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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bharat me Dish TV ka Vistar ”, ”भारत में डिश टीवी का विस्तार” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

भारत में डिश टीवी का विस्तार

Bharat me Dish TV ka Vistar 

यदि 1980 का दशक केबल टी.वी. और स्काई टी.वी. का दशक था, तो 1990 का दशक निर्विवाद रूप से स्काई टी.वी. (सेटेलाइट प्रसारण) का दशक होगा.पिछले 10 वर्षों में संसार में टेलीविजन प्रसारण में अनेक प्रौद्योगिकी परिवर्तन हुए हैं। केबल टी.वी. और स्काई टी.वी. और विशेषतया दोनों के संश्लेषण से उपलब्ध चैनलों में वृद्धि हो गई है। जो लोग केबल सिस्टम से जुड़े हुए हैं – चाहे वे अमेरिका में, ब्रिटेन में, स्वीडन या भारत में या विश्व में कहीं भी हों – उनके लिए सेटेलाइट प्रसारण ने मनोरंजन की ऐसी नई सुविधाएं प्रदान कर दी हैं, जिनकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी।

किन्तु नए संचार साधनों के निहितार्थों के बारे में उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के अलावा उनके पीछे छिपी उलझनपूर्ण स्थिति को सामान्य कहकर छोड़ा नहीं जा सकता। भारतीय दर्शकों के लिए स्टार टी.वी. और सी. एन. एन. जानकारी की एक नई विधा का प्रतीक है: यह दूरदर्शन द्वारा प्रसारित रुचिविहीन कार्यक्रमों की तुलना में स्वागत योग्य है। लेकिन जापान से मिस्र तक और साइबेरिया से इण्डोनेशिया तक 40 से अधिक देशों में प्रसारण करने वाला स्टार टी.वी. इस कारोबार में अकेला नहीं है: इसके अलावा और भी अनेक सेटेलाइट हैं, जैसे नार्डसेट (स्कैन्डीनेविया), लक्ससेट (लक्समबर्ग), सारिट (इटली), यूनीसेट और अन्य बहुत से, जो अन्तरिक्ष युग प्रसारण के एक वृहत परिवार के सदस्य हैं। लेकिन सेटेलाइट टी.वी. अपने काम को कैसे कर रहा है?

इन सबका आधार सेटेलाइट है। सेटेलाइट धरती के स्टेशनों से संकेत (सिगनल) ग्रहण करता है और उसके बाद उसका प्रसारण अपेक्षाकृत एक बड़े क्षेत्र में करता है। इस उद्देश्य के लिए सेटेलाइट को अन्तरिक्ष में उसी स्थान के ऊपर पहुंचा कर स्थिर करना होता है, जिस स्थान (क्षेत्र) पर उससे प्रसारण करने की अपेक्षा की जाती है। ऐसा करने के लिए सेटेलाइट को धरती तल से लगभग 22,330 मील (35,000 कि.मी.) की ऊंचाई पर भूअभिनति कक्ष (Geosynchronous orbit) में स्थिर किया जाता है। एक बार जब सेटेलाइट को उपयुक्त स्थान पर स्थिर कर दिया जाता है, तब डिश इस्तेमाल करने वालों के लिए लगभग चौबीसों घण्टे प्रोग्राम मिलने लगता है: डिश इस्तेमाल करने वाले इन संकेतों को केबल सिस्टम की मदद से अपने दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं। भारत में अधिकांश दर्शक – औद्योगिक संस्थानों और धनी व्यक्तियों को छोड़कर – स्थानीय केबल नेटवर्क से ही सेटेलाइट चैनल प्राप्त करते  हैं।

