Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Dahej Pratha ek Abhishap”, “दहेज प्रथा एक अभिशाप” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
दहेज प्रथा एक अभिशाप
Dahej Pratha ek Abhishap
प्रस्तावना : प्राचीन काल में पूँजीपति घरानो से दहेज प्रथा का प्रचलन हुआ था। हमारे सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ ऋग्वेद में तथा साथ ही अथर्ववेद में भी अनेक स्थानों पर दहेज के सम्बन्ध में संकेत मिलते हैं। सीना, सुभद्रा, द्रोपदी एवम् उत्तरा के विवाह में भी दहेज दिया गया था। राजा-महाराजाओं और ऊँचे कुलों से शुरू हाने वाली ये दहेज-प्रथा की समस्या आजकल निम्न तथा मध्यम वर्ग के घरानों में बड़ी तेजी से अपना साम्राज्य स्थापित कर इन्हें पीड़ित कर रही है। अब हम दहेज प्रथा की समस्या को अच्छी तरह से समझने के लिए दहेज का अर्थ- परिभाषा, दहेज की बुराई, दहेज प्रथा के कारण तथा दहेज-प्रथा को समाप्त करने के सुझाव प्रस्तुत करेंगे।
दहेज का अर्थ : कुछ विद्वान् दहेज का तात्पर्य उस धन से समझते हैं जो विवाह के समय किसी भी पक्ष की ओर से दिया जाता है। वास्तव में दहेज तो केवल उसी धन को कहा जाता है जो कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को प्रदान किया जाता है। वर पक्ष की ओर से कन्या पक्ष को दहेज तो मुस्लिम विवाह पद्धति में प्रदान किया जाता है, जो, ‘महर’ कहलाता है। उनके यहाँ दहेज प्रथा नहीं अपितु इसके बिल्कुल विपरीत महर-प्रथा का प्रचलन है। हिन्दुओं में प्रदान किए जाने वाले ‘दहेज’ को ‘वर मुल्य’ कहते हैं। प्रोफसर रवीन्द्र मुकर्जी जैसे कुछ विद्वान् ‘दहेज’ और ‘वर मूल्य’ में अन्तर मानते हैं, उनके विचार से “दहेज वह धन अथवा उपहार है जिसे लड़की के माता-पिता विवाह के उपलक्ष्य में अपनी इच्छा से वर को देते हैं। वर-मूल्य तथा प्रथा वह निश्चित धन या भेंट है जो कि विवाह से पूर्व वर पक्ष निश्चित कर लेता है और जिसे विवाह से पूर्व अथवा विवाह तक चुका देना होता है। परन्तु रवीन्द्र मुकर्जी का दहेज और वर-मूल्य में अन्तर बताना कुछ उचित नहीं प्रतीत होता । कहने का आशय यह है कि दहेज और वर मुल्य एक ही वस्तु है। हाँ, यह बात अवश्य है। कि कुछ लोग विवाह के पूर्व ही निश्चित धन राशि तय करते हैं और कुछ लोग कन्या पक्ष पर ही छोड़ देते हैं। दहेज में प्राप्त होने वाले वस्त्रों, गहनों, अन्य वस्तुओं एवं नकदी की कितनी सीमा होनी चाहिए इसके सम्बन्ध में समाज की ओर से कोई प्रतिबन्ध नहीं है। परन्तु भारतीय लोकसभा में पारित राज्य-सभा द्वारा स्वीकृत तथा राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित दहेज निषेध विधेयक के अनुसार यह मूल्य 2000 रुपये से अधिक न होना चाहिए। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दहेज का अर्थ उस धन, सामग्री, सम्पत्ति आदि से है। जो विवाह में कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को प्रदान की जाती है।
दहेज की परिभाषा : दहेज क्या है ? इसको विभिन्न विद्वानों ने अपने शब्दों में सीमाबद्ध कर दहेज की इस प्रकार परिभाषाएँ की।
- इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, “दहेज वह सम्पत्ति है जो एक स्त्री विवाह के समय अपने साथ लाती है अथवा उसे दिया जाता है।”
- मैक्स रेडिन के मतानुसार, “साधारणत: दहेज वह सम्पत्ति है जो एक व्यक्ति विवाह के समय अपनी पत्नी या उसके परिवार वालों से प्राप्त करता है।”
- वेबस्टर के शब्दकोश के अनुसार, “दहेज वह धन, वस्तुएँ अथवा सम्पत्ति है जो एक स्त्री अपने विवाह में पति के लिए लाती हैं।
