Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Andhvishwas” , ”अंधविश्वास” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
अंधविश्वास
Andhvishwas
निबंध नंबर – 01
अंधविश्वास अविवेकी विश्वासों को कहा जाता है। यह अज्ञानता से पैदा होते हैं। हालांकि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है किन्तु फिर भी यह लोगों के मनों से इन अंधविश्वासों को निकालने में असमर्थ रही है। लोग आज भी आत्माओं, जादू तथा ज्योतिष में विश्वास करते हैं। भारतीय सबसे अधिक अंधविश्वासी लोग हैं। उनका मानना है कि बीमारियां व्यक्ति के बुरे कर्मों का फल हैं। कुछ दिन यात्रा करने के लिए बुरे माने जाते हैं। कुछ महीनों में शादियां नहीं की जातीं।
कई प्रकार के शगुन तथा अपशगुन के चिन्ह माने जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति बाहर जाने के लिए निकल रहा हो तो छींकना एक अपशगुन माना जाता है। खाली बर्तन के दर्शन भी बुरे माने जाते हैं। किन्तु पानी से भरी बाल्टी को देखना अच्छा माना जाता है। कुत्तों का रोना किसी की मौत का बुलावा माना जाता है। जमादार को देखना एक अच्छा चिन्ह माना जाता
यदि व्यक्ति का दायां हाथ खजाए तो माना जाता है कि उसे पैसे मिलने वाले हैं। छत पर कोए की काएं-काएं किसी मेहमान के आने का संकेत देती है। विद्यार्थी को परीक्षा देने जाने के समय दही खिलाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस से सफलता प्राप्त होती है। कई लोग 13 नवंबर को बुरा मानते हैं।
अंधविश्वास बहुत हानि पहुंचा सकते हैं। यह व्यक्ति के स्वयं पर विश्वास को कमजोर करते हैं। व्यक्ति हर समय डर तथा दुःख में रहता है। अंधविश्वास उसके मानसिक विकास को रोक देते हैं। इस से उसकी मानसिक शांति भंग होती है। हमें इन अंधविश्वासों को खत्म कर देना चाहिए। हमें चीज़ों को प्राकृतिक रूप से घटने में विश्वास रखना चाहिए।
निबंध नंबर – 02
जन साधारण में प्रचलित अन्धविश्वास
Jan Sadharan mein Prachalit Andhvishwas
विश्वास और अंधविश्वास में बहुत अन्तर है। किसी उचित और तर्कसंगत बात को मानना विश्वास है और बिना सोचे समझे अकारण ही लकीर के फकीर बन कर हर बात को मानते जाना अंध-विश्वास और भ्रम है। ये अंधविश्वास और भ्रम सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक या व्यक्तिगत स्वार्थ अथवा अज्ञान से जन्म पाते हैं, और उन के आधार पर ही जीवित रहते हैं ! संसार के सभी देशों में किसी न किसी प्रकार के अंध-विश्वास और भ्रम विद्यमान है। जैसे योरोप और अमेरिका में 13 के अंक को अनिष्ट माना जाता है। सडक पर पड़ी घोड़ की नाल मिल जाए तो उसे सुख समद्धि-दायक मान कर संभाल कर रखते है।
हमारे देश में अविद्या का अंधकार बहत देर से चलता आ रहा है और धूते तथा स्वार्थी लोगों ने जनता को लूटने के लिए अपने जाल फैला रखे हैं, इसलिए यहां अनेक प्रकार के अंधविश्वास आज के युग में भी चल रहे हैं। गांवों की अशिक्षित जनता विशेषतया इन की शिकार है। बहुत से लोग काम आरम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाते हैं। उनका विश्वास है, दिन वार अच्छा होने पर ही काम चलेगा । अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो यात्रा के लिए भी दिन, वार तिथि और चंद्रमा आदि के सम्बन्ध में पूछ कर घर से चलते हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि हर रोज़ हर दिशा में गाड़ियां और बसें चलती हैं। यदि डाईवर भी मुहर्त पूछ कर चलने लगें तो काम हो चुके ! नरक और स्वर्ग की धारणा भी तो अज्ञान का ही फल है। लोगों को बुरे कामों से डराने और शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करने के लिए किसी ने लोगों को नरक और स्वर्ग के नाम बतला दिए । अब लोग मानते हैं कि वे हमारी धरती जैसे ही कोई अन्य स्थान हैं जहां व्यक्ति अपने बुरे और भले कर्मों का फल भोगने के लिए जाता है।
अपने पूर्व पुरुषों को याद रखना, उनका सतकार करना व्यक्ति का कर्तव्य है किन्तु हमारे यहाँ तो मृत व्यक्ति के नाम पर दान दिया जाता है। श्राद्धों के दिनों में श्राद्ध किए जाते हैं और माना जाता है कि वे वस्तुएं और भोजन आदि मृतात्मा को मिल जाते हैं, यह अद्भुत अंधविश्वास है। शरीर रहा नहीं ; वह तो भस्म हो गया है, और श्राद्ध में वस्तुएं वे दी जाती है जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है। यह अंधविश्वास ही तो है।
