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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aaj ke Yuvao ki Samasya ”, ”आज के युवाओं की समस्याएं” Complete Hindi Nibandh for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

आज के युवाओं की समस्याएं

Aaj ke Yuvao ki Samasya 

 

सारी पीढी पर ‘हताशा’ का बिल्ला चिपका देना, उनकी समस्याओं को सही नजरिये से न देखने जैसा है। ऐसा करना उस पीढी के प्रति अन्याय होगा। उनकी स्थिति को रंगीन चश्मे से देखने से न सत्य का पता लग सकता है और न तथ्यपूर्ण विश्लेषण हो सकता है। ऐसा करने से जो दिखाई पड़ता है, वह एक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण का प्रतिबिम्ब होता है।

युवा पीढी की आकांक्षाओं से उत्पन्न आशाएं और अपेक्षाएं उतनी ही मुखर और जीवन्त होती हैं, जितना कि उनका रेत के भवन की भांति ढह जाना। इस प्रक्रिया में युवा पीढ़ी आश्चर्य और अविश्वास से ग्रस्त हो जाती है। उन्हें टूटता हुआ वर्तमान और निराशाजनक भविष्य दिखाई पड़ता है।

हमारे तरुण जीवन के एक नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। उनका बचपन अभी-अभी समाप्त हुआ है और युवावस्था में वे कदम रख रहे हैं । आज के तरुणों के समक्ष जितनी गंभीर समस्याएं हैं, उतनी कछ पीढ़ियों पहले के तरुणों के समक्ष नहीं थीं। उन दिनों जीवन न इतना जटिल था और न स्थितिया इतनी अनगढ़ थीं। आज शान्ति और व्यवस्था की हालत बदतर है। जवानी. जिसे जीवन का स्वर्णिम काल कहा जाता है, जो रचनात्मक धारणाओं और सृजनात्मक विचारों का समय माना जाता है, तेजी से क्षोभ और क्रोध का शिकार बनती जा रही है। आज का नवयुवक जीवन की एक-एक सीढ़ी चढ़कर ऊपर पहंचने के बजाय एक-एक सीढी नीचे फिसलता जा रहा है और अन्त में भ्रष्टाचार के जाल में फंस जाता है।

तरुणों की समस्याएं अनगिनत और अनेक प्रकार की हैं। न हम उनकी उपेक्षा कर सकते हैं और न उनका हल कल पर टाल सकते हैं। टैगोर की ‘होम कमिंग’ में तरुण की निराशा को इस प्रकार व्यक्त किया गया है: “यदि तरूण किसी बच्चे जैसा व्यवहार करता है, तो उसे बचकाना (मूर्खतापूर्ण) कहा जाता है और यदि वह किसी प्रौढ़ जैसा व्यवहार करता है, तो उसे उद्धत कहा जाता है। बेचारा बड़ी असमंजसपूर्ण स्थिति में होता है। वह उत्कर्षशील होता है, किन्तु भविष्य निश्चित नहीं है। उसके अनेक सपने हैं — कुछ फूलों से सजे हैं, कुछ कांटों में विधे। उसे कुछ पता नहीं कि भविष्य में उसका क्या होगा। उसका स्वप्न भंग हो चुका है। उसका मन भयभीत है कि आगे उसका और उसकी आकांक्षाओं का क्या होगा।

शिक्षित युवक की दशा तो और भी बदतर है। शिक्षा व्यवस्था पहले ही उलझनपूर्ण थी। अनेक समितियों और आयोगों ने इस व्यवस्था को और भी जटिल बना दिया है। क्या उसे बेरोजगारों की भीड़ में शामिल होना होगा? परीक्षा की अविश्वसनीय प्रणाली कोढ़ में खाज के समान है। इसे आप सही मानें या गलत, किन्तु सत्य है कि विद्यार्थियों को उनके जीवन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण काल में ठगा जा रहा है। कम से कम विद्यार्थियों का ऐसा ही ख्याल है। इसके अतिरिक्त, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और खोखले वायदों से उसका गला घुट रहा है।

भारतीय तरुणों के समक्ष जो समस्याएं हैं, उनके बारे में अनुचित ढंग से बहुत अधिक निराश होने की जरूरत नहीं है। निराशा में आशा की किरण है। भारतीय तरुणों के जीवन का एक और भी पहलू है जिसको अनदेखा नहीं किया जा सकता। पारिवारिक अव्यवस्था, प्रतिकूल परिस्थितियां और ऐसी ही अन्य समस्याओं को हल किया जा सकता है, उनको नजरअन्दाज भी किया जा सकता है, क्योंकि हमारे नवयुवकों में कुछ प्रछन्न क्षमताएं हैं और कला, साहित्य व विज्ञान की बहुरंगी प्रतिभा है। हमारे नवयुवकों को आगे बढ़ने के लिए दूसरों का सहारा दंढने की आदत त्याग देनी चाहिए. उन्हें आत्मनिर्भर बनना चाहिए। आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी सहायता है। उठो, काम में जुट जाओ।

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