Hindi Essay-Paragraph on “Paise ki Atmakatha” “पैसे की आत्मकथा” 800 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.
पैसे की आत्मकथा
Paise ki Atmakatha
‘जिसके पास नहीं है पैसा, उसका जग में जीवन कैसा‘
सचमुच, मेरे अभाव में प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ उपहार मानव जीवन भी तुच्छ लगने वाला है। दवा के अभाव में तड़पते रोगी के पास जब मैं पहुंच जाता हूं, तब उसके जीवन में आशा के दीप जलने लगते हैं। भिखारी के खाली कटोरे में मेरी उपस्थिति मात्र से भिखारी को अन्नपूर्णा देवी के दर्शन होने लगते हैं। अभावग्रस्त विद्यार्थी के पास पहुंचते ही मैं उसे सरस्वती दूत दीखने लगता हूं। राजा के खजाने में मेरी कमी से सबल से सबल राजा के माथे पर भी चिंता की लंकीरें खिंच जाती हैं। तिजोरियों में