दहेज प्रथा के दोष : राजा-महाराजाओं द्वारा प्रचलित इस दहेज प्रथा ने धीरे-धीरे वर्तमान समय में कटु रूप धारण कर लिया है। आज यह समाज के लिए बड़ी विषैली बन गई है। आज दहेज प्रथा समाज के लिए भयंकर अभिशाप है। यह वह काला नाग है जो प्रत्येक को डसने के लिए अग्रसर हो रहा है। यह दहेज प्रथा प्रगति की शत्रु और समाज के लिए कलंक स्वरूप है। इस दहेज प्रथा ने न जाने कितने घर बर्बाद कर दिए, कितनों को भूखमरी की भट्ठी में झोंक दिया, कितनी कुमारियों की माँगों को सिन्दूर-सुख सो वंचित कर दिया और कितनों को घुट-घुटकर मरने के लिए मजबूर कर दिया।
इस दहेज प्रथा ने समाज में अनेक बुराइयों को जन्म दिया है।
(1) अनैतिकता: आज बहुत-सी लडकियों के विवाह विलम्ब । से होते हैं, कोई तो धनाभाव की कमी में नहीं कर पाते हैं। ऐसी । स्थिति में जवान लड़कियाँ काम प्रवृत्ति की तृप्ति के लिए अनेक मार्ग ढूंढ लेती है। इस प्रकार दहेज प्रथा के कारण समाज में अनैतिकता फैलती है।
(2) आत्महत्या: पड़ोसियों के ताने सुनकर कभी-कभी तो माता-पिता और कभी-कभी अविवाहित लड़कियाँ स्वयं अपने दु:खी माता-पिता को भार हल्का करने के लिए, सदैव के लिए शान्ति एवं विश्राम-प्रदायिनी वस्तुओं का सेवन कर या फाँसी के झूले अथवा रेल की पटरी का आश्रय लेकर चिर-निद्रा में लीन हो जाती हैं।
(3) कन्या वध तथा लड़कियों का भगाया जाना: मध्ययुग में, परिवार में लड़की का पैदा होना अभिशाप समझा जाने लगा । यहाँ तक कि उस युग में राजस्थान जैसे प्रदेश-में नवजात कन्याओं की हत्या कर दी जाती थी इसके अतिरिक्त भारत में स्वयं जन-जाति एवं अनुसूचित जैसी पिछड़ी जातियों के लोग पैसा लेकर लड़की बेचते हैं। कुछ माता-पिता पैसे के मोह में अपनी विवाहित लड़की को अन्यत्र भगा देते हैं।
(4) पारिवारिक संघर्ष: धनाभाव और लालची कुत्ते की सी नियत के कारण प्रायः लोग विवाह में मिले हए दहेज से प सन्तष्ट नहीं होते हैं। सास और ननदं ताना मारकर अपना कोप वधू पर प्रकट करती हैं। इससे घर में गाली-गलौज से पूर्ण संघर्षमय वातावरण बन जाता है।
(5) निम्न जीवन स्तर: आज के अधिकांश अल्पभाषी व्यक्ति अपने छोटे बच्चों की पढ़ाई रोक कर तथा अपना पेट काटकर उल्टा-सीधा पहन कर दहेज के लिए धन एकत्रित करने के मोह में अपना जीवन-स्तर ही बिगाड़ लेते हैं।
(6) बाल-विवाह: आयु बढ़ने के साथ ही साथ लड़के की शिक्षा भी बढ़ती जाती है और इसी के साथ उसकी कीमत (वर मूल्य) भी बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में लोग अधिक वर मूल्य (दहेज) से बचने के लिए छोटी अवस्था में ही अपनी कन्याओं का पाणिग्रहण कर देते हैं।
(7) बेमेल विवाह: दहेज प्रथा के कारण कभी-कभी 115 वर्ष तक के व्यक्ति 16 वर्ष की कन्या के साथ शादी करने में समर्थ हो जाते हैं। इस प्रकार की घटनाएँ कभी-कभी समाचारपत्रों में पढ़ने या स्वयं आसपास सुनने को मिल जाती हैं।
(8) लड़कियों का कुँवारी रह जाना: धनाभाव के कारण कुछ लोग आजन्म अपनी कन्याओं का पाणिग्रहण ही नहीं कर पाते हैं।
(9) विवाह-विच्छेद: प्राय: जब वर पक्ष के लोगों को विवाह से पहले या विवाह के मध्य में यह पता लगता है कि कम धन मिलने की सम्भावना है, तो वे विवाह की बात ही समाप्त कर देते हैं। कई बार तो सुनने को मिलता है कि अमुक बरात द्वारचार के बाद बिना विवाह के ही वापस आ गई। इस प्रकार दहेज-प्रथा के कारण विवाह-विच्छेद हो जाते हैं।
(10) दुःखित वैवाहिक जीवन: दहेज कम होने पर लड़के के माता-पिता लड़की को बुरा-भला कहते हैं। इससे लड़की तो प्रति क्षण दु:खी रहती ही है, उसे देख कर फिर लड़का भी कुढ़-कुढ पर दु:खित होता है।
