Hindi Essay, Paragraph on “Right to Information”, “सूचना का अधिकार” 800 words Complete Essay for Students of Class 10,12 and Competitive Examination.
सूचना का अधिकार
Right to Information
लोकतांत्रिक देशों में स्वीडन पहला देश था जिसने अपने देश के लोगों को 1766 ई. में ही सवैधानिक रूप से सूचना का अधिकार प्रदान किया। आज नीदरलैंड, आस्ट्रिया और अमेरिका आदि देशों के नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त है।
भारत में सूचना के अधिकार की विकास-यात्रा 1952 ई. से शुरू होती है, जब भारत में पहला प्रेस आयोग बना। सरकार ने आयोग को प्रेस की स्वतंत्रता संबंधी जरूरी प्रावधानों पर सुझाव मांगा। उसके बाद सन् 1967 में सरकारी गोपनीयता कानून में संशोधन के प्रस्ताव आए लेकिन उन प्रस्तावों को खारिज कर इस कानून को और सख्त बना दिया गया। 1977 में जनता पार्टी में अपने चुनाव घोषणा-पत्र में सूचना का अधिकार देने का वादा किया। 1978 में प्रेस आयोग बना। इस प्रेस आयोग में और 1968 में बनी प्रेस परिषद् ने कुछ सिफारिशें की, लेकिन नतीजा नहीं निकला। लोगों तक सूचना पहुंचाने की दिशा में सार्थक प्रयास 1985 में बनी बी.पी. सिंह सरकार ने किया। 1996 के लोकसभा चुनाव में लगभग सभी प्रमुख पार्टियों को अपने घोषणा-पत्र में सूचना के संबंध में कानून बनाने की बात की। 1997 में इस संबंध में दो विधेयक लाए गए। स्वविधेयक पत्रकार अरुणा शौरी के पिता एच. शौरी ने बनाया था और दूसरा प्रेस परिषद् के अध्ययन जस्टिस सांवत के नेतृत्व में गठिन कार्य दल ने बनाया था। लेकिन ये विधेयक कानून की शक्ल न ले सके बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2002 में कानून पास किया, लेकिन इसमें इतनी खामियां थीं कि यू.पी.ए. सरकार को दोबारा विधेयक तैयार करना पड़ा।
सूचना के अधिकार से संबंधित जो वर्तमान है, उसके अंतर्गत कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी कार्यालय और अधिकारी जबाव-तलब कर सकेगा। सरकारी फाइलों को देखने, उससे नोट्स लेने, उनकी फोटो कॉपी लेने का अधिकार होगा। अगर जानकारी कम्प्यूटर पर हो, तो प्रिंट आउट या फ्लॉपी मिल सकेगी। मांगी गई सूचना 31 दिनों के अंदर उपलब्ध करना कानूनन जरूरी होगा। किसी की जिंदगी या आजादी से जुड़ी सूचना 24 घंटे के अंदर देनी होगी। सभी मंत्रालय और विभाग इस काम के लिए खासतौर पर जन-सूचना अधिकारी नियुक्त करेगी। हर राज्य में चुनाव आयोग की तरह मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यालय होगा। जरूरी सूचना न मिलने पर मुख्य सूचना आयुक्त कार्यालय में शिकायत की जा सकती है।
लेकिन सूचना अधिकार कानून की कुछ मर्यादाएं भी निर्धारित की गई हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खतरे को बनाकर सूचनाएं छिपाई जा सकती हैं। रॉ. और आई.वी. जैसे संस्थाओं को राज बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। राजस्व, गुप्तचर, निदेशालय को भी इसी प्रकार की छूट दी गई है। इस कानून में यह भी कहा गया है कि अर्धसैनिक बलों की गतिविधियां तथा ऐसी सूचनाएं, जिससे केंद्र और राज्यों के रिश्ते प्रभावित हों, को भी सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। सरकारी अधिकारियों की ओर से फाइल पर लिखी गई नोटिंग देशनामी इस कानून के तहत संभव नहीं होगा। अपराध रोकने या कानून व्यवस्था करने का मामला हो, तो प्रावधान किया गया है कि वह जानकारी नहीं दी जाएगी, जो व्यक्ति की निजता को मांग करता हो। इस कानून में यह प्रावधान है कि यदि कोई अधिकारी किसी व्यक्ति को सूचना देने से मना करता है या देर से अथवा गलत सूचनाएं देता है तो वह अधिकारी निजी तौर पर दंड का भागीदार होगा।
इस कानून का नाम ‘सूचना की स्वतंत्रता’ के बजाय ‘सूचना का अधिकार’ रखा गया है। अतः यह लोगों को केवल स्वतंत्रता ही नहीं देता, बल्कि उन्हें अधिकार संपन्न भी बनाता है। लेकिन इस कानून में जिन क्षेत्रों की बात कही गई है, वह कानून की मूल आत्मा को ही खंडित कर देता है। वर्तमान कानून में ऐसे कुल 50 क्षेत्रों का उल्लेख है, जिनसे संबंधित सूचनाएं हमेशा गोपनीयता के दायरे में रखी जाएगी। इनमें ऐसी सूचनाओं को शामिल नहीं किया गया है जिसको देने से भारत की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, राजनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों तथा विदेशों से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली हों। सवाल यह उठता है कि यह तय करने का अधिकार किसे होगा कि अमुक सूचना देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए गुप्त रखी जाएगी। स्पष्ट है कि मौजूदा कानून इसका अधिकार सूचना आयुक्तों से ही देता है। इससे अफसरशाही का नया तंत्र विकसित होने की पूरी संभावना है। दूसरी बात यह कि सूचनाएं मिलने पर सूचना मांगने वाले व्यक्ति के पास एक ही रास्ता है-छोटे-से शुरू होकर बड़े सूचना आयुक्त के कार्यालय में शिकायत करना और अंततः उपाय के लिए अदालत की शरण में जाना। तीसरी बात, भूमंडलीकरण और निजीकरण के इस दौर में भी सूचना देने वाला यह विधेयक निजी क्षेत्र को अपने दायरे में नहीं रखता।
अतः कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कानून कई खामियों के बावजूद सही ढंग से अमल में लाए जाने पर भारतीय लोकतंत्र को व्यापकता और पारदर्शिता देगा।