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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Aarakshan”, “आरक्षण” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

आरक्षण

Aarakshan

हमारा भारत देश सदैव से ही विविधता में एकता से भरा रहा है। वैसे तो आरक्षण को अंग्रेजी में रिजर्वेशन कहा जाता है, जिसका अर्थ है किसी को विशेष कोटा देना। समाज के प्रत्येक वर्ग में इसअसमानता को देखा जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद यह भेद और भी उजागर होने लगा है। समाज के सर्वांगीण विकास के लिए इन उपेक्षित तथा पिछड़े वर्ग के उत्थान की अनेक योजनाएं बनाई गईं। इसी संदर्भ में कई आयोगों की स्थापना भी की गई जिन्होंने झ्स वर्ग-भेद तथा असमानता को मिटाने के कुछ सुझाव भी दिए। एक ऐसा ही कमीशन जिसका नाम मंडल-आयोग था, बड़ा प्रसिद्ध हुआ।

मंडल-आयोग में दलित एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान था जिसे सर्वप्रथम वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने सहयोगी श्री देवीलाल से वैमनस्य होने पर बिना किसी पार्टी के परामर्श किए आनन-फानन में घोषित कर दिया, जो कि बाद में सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने की साजिश के रूप में उभर कर सामने आया।  

इस आयोग की रपट में यह प्रावधान था कि दलित एवं पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। पर अलग-अलग राज्यों में इस प्रतिशत को बदलने की माँगने जोर पकड़ ली थी। तमिलनाडु में तो यह प्रतिशत 68 तक पहुंच गया था जबकि बिहार व कर्नाटक में तो 80 प्रतिशत।

इस घोषणा का परिणाम यह हुआ कि नवयुवकों में असंतोष फैल गया, जगहजगह हड़तालें, घेराबंदी और आत्मदाह जैसे घातक प्रयोग अपनाए जाने लगे पर सरकार अपने निश्चय पर अड़ी रही। यहाँ तक की अपने इस आनन-फानन वाले फैसले के कारण वी.पी. सिंह की सरकार एक वर्ष पूर्व ही गिर गई लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने इस आरक्षण को सिद्धांत रूप से स्वीकार कर ही लिया।

लेकिन जनमानस में इस आरक्षण की भीषण प्रति-क्रिया तोड़-फोड़, मारकाट, रास्ता रोको, सरकारी साधनों को नुकसान पहुँचाओ, स्कूल-कॉलेज बंद करवाओ, कानून व्यवस्था पर तोड़ करो, जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दो आदि कई रूपों में हुई |

अतः परिणामस्वरूप समाज कई वर्षों में बँट गया। अब यह संघर्ष तीव्र होता जा रहा था। देश के कई प्रान्तों में इसका उग्र विरोध भी जारी था। उत्तराखंड, गुजर आंदोलन इसका ताजा उदाहरण है।

कई लोगों का मानना है कि पिछड़ेपन का कारण जाति विशेष नहीं है, अपितु आर्थिक साधनों का अभाव भी है। अतः आरक्षण जाति विशेष से नहीं बल्कि आर्थिक आधार से माना जाना चाहिए।

लेकिन आयोग ने बस अपनी ढफलं ही जातियों का ही आरक्षण में उल्लेख किया। जो कि सन् 1931 की जनगणना के आधार पर किया गया, ऐसा माना जाता है।

इसी कारण कई प्रांतों, शहरों, कस्बों आदि के लोगों में असंतोष फैल गया जो कि बाद में सामाजिक विघटन के रूप में परिवर्तित हो गया है। धीरे-धीरे समाज में जातिगत विद्वेष बढ़ गया है। स्वतंत्रता के बाद जो जाति-प्रथा लुप्त हो रही थी उसे आरक्षण ने फिर उभार दिया था।

आर्थिक लाभ लेने के प्रलोभन ने वास्तविक प्रतिभा का ह्रास किया है। कई जाति के लोग येन-केन-प्रकारेण आरक्षण कोटे में प्रवेश करने हेतु अपनी बुद्धि लगा रहा हैं। जिसकारण अन्य लोगों में तीव्र आक्रोश जन्म ले रहा है जो स्वस्थ समाज के लिए नितान्त निंदनीय है।

वर्ग या जाति मनुष्य के स्वस्थ शरीर में आम प्रत्यय की तरह ही इनमें प्रत्येक अंगकी उपयोगिता है लेकिन कुछ स्वार्थी लोगों में भी श्रेष्ठता प्रतिपादित कर कुछ को हीन अंग कहकर मानव शरीर को ही दोषयुक्त बना दिया है।  

आरक्षण का मुख्य उद्देश्य समाज का विकास होना चाहिए जबकि आधुनिक आरक्षण समाज को खंड-खंड कर रहा है तथा विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रहा है। इस आरक्षण से समाज तथा राष्ट्र कमजोर हो रहा है। प्रतिभाएँ विदेश जा रही हैं जिस कारण वर्ग-संघर्ष को बढ़ावा मिल रहा है।  

अंतः हम सबका उत्तरदायित्व है कि मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाकर आरक्षण को सही दिशा प्रदान करें। जिससे धनी-निर्धन का भेद मिटकर मानव सुखी रह सके। साथ ही समाज में व्याप्त असंतोष को भी दूर किया जा सके।

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