(11) स्त्रियों की प्रगति में बाधक: दहेज प्रथा स्त्रियों के लिए हर तरह से महान् अभिशाप सिद्ध होती है। यदि लड़की अधिक पढ़ जाये; तो उसके लिए अधिक पढे वर को ढूंढना पड़ता है और अधिक पढे वर के लिए अधिक धन चाहिए। ऐसी स्थिति में लोग अपनी लड़कियों को अधिक नहीं पढ़ाते हैं। इस प्रकार से यह दहेज प्रश्रा उनकी प्रगति में बाधक बनती है।
(12) शारीरिक एवं मानसिक रोग: लड़की को दहेज देने की। चिन्ता में लड़की के माता-पिता दिन-रात डूबे रहते हैं। अनेक प्रकार । की बीमारियाँ होने का भय रहता है। उधर लडकी यदि परिपक्वावस्था में अविवाहित रहती है, तो उसे हिस्टीरिया आदि के मानसिक रोग हो जाते हैं। इस प्रकार दहेज-प्रथा प्रत्येक दृष्टिकोण से बुरी है।
दहेज प्रथा के कारण: दहेज क्यों चलन में है ? समाज के इस घातक विष दहेज-प्रथा के अनेक कारण हैं।
(1) सामाजिक प्रथा: दहेज प्रथा समाज में अनादि काल से चली आ रही है। आज उसने समाज में अनिवार्य रूप धारण कर लिया है। अत: इस प्रथा को मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
(2) जाति-व्यवस्था: जाति व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ही जाति में अपनी कन्या का विवाह करना पड़ता है। अत: वर पक्ष जितना धन माँगता है, कन्या पक्ष उसको देने के लिए विवश हो जाता है।
(3) सामाजिक मल्य और दष्टिकोण: आधुनिक अर्थप्रधान युग में धन से ही किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की जाती है। आज वर चयन में प्रतिस्पर्धा का आधार लड़की गुण-विद्या नहीं अपितु धन ही होता है। इससे दहेज प्रथा को प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
(4) सामाजिक स्थिति प्रदर्शित करना: बहुत से लोग अपना समाज में नाम कमाने के लिए अधिक से अधिक धन प्रदान करने लगे और आज यह एक प्रथा बन गई। अब लाचार होकर अधिकाधिक धन देना ही पड़ता है; अन्यथा उनकी सामाजिक स्थिति पर पानी फिर जायेगा।
(5) बाल-विवाह: बाल-विवाह से दहेज प्रथा को पनपने में पर्याप्त सहयोग प्राप्त हुआ है। वह कैसे? असल में लड़के को लड़की के गुण, रूप, सौन्दर्य आदि से मतलब रहता है, वह धन को इतना अधिक महत्व नहीं देता है और छोटा बच्चा माता-पिता से कुछ भी नहीं कह पाता। वे धन के लोभ में अपने बच्चे का गला कटा देते हैं।
(6) अनुलोम विवाह: हिन्दू समाज में अनुलोम विवाह की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक धन खर्च कर अपनी लड़की का विवाह उच्च कुल में करना चाहता है।
7) कुरूप लड़कियों के मुआवजे के रूप में: कुरूप लड़कियों के लिए अच्छा वर तलाश करने में कठिनाई होती है। परन्तु मुआवजे के रूप में अधिक धन देकर इस समस्या का समाधान हो जाता है। धन के माध्यम से वे अच्छा वर प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।
(8) जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र: जाति एवं उपजातियों में ही विवाह सीमित होने से वरों की कमी के कारण अधिक दहेज देने के लिए लड़की के माता-पिता को बाध्य होना पड़ता है।
(9) यातायात के साधनों में उन्नति: आवागमन की सुविधा से एक जाति के लोग विश्व में सर्वत्र दूर-दूर छिटक गए हैं। अत: वरों की न्यूनता ने दहेज प्रथा को प्रोत्साहन दिया है।
(10) लड़कियों के विवाह की अनिवार्यता: आज हिन्दू समाज में लड़की का विवाह करना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर समाज कोसता है। अत: लड़की के प्रत्येक माता-पिता को ऐसा करने के लिए बाध्य होकर धन देना पड़ता है।
