Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Friedrich Nietzsche” , ”नीत्शे” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
नीत्शे
Friedrich Nietzsche
जर्मनी : जिनके दर्शन से फासीवाद जन्मा
जन्म : 1844 मृत्यु : 1900
नीत्शे के विचारों के आधार पर ही फासीवाद का जन्म हुआ था। फ्रेडरिख नीत्शे का जन्म सन् 1844 में जर्मन राज्य सैक्सनी के रोकेन शहर में हुआ था। वह एक पादरी के पत्र थे। उनकी उच्च शिक्षा बॉन एवं लिपजिग विश्वविद्यालय में हुई। बिस्मार्क के समय वह स्विटजरलैंड जाकर वहां बेसेल विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। सन् 1870 में फ्रांस एवं प्रशा के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ गया। उसमें नीत्शे ने भी भाग लिया, मगर सैनिक के रूप में नहीं, वरन सेवार्थी के रूप में।
युद्ध के बाद नीत्शे में दर्शन के साथ-साथ संगीत के प्रति भी रूझान बढ़ने लगा। इस बीच उनकी मित्रता विश्व प्रसिद्ध संगीतज्ञ रिचर्ड वाग्नेर से हो गई। बाद में उन्हें शोपेनहावर आदि के विचारों ने प्रभावित किया। सन् 1879 से नीत्शे ने नौकरी छोड़ दी और वह इटली तथा स्विट्जरलैंड में अपना समय गुजारने लगे। तब तक वह काफी ज्यादा एकांतप्रिय हो गए थे। उनके अंतिम ग्यारह वर्ष विक्षिप्त के रूप में गुजरे और इसी अवस्था में वह सन् 1900 में चल बसे।
नीत्शे के दर्शन ने विश्व के अनेक विचारकों, लेखकों तथा राजनीतिज्ञों को प्रभावित किया है। कुछ विद्वान नीत्शे को उग्र विचारक मानते हैं, क्योंकि नीत्शे ने जिस विषय को भी छुआ, उसके प्रति उनका नजरिया स्पष्ट एवं प्रखर ही रहा। ‘जरथुस्ट ने कहा’ उनकी प्रसिद्ध रचना है। अन्य ग्रंथों में ‘ह्यूमन आल-टू-ट्यूमन’, ‘जॉयफल विसडम’, ‘दस स्पोक जरथुष्ट्र’, ‘बियोंड गुड एण्ड इविल’, ‘द एंटी क्राइस्ट’, ‘जीनेलॉजी आफ मोरल्ज’ आदि उल्लेखनीय हैं। नीत्शे युद्ध के विचार के समर्थक थे। उनकी मान्यता थी कि युद्ध से साहस एवं महत्त्वाकांक्षा को प्रोत्साहन मिलता है। बिना युद्ध के मनष्य निर्बल तथा विलासी हो जाता है। पतन की ओर जाते राष्ट्र का कल्याण युद्ध से ही संभव है।
नीत्शे ने संसार में दो प्रकार के व्यक्ति बताए हैं: (1) जनसामान्य-यह वर्ग धर्मभीरू तथा साधारण मनोवृत्ति का होता है, (2) महामानव – इनमें शक्ति तथा महत्त्वाकांक्षाएं होती हैं। ये लोग ही शासन् करते हैं। नीलो ईसाई धर्म के आलोचक थे। उन्होंने इसे संतोष, क्षमा, दयाकारण ‘दासता का धर्म ‘ माना है। उनके अनुसार “मानव तभी महान कहा जाएगा जब वह एक पुल बने, मंजिल नहीं। वही मानव प्यार करने योग्य है, जो उसे नीचे नहीं, ऊपर ले जाता है।”