Hindi Essay, Paragraph on “The Kashmir Problem”, “कश्मीर समस्या” 1000 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Examination.
कश्मीर समस्या
The Kashmir Problem
विश्व में ‘धरती का स्वर्ग’ के नाम से विख्यात कश्मीर आज बहुत अशांत है। स्वर्ग का तात्पर्य होता है, जहां शांति हो, वैभव हो। कवि कल्हड़ ने ठीक कहा है, “यहां जैसी विद्या, ऊंचे-ऊंचे ग्रह, केशर, हिममिश्रित शीत जल और घर-घर दाक्षा तो स्वर्ग में भी दुर्लभ हैं।” किंतु धरती के स्वर्ग कश्मीर की स्थिति आज बिलकुल विपरीत है। सर्वत्र अशांति, हिंसा, बलात्कार और प्रदर्शनों को देखकर यह लगता है, क्या हम स्वर्ग के बजाय हम नर्क में तो नहीं आ गए? लोग आतंक के साये में जीने को विवश हैं। कश्मीर की प्राकृतिक छटा, हिमालय की सुरम्य वादियां-सब कुछ ऐसा ही है, जैसा वर्षों पहले था, लेकिन सब कुछ बदला-सा लगता है। कश्मीर में रहने वाले अधिकांश लोगों की आंखें बस एक ही प्रश्न पूछती हुई प्रतीत होती है, कि यह सब क्यों और कैसे हुआ? क्या कभी इससे छुटकारा मिल पाएगा? जम्म-कश्मीर राज्य जिस पर पहले हिंदू राजाओं और उसके बाद मुसलमान शासकों ने शासन किया। अकबर के शासन काल में मुगल-साम्राज्य का अंग बना। 1750 ई. के आरंभ में अफगान शासन के बाद 1810 ई. में इसे पंजाब के सिख राज्य में मिला लिया गया। 1846 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू प्रदेश गुलाब सिंह को दे दिया। बाद के समय में अमृतसर सिंधि के बाद कश्मीर प्रदेश भी गुलाब सिंह को दे दिया। उसके बाद 1947 ई. में भारतीय स्वाधीनता अधिनियम लागू होने तक यह राज्य अंग्रेजों के प्रभुत्व में रहा।
स्वाधीनता के बाद सभी स्थितियों ने भारत या पाकिस्तान में मिल जाने का फैसला किया, किंतु कश्मीर ने कहा कि वह पाकिस्तान और भारत से समान रूप से मित्रवट संबंध रखना चाहता है। इसलिए कश्मीर पर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया। महाराजा ने भारत में विजय के पक्ष पर हस्ताक्षर करके 26 अक्टूबर, 1947 ई. को कश्मीर राज्य को भारत में मिला दिया। पाकिस्तान के आक्रमण को विफल करके भारतीय सेनाएं कश्मीर घाटी जा पहुंची। वहां से पाकिस्तानी कैदियों को मार भगाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी आक्रमण के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ से शिकायत करने पहुंचे। यद्यपि भारत के कई नेताओं ने यहां जाने से मना किया था। पर नेहरूजी को विश्वास था कि यू.एस.ओ. पाकिस्तान के विरुद्ध कुछ करेगा। वहां प्रस्ताव के बाद कुछ न होना था, न कुछ हुआ। युद्ध विराम हो गया। कश्मीर का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान के कब्जे में रह गया। शेष भारत के साथ।
कश्मीर का दुर्भाग्य यह रहा कि वहां की अधिकांश जनसंख्या मुस्लिम है और उन्होंने भारत के साथ रहने का निश्चय किया। मुस्लिम बहल कश्मीर भारत के साथ रहे, यह बात पाकिस्तानी नेताओं के गले न उतरी। 