व्यावहारिक समाधान : इस दहेज-प्रथा जैसे विष-वृक्ष को केवल व्यावहारिक तौर पर ही समाप्त किया जा सकता है। इस प्रथा को समूल समाप्त करने के लिए व्यवहार जगत् में अपनाए जाने योग्य मेरे निम्नलिखित सुझाव हैं।
(1) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन: दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए नवयुवकों को अन्तर्जातीय विवाह करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए; क्योंकि ऐसा करने से एक तो चयन का क्षेत्र विस्तृत हो जायेगा, दूसरे यह पाणिग्रहण प्रेम पर आधारित होंगे। भला ऐसी स्थिति में संकुचित कौड़ी-पैसे वाली कृत्रिम दहेज व्यवस्था को कौन घास डालेगा? हर्ष की बात है कि केरल, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट, गुजरात और त्रिपुरा तथा पांडिचेरी जैसे राज्य अन्तर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए नकद पुरस्कार प्रदान कर रहे हैं। गुजरात सरकार ने नकद धन राशि 500 से बढ़ा कर 5000 रु० कर दी है।
(2) दहेज विरोधी प्रचार: देश के समाज सुधारकों, शिक्षा शास्त्रियों, कवियों, उपन्यासकारों, पत्रकारों और चलचित्र निर्माताओं को चाहिए कि वे सरकार को दहेज के विरुद्ध प्रचार करने में सहायता प्रदान करें। इस प्रचार से लोगों में धीरे-धीरे दहेज के प्रति घृणा हो जायेगी, जिससे यह प्रथा एक न एक दिन स्वयमेव कूच कर जाएगी
(3) स्वस्थ जनमत: दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए स्वस्थ जनमत तैयार करना चाहिए। जब देश के अधिकाधिक युवक तथा युवतियाँ दहेज लेने-देने की बात से घृणा करने लगेंगे, तो अपने आप इस रक्त चूसने वाले भयंकर दानव का नाश हो जायेगा।
(4) गाँधी जी का सुझाव: हमें नीचे गिराने वाले दहेज प्रथा की निन्दा करने वाला जोरदार लोकमत जाग्रत करना चाहिए और जो युवक इस तरह के पाप के पैसे से अपने हाथ गन्दे करें उन्हें समाज से बाहर निकाल देना चाहिए।
(5) सामाजिक शिक्षा: दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए। स्त्रियों की प्रगति अत्यावश्यक है। यदि स्त्रियाँ सुशिक्षित हो जायेंगी. तो वे धनोपार्जन के अनेक साधन स्वत: हूँढ लेंगी फिर उन्हें अपना पेट भरने के लिए पुरुष का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा। सुशिक्षित स्त्रियाँ विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर कार्य करेंगी। तथा परस्पर प्रेम के आधार पर अच्छे से अच्छे गुण-सम्पन्न वर का चयन वे स्वत: कर सकेंगी। इससे वे दहेज-प्रथा के भयंकर राक्षस को भी भगा सकेंगी।
उपसंहार : अभिशाप स्वरूप इस दहेज-प्रथा ने न जाने कितनी रमणियों की हत्या कर दी और जाने कितने घर वीरान कर दिए। आज यह समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर रूप धारण करती जा रही है। यदि इस समस्या का कोई उचित समाधान न निकला, तो यह पूर्ण समाज को निगल जायेगी। आज की आधुनिकाओं को दहेज माँगने वाले सपूतों के साथ विवाह करने में अपनी असहमति प्रकट कर देनी चाहिए। हाँ यदि वरपक्ष कुछ भी नहीं माँगता या सौदा नहीं करता. तो कन्या-पक्ष अपने मन से चाहे जो प्रदान करे वह अभिशाप नहीं वरदान सिद्ध हो सकता है। दूसरी ओर युवा वर्ग को आँख मीच कर अपने माता-पिता की दहेज प्रथा की आज्ञा पालन नहीं करनी चाहिए। पैसे के लालच में किया गया विवाह एक नीच सौदा है। बन्धुओ ! यदि आप में अल्प भी बल-बुद्धि, मानवता तथा नाड़ियों में पानी नहीं रक्त है, यदि आपने अपनी वात्सल्य गरिमा से मंडित ममतामयी माँ का पयपान किया है, तो आप इन ललनाओं के अश्रु-बिन्दुओं पर तरस खाकर इस दहेज प्रथा का खात्मा कर दें। आज हम सभी को मिलकर इस अभिशाप के विरुद्ध कदम बढ़ाने होंगे।