Hindi Essay-Paragraph on “Paryavaran Pradushan” “पर्यावरण प्रदूषण” 800 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.
पर्यावरण प्रदूषण
Paryavaran Pradushan
पर्यावरण से मानव का सीधा और अटूट संबंध है। मनुष्य सगे-संबंधियों और परिवार जनों से संबंध-विच्छेद कर जीवित रह सकता है, लेकिन पर्यावरण से संबंध-विच्छेद कर वह पल भर भी नहीं जी सकता है। पर्यावरण के अंदर मानव के लिए अत्यावश्यक प्राण वायु है। जिसके बिना मनुष्य कैसे जी सकता है? इसलिए अस्वस्थ मनुष्य रुग्णावस्था में भी जी सकता है, लेकिन अस्वस्थ पर्यावरण के बीच स्वस्थ मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ा रहता है।
पर्यावरण का अर्थ है, हमारे चारों ओर का वातावरण जिसमें वायु, जल और मिट्टी है। हम इन तीन चीजों से आच्छादित हैं। ये तीन चीजें ही सजीवों के आधार तत्त्व हैं। जब मिट्टी, जल और वायु हमारे लिए हितकर के बदने अहितकर हो जाएं, तो इसे ही पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में प्राकृतिक संसाध नों का अनुपयुक्त हो जाना ही प्रदूषण कहलाता है।
पर्यावरण के प्रदूषण से वाय, जल और मिट्टी के अंदर निहित तत्त्वों के अनुपात का असंतुलित हो जाना प्रकट होता है। उदाहरण के लिए हवा में मानव के लिए ऑक्सीजन अनिवार्य हैं। अगर हवा हमें ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है तो सांस लेने में कठिनाई होती है। हवा में आवश्यक तत्त्वों के संतुलन के बिगड़ जाने से मानव-जीवन का खतरा उत्पन्न हो जाता है। पर्यावरण के प्रदूषण में आज के विज्ञान की भौतिकवादी भूमिका मुख्य रूप से जिम्मेवार है। मनुष्य अपने ऐशोआराम के लिए विज्ञान के माध्यम से प्रकृति का दोहन कर रहा है। मनुष्य को जब प्रकृति की गोद में बसे गांव की अपेक्षा कृत्रिमता में डुबे शहर अच्छे लग रहे हैं।
अब शरीर पर करघा के वस्त्रों की अपेक्षा बड़े-बड़े सिंथेटिक मिलों के कपड़े अच्छे लग रहे हैं। खेतों में प्राकृतिक खादों के बदले रासायनिक खादों का प्रयोग हो रहा है। परमाणु-हथियारों से युक्त राष्ट्र, दुनिया के सिर चढ़कर बोल रहे है आदि। ये सभी उपलब्धियां जहां एक ओर हमारे वैज्ञानिक उन्नति के मापदंड माने जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ये पर्यावरण को प्रदूषित कर संपूर्ण मानव-जाति के अस्तित्त्व पर ही प्रश्न-चिह्र लगाते जा रहे हैं। ओजोन परत का छिद्रयुक्त हो जाना, इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस भयावह स्थिति के लिए मनष्य स्वयं जिम्मेवार है।
प्रदूषण मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं-
- भूमि प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- वायु प्रदूषण
- ध्वनि प्रदूषण
उपज बढ़ाने के लिए खेतों में प्राकृतिक खादों के बदले रासायनिक खादों का प्रयोग एवं फसलों पर कीटनाशक दवाइयों के अत्यधिक छिड़काव से मिट्टी की स्वभाविक उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है। इससे बचाव के लिए प्राकृतिक एवं रासायनिक खादों के प्रयोग में संतुलन स्थापित करना होगा।
कहा गया है जल ही जीवन है। लेकिन आज बड़े-बड़े शहरों की नालियों का पानी एवं कल-कारखानों से निकले कचरे और विषैले रासायनिक द्रवों को सीधे नदियों एवं झीलों में प्रवाहित कर देने से इनका जल प्रदूषित हो चला है। गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां भी आज इस प्रदूषण से वंचित नहीं हैं। प्रदूषित जल के सेवन से जल जनित रोग जैसे-टी.बी., मलेरिया, टाइफाइड, हैजा आदि मिलते हैं।
वायु के बिना एक क्षण भी जीवित रहना सजीवों के लिए नामुमकिन है। आज यह प्राण-तत्त्व भी दूषित हो चला है। कारखानों की बड़ी-बड़ी चिमनियां, मोटर गाड़ियां, वायुयान एवं रेल-इंजन से निकलता धुआं इस प्रदूषण का कारण हैं। बड़ेबड़े महानगरों इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जहां की सड़कों पर चलने वाले वाहनों से पर्यावरण विष युक्त होता जा रहा है। प्रदूषित वायु में सांस लेने से फेफड़े एवं गले से संबंधित कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण भी एक प्रकार का वायु प्रदूषण है। जो रेडियो, टेलीविजन, मोटरों के हॉर्न एवं जेट-विमानों के शोर से उत्पन्न होता है। इससे पागलपन, बधिरता, चिड़चिड़ापन आदि रोग उत्पन्न होते हैं। पर्यावरण की समस्या विश्वव्यापी है। इस समस्या के लिए चिंतित विश्व समाज ने कई बार सम्मेलन आयोजित किए। परंतु इस समस्या का पूर्णतः हल नहीं मिल पाया है।
पर्यावरण प्रदूषण पर काबू करने के लिए कल-कारखानों और शहरों के कचरे को किसी विशेष जगह में निपटाया जाए। गंदे जल का परिशोधन कर पुनः उपयोग में लाया जाना चाहिए। हरे वनों की कटाई पर रोक और वृक्षारोपण को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
पुराणों में कहा गया है-जब तक पृथ्वी पर हरे-भरे वन रहेंगे, तब तक मानव संतान सुखी रहेगी। अतः इस आवश्यकता के प्रति जन-जागरण अत्यंत आवश्यक है। डॉ. राहुल की पर्यावरण में मरता हुए एक काम’ कविता की पंक्तियां कितनी सार्थक है-
मनुष्यो! जो, मैं तो मरता हूं
तुम्हारे इस संसार…जहर उगलते धुएं के पर्यावरण से
लेकिन मेरी मुक्ति व्यर्थ नहीं जाएगी
अगर तुम पर्यावरण के जगह से मुक्त नहीं हुए
तो वह दिन दूर नहीं जब काल तुम्हें
तुम्हारे सब किए-धिए के साथ नील जाएगा! …
पर्यावरण !
इस कदर हो गया है दूषित
कि अपनों की सांस में घुलता है कार्बन
वृक्ष हो गए हैं प्राणवायु से वंचित
और अंतरिक्ष की सतह पर
सुरसा-सा बढ़ता जा रहा है
विश्व को लीन जाने वाला काला छिद्र।