यह कार्य बड़ा खर्चीला है। औसत अच्छी किस्म का सी-बैंड एन्टीना – मॉडुलेटर और एम्प्लीफायर के साथ – 1,00,000 रु. से भी अधिक कीमत का आता है। यहां तक कि सबसे सस्ता 8 फट व्यास वाला एन्टीना लगभग 25,000 रु. का आता है। इस प्रकार निजी प्रयोगकर्ताओं के लिए यह बहत महंगा पडता है। लेकिन यूरोपीय देशों में डायरेक्ट ब्राडकास्टिंग एन्टीना की कीमत बहुत ही कम लगभग 250 पाउण्ड है। वहां के अधिकांश टी.वी. दर्शक इतना धन खर्च कर सकते हैं।

स्काई टी.वी. की प्रगति के मार्ग में अनेक कठिनाइयां हैं। ये कठिनाइयां राजनैतिक या आर्थिक या केवल टेक्निकल ही हो सकती हैं। इसलिए भारत जैसे देश में डायरेक्ट सेटेलाइट ब्राडकास्टिग भविष्य में ही सम्भव होगा किन्तु भविष्य में कब? यह इस बात पर निर्भर करती है कि कब रुपर्ट मु?क जैसों की मेहरबानी भारत पर होगी।

टेलीविजन या सेटेलाइट प्रसारण का जितना प्रभाव आज है, उतना इससे पहले कभी भी नहीं रहा। आज इसकी बड़ी आलोचना भी हो रही है। सभी सामाजिक बुराइयों के लिए इसे ही दोषी ठहराया जाता है: इसे लोग आकर्षण के बजाय चिन्ता का कारण मानने लगे हैं। टी.वी. आज हमारे शयन कक्ष की एकान्तता में घुस गया है। टी.वी. के नाटक आज हमारे बच्चों के खेल बन गए हैं। बहुत से मां-बाप शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे समय (आयु) से पूर्व दुनियादार बन गए हैं। अधिकांश बच्चे अपने माता-पिता की अव्यक्त सहमति से यौन और हिंसा से जुड़े काफी कार्यक्रम टी.वी. पर देखते हैं।

बचपन में हिंसा से जुड़े कार्यक्रम देखने का प्रभाव उनके तरुणाई काल में दिखाई पड़ता है। धीरे-धीरे इस बात को मान्यता मिलती जा रही है कि छोटी आयु में हिंसा से जुड़े कार्यक्रम देखने से तरुणाई में आकर बालक कुकर्मी बन जाते हैं। लेकिन टी.वी. लेखकों, डायरेक्टरों और निर्माताओं को कहीं-न-कहीं एक सीमा रेखा खींचनी ही पड़ेगी। हिंसा जीवन का एक सत्य है। थोड़ी-बहत हिंसा तो आएगी ही: इससे पूरी तरह बचा नहीं जा सकता। वैसे भी टी.वी. पर जीवन की ऐसी जटिल बातों को दिखाने से बचना चाहिए जिनका विश्लेषण करने में बौद्धिक जोर लगाना पड़े। इसलिए कर्म ही सर्वोत्कृष्ट आकर्षण है।

अन्त में, स्थितियां और परिस्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर हैं और सेटेलाइट टेलीविजन के चैनल हमारे जीवन में घुस रहे हैं और हम – अकेले व्यक्ति के रूप में और सामूहिक सभ्य समाज के रूप में अर्थात् दोनों रूप में – असहाय बनते जा रहे हैं। इस बात के बावजूद कि व्यक्तियों के सामाजिक विकास में टी.वी. की भूमिका के समर्थन में अनेक तर्क दिये जाते हैं, टी.वी. को आज निर्विवाद रूप से परम्परागत सामाजिक मूल्यों के लिए खतरा माना जाने लगा है।

30 जून, 1995 को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। जिसके फलस्वरूप सी. एन. एन. के पूरे 24 घंटो के समाचार चैनेल की सुविधा भारतीय दर्शकों को सुलभ हुई। यह पहला मौका है जब दूरदर्शन ने किसी निजी प्रसारण कम्पनी को अपना चैनल पट्टे पर दिया है।

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