बच्चा बीमार हो । पेट दर्द या किसी अन्य पीड़ा के कारण छट-पटा रहा हो तो मां किसी डाक्टर के पास न जाकर आप ही कारण ढूंढ लेती है, इसे नज़र लग गई है’ । राई नौन उतारा जाता है या बच्चों के सिर पर से सात लाल मिर्चे घुमा कर चूल्हे में डाल दी जाती हैं। भाग्यवश दर्द आदि ठीक हो जाए तो मान लिया जाता है कि नज़र का प्रभाव हट गया । न ठीक हो तो ओझे या पंडित के पास झाड़ फूंक के लिए ले जाती हैं। अब तो चेचक और प्लेग ख़त्म ही हो चुके है, अन्यथा अन्धविश्वासी इन रोगों को भी देवियों का ही प्रकोप मानते थे । चेचक निकलते हो शीतला माता के यहां बच्चे को ले जाया जाता था। कोई दवाई न देकर चरणामृत ही दिया जाता था। प्लेग के दिनों में बिहार में ‘पिलकिया मैया’ की प्रतिष्ठा हो गई थी । आज कल भी कई अशिक्षित लोग टायफाइड ज्वर में दवाई न देकर माता का प्रसाद ही देते हैं और सब्जी में प्याज़ आदि का प्रयोग बंद कर देते हैं।
पहाड़ी और दूसरे पिछड़े हुए इलाकों में किसी को मानसिक रोग हो जाने की दशा में यही माना जाता है कि उस पर किसी का साया पड़ गया है या कोई प्रेतात्मा उसमें आ घुसी है। बस फिर बेचारे रोगी की खैर नहीं । सयाने बुलाये जाते हैं। गुग्गल धुखाया जाता है। ढोल बजा-बजा कर और थाली पीट-पीट कर नचा-नचा कर उसे निढाल कर दिया जाता है। सांकलों और चिमटों से पीटा जाता है। ऐसी दशा में बेचारे रोगी की मृत्यु हो जाने पर कहा जाता है बड़ा भयानक प्रेत था, साथ ले कर ही गया । यदि ऐसे अन्धविश्वास न हो तो उन्हें मानसिक चिकित्सकों के इलाज द्वारा सरलता से स्वस्थ बनाया जा सकता है।
किसी स्त्री के सन्तान नहीं होती या हो कर बचती नहीं तो वह भी टोने-टोटकों की और भागती है। कहीं कोई व्यक्ति घर से जाने लगा हो, अचानक कोई छींक दे तो समझा जाता है कि काम नहीं होगा। घर से निकलने समय कोई खाली बर्तन लिए मिल जाए तो अशुभ माना जाता है। यदि सफाई मज़दूर टोकरी लिए हुए मिले तो शुभ माना जाता है। इसी तरह बिल्ली द्वारा रास्ता काटना अशुभ समझा जाता है। किसी घर की छत पर या गांव में उल्लू का बोलना अशुभ और बरबादी का सूचक माना जाता है। लाल आंधी और पुच्छल तारा भी युद्ध या विनाश के सूचक समझे जाते हैं। सियारों का बोलना और कुत्ते का रोना भी मृत्यु और नाश का चिन्ह है-ऐसा सब अन्धविश्वास है।
फ्रायड ने तो सपनों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की है। पाखंडियों ने भी सपनों की व्याख्या अपने ढंग से की है और अन्धविश्वासों में वृद्धि की है, जैसे मृतक का सपने में आकर कुछ मांगना बहुत बुरा है और यदि वह कुछ दे जाए–चाहे राख की चुटकी ही क्यों न हो तो समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है। सपने में जिस की मृत्यु होती देखी जाए उसकी उम्र और भी लम्बी होती है आदि।
मुंडेर पर कौए का बोलना किसी प्रिय व्यक्ति के आगमन का सूचक समझा जाता है, इसका उल्लेख तो कवियों ने अपनी कविताओं में भी किया है। पुरुष की टाई और स्त्री की बाईं आंख का फड़कना प्रिय माना जाता है। इसी तरह पुरुष की दाईं और नारी की बाईं हथेली में खुजली होना धन देता है और विपरीत होने की दशा में धन का व्यय होता है। इस प्रकार के विविध अन्धविश्वास हमारी जनता में फैले हुए हैं।
स्वार्थी और ढोंगी लुटेरे जनता के इन अन्धविश्वासों का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं। समाचार पत्रों में इस तरह के विज्ञापन निकलते हैं, ‘जादू की अंगूठी-जो चाहो सो मिलेगा’ या वशीकरण मंत्र’ इससे मुकद्दमे, परीक्षा, व्यापार, हर काम में सफलता मिलेगी, शत्रु का नाश होगा ।’ अन्त में मूल्य के स्थान पर भेंट या पूजा लिखा रहता है। इक्कीस रुपए में एक रूपये की पीतल की अंगूठी भेज कर धूर्त तो अपनी पेट पूजा कर लेते हैं और मंगवाने वाला प्रतीक्षा करता रहता कि उसकी इच्छा कब पूरी होती है।
शिक्षा के प्रचार और प्रसार के साथ ही ये अन्धविश्वास और वहम मिट सकते हैं। सरकार तथा समाजसुधारकों को चाहिए कि इन अन्धविश्वासों को मिटाने के लिए इनके विरुद्ध अभियान आरम्भ किया जाए । जब तक ये वहम और अन्धविश्वास नहीं मिटते तब तक जनसाधारण की उन्नति असंभव है।