महसूस करते हैं।
स्वतंत्रता मिलने पर संविधान-सभा ने हिंदी को एक मत से राष्ट्रभाषा स्वीकार किया-‘‘संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।’’ साथ ही सोलह प्रादेशिक भाषाओं को भी मान्यता दी गई। हिंदी भाषा को इसका पूर्ण स्थान प्रदान करने हेतु पंद्रह वर्ष का समय दिया गया ताकि सभी राजनेता, राजकीय अधिकारी तथा कर्मचारी हिंदी सीख सकें। सरकार ने इस दिशा में कार्य भी प्रारंभ किया तथा हिंदी शिक्षण की सुविधाएँ भी दीं, परंतु भारतीय राजनीति तथा सरकार के बड़े पदों पर उन लोगों का वर्चस्व था जिनकी जड़ें विदेशों में थी, जिन्हंे हिन्दी में कार्य करना कठिन लगता था। राजनैतिक नेता भी अपना-अपना दाँव खेलने लगे। लोग प्रांतीय तथा भाषाई संकीर्णता की दल-दल में फँसने लगे। दक्षिण भारत के लोग सोचने लगे कि हिंदी के सरकारी भाषा बनने से वे लोग सरकारी नौकरियों में पिछड़ जायेंगे तथा नीतियों में हिंदी भाषियों का प्रभुत्व हो जाएगा। कुछ लोग कहने लगे कि प्रादेशिक भाषा समाप्त हो जाएगी। यही नहीं अंग्रेजी समर्थकों ने अंग्रेजी के उत्कृष्ट साहित्य, राज्य-कार्य मंें सरल तथा वैज्ञानिक शब्दावली की दुहाई दी। हिंदी के विरूद्ध प्रदर्शन हुए, दंगे हुए तथा सरकार ने किसी भी राज्य पर हिंदी न लादने का वचन दिया, परंतु समस्या का समाधान न हुआ, भाषाई प्रांतों की माँगें उभरने लगीं तथा भाषाई प्रांत बनने भी लगे।
भारत एक बहुभाषी देश है। भारत में अनेक धर्मावलंबी निवास करते हैं। अनेक भाषाएँ तथा बोलियाँ बोली जाती हैं। भारतवासियांे के लिए आवश्यक है कि उनकी संतानें अपनी मातृभाषा सीखें, राष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप मंे हिंदी सीखें तथा अंतर्राष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप मंे अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित करेें। तभी भारत के भावी नागरिक अपनी प्रादेशिक संस्कृति, राष्ट्रीय विरासत तथा विश्व के साथ सामंजस्य तथा समन्वय स्थापित कर सकेंगे।
भारत के सभी नागरिकों को चाहे वे किसी क्षेत्र के निवासी हों, किसी धर्म के उपासक हों अथवा किसी भी भाषा के बोलने वाले हों एक बात खुले मस्तिष्क से समझनी होगी कि निज भाषा की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है। राष्ट्र तो किसी भी क्रांति की लहर से स्वतंत्र हो सकते हैं परंतु भाषा के पराधीन होने पर उसकी मुक्ति कठिन होती है। उदाहरण हम भारतीय हैं जो आज साठ वर्ष की स्वाधीनता के पश्चात् भी अपनी भाषा को अंग्रेजी दासता से मुक्त नहीं करा पाए। वे लोग जो अंग्रेजी को तो अपना समझते हैं और हिंदी को इसलिए पराया मानते हैं, कि वह उत्तर भारत में बोली जाती हैं, वे देश को विनाश, भटकाव तथा अलगाववादी तत्त्वों के हाथ का खिलौना बना रहे हैं। उनकी आत्मा मर गई है। वे जो ंिहंदी को तुच्छ तथा अंग्रजी साहित्य को विशाल मानते हैं उन्हें हिन्दी साहित्य के विशाल भंडार का ज्ञान नहीं है।
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