1947, 1965 व 1971 में भारत-पाक युद्ध हुआ। इसमें पाकिस्तानी नेताओं की मानसिकता झलकती है। पाकिस्तान बारंबार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर की बात को उठाता रहा है। वह भारत पर आरोप लगाता है कि भारत ने जबरन उस पर कब्जा किया हुआ है। कुछ मुस्लिम देशों ने भी धार्मिक संकीर्णता में इसका समर्थन किया है। किंतु विश्व की महाशक्तियां इस विषय पर खुल कर सामने नहीं आई हैं। अनेक अवसरों पर सोवियतरूस ने भारत के पक्ष का सम्मान करते हुए ‘वीटो’ का प्रयोग किया है। कश्मीर समस्या पाकिस्तानी की घिनौनी करतूत है। कभी बलबाइयों की घुसपैठ करा कर, तो कभी खुफिया एजेंटों द्वारा, कभी कश्मीर की आजादी कराने वाले दुखी लोगों द्वारा दंगे, लूट आदि करवाता है।
कश्मीर की गरीबी और बेरोजगारी का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान एजेंटों द्वारा धन देकर नवयुवकों को भारत के विरोध में भड़काता है। आज कश्मीर में प्रशासन नाम की चीज नहीं है। कोई भारतीय कहलाना नहीं चाहता। भारतीय पक्ष का समर्थन करने वाले लोगों की हत्या कर दी जाती है। इन दिनों पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकवादी भारत में आतंक पैदा कर रहे हैं। इस तरह 6 आतंकवादी संगठन कश्मीर में सक्रिय हैं। इन सबका कार्य बैंक लूटना, अपहरण करना, सरकारी संपति को नुकसान पहुंचाना हैं। भारतीय विचारधारा वाले व्यक्तियों की हत्या करना, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रचारित करना की कश्मीर के मुसलमान पर भारतीय सेना अत्याचार करती है, ताकि भारतीय जन-मानस के प्रति विदेशों में मुख्य प्रभाव हो।
कश्मीर कभी पर्यटन के लिए उत्तम स्थल माना जाता था, परंतु आतंकियों की करतूतों के कारण अब पर्यटकों का आगमन बंद हो चुका है। श्रीनगर, गुलमर्ग, बारामूला में चलने वाले होटल बंद हो चुके हैं। लोग बेरोजगार हो चुके हैं। लोग निराश हैं। आतंकवादियों के विरोध में कुछ करने का साहस उनमें नहीं हैं। कश्मीर की वर्तमान स्थिति अत्यंत दयनीय है। आतंकवाद ने इसे बुरी तरह जकड़ लिया है। आतंकी अब केंद्र सरकार को भी चुनौती देने लगे हैं। 8 दिसंबर, 1989 को तत्कालीन गृहमंत्री मुहम्मद सईद की पुत्री, डॉ. रूबिया का अपहरण आतंकियों ने कर लिया। उसके बदले कुछ आतंकियों को छोड़ने की मांग की गई। केंद्र सरकार उसके सामने झुकते हुए उन आतंकियों को छोड़ा और डॉ. रूबिया को छुड़ाया गया। अपहरण का यह सिलसिला आगे भी चलता रहा। स्वीडिश इंजीनियर नाहिदा, हरैस्बाकी आदि इसकी अगली कड़ी थे।
कश्मीर में बढ़ती पाकिस्तानी घुसपैठ, धर्म के नाम पर गुमराह युवकों को भारत के विरुद्ध भड़काने की कार्यवाही के कारण ही समस्या विकट होती जा रही है। कश्मीर युवकों का यह उन्माद घाटी में बेरोजगारी संकट के कारण स्पष्ट हुआ है। सीमा पार कश्मीर से मिलने वाला धन और सहायता कश्मीर कि स्थिति को बदतर ही बनाया है।
अधिकांश हिंदू कश्मीर से भागकर बागियों का जीवन जीने को विवश हैं। इस समस्या के निदान के लिए कटर अलगवावादियों युवकों, घुसपैठियों के बीच अंतर किया जाए। सरकार लोगों में विश्वास जगाए। कट्टर पंथी के खिलाफ बड़े कदम उठाए। रोजगार के अवसर उत्पन्न कर कश्मीर के विकास को प्राथमिकता प्रदान करें। ऐसा कर ही कश्मीर में पुनः शांति लाई जा सकती हैं और कश्मीर पुनः स्वर्ग बन सकता है।
कवि राहुल की पंक्तियां पेश हैं-
पर्वतों के बीच हीरे के कटोरे-सा
पूर्णिमा की रात में दिखता मनोहर
गुदगुदाती है सदा ठंडी हवाएं
और सरिताएं सुनाती है संगीत सुंदर!