Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Bhrashtachar Karan aur Nivaran”, “भ्रष्टाचार कारण और निवारण” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भ्रष्टाचार कारण और निवारण
Bhrashtachar Karan aur Nivaran
भ्रष्टाचार नाम का दानव केवल भारत में नहीं अपितु संपूर्ण विश्व पर राज कर रहा है। यह अलग बात है कि कहीं इसका विरोध खुलकर होता है तो कहीं नहीं। आइए सबसे पहले हम देखें आखिर यह भ्रष्टाचार होता है क्या।
किसी व्यक्ति द्वारा अन्य किसी व्यक्ति को उसके पदका लाभ उठाते हुए बदले में दिया जाने वाला मूल्य ही भ्रष्टाचार कहलाता है। यह भेंट का ही पर्यायवाची है। बस | फर्क इतना है कि भेंट की निःस्वार्थ भाव से दी जाती है पर भ्रष्टाचार करने वालों को घूस सदैव स्वार्थ पूर्ति पर ही दी जाती है।
भ्रष्टाचार निरोध समिति, 1964 के अनुसार इसका व्यापक अर्थ कुछ इस तरह का है. एक सार्वजनिक पद या जनजीवन में उपलब्ध एक विशेष स्थिति के साथ संलग्न शक्ति तथा प्रभाव का अनुचित या स्वार्थपूर्ण प्रयोग ही भ्रष्टाचार है।
भ्रष्टाचार के मार्ग पर चलने वाले अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु लघु मार्ग को | अपना लेते हैं साथ ही जानबूझकर अपने कर्तव्यों का उल्लंघन भी कर बैठते हैं।
वर्तमान समय में भ्रष्टाचार कोई नई परंपरा नहीं रह गयी है, यह इतिहास में भी सदैव विद्यमान रही है। हम मोटे तौर पर कह सकते हैं कि जब से मानव का जन्म हुआ तभी से भ्रष्टाचार ने भी जन्म ले लिया, जाने-अनजाने हर युग में कोई न कोई भ्रष्टाचार में लिप्त हो ही जाता है।
अगर हमें विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों का उल्लेख चाहिए तो हमें आचार्य चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र पढ़नी चाहिए।
अगर हम कहें इसी भ्रष्टाचार का फायदा उठाते हुए अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाए रखा था तो यह गलत नहीं होगा।
आज अगर हम देखें तो धर्म, शिक्षा, राजनीति, कला, मनोरंजन, खेल-कूद हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार अपने पैर फैला चुका है।
आइए, हम देखें कि भ्रष्टाचार का आगमन किस मार्ग से हुआ।
जब से स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण ने जनमानस में सम्पत्ति एकत्र करने की भावना को जन्म दिया था इसी के साथ आम जनता के नैतिक मूल्यों का ह्रास होना शुरु हो गया था, इसको आगे बढ़ाने में जगह-जगह पर परमिट, लाइसेंस, कोटा, रिर्जवेशन आदि ने बड़ी भूमिका निभाई।
द्वेष को भी हम भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा सहयोगी कह सकते हैं। जल्द से जल्द अपना कार्य पूर्ण करवाने के लिए आज भ्रष्टाचार का सहारा लेना एक आम बात हो गई है।
गरीबी, बेरोज़गारी, सरकारी कार्यों का निपटारा, मूल्यों में परिवर्तन, दण्ड में ढिलापन, पूंजी संग्रह की प्रवृत्ति, अत्याधिक प्रतिस्पर्धा के युग में विकास की होड़ आदि भ्रष्टाचार के प्रमुख अंग बन चुके हैं। कालाधन तो भ्रष्टाचार की आत्मा है।
ऐसा नहीं कि सरकार भ्रष्टाचार के लिए कुछ नहीं कर रही है, वह समय-समय पर इसके लिए समितियाँ भी गठित करती है। इसके अलावा दण्ड प्रक्रिया संहिता, भारतीय दण्ड संहिता आदि का भी प्रबंध है, साथ ही भ्रष्टाचार निरोधक कानून भी लाया गया है।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए कई सुझाव भी सामने आए जैसे कि- लोगों में नैतिक गुणों, चरित्र एवं व्यावहारिक आदर्शों को उत्पन्न करना, केवल ईमानदार व्यक्तियों को ही उच्चे पद प्रदान करना, भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्तियों को कठोर से कठोर दण्ड देना, बेरोजगारी और निर्धनता को दूर करने का प्रयास करना, देश में लोकपाल संस्थाको स्थापित करना आदि |
इनसब के लिए आजकल समाजसेवी अन्ना हजारे, स्वामी रामदेव आदि कई प्रमुख व्यक्तित्व कार्यरत हैं।
आज भ्रष्टाचार एक महादानव का रूप ले चुका है, जिसकी भूख सच्चे, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों को खाकर ही शांत होती है। आज जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार बूरी तरह से फैल चुका है। पर खुशी की बात है कि आम जनता अब इसके लिए जागरुक हो चुकी है जिसका प्रमाण हमें हाल ही में हुए अन्ना हजारे जी के अनशन को जो सफलता मिली उससे पता चलता है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब रामराज्य लौट आए और सबका नारा बन जाए- अब हमें भ्रष्टाचार नहीं चाहिए, केवल शिष्टाचार ही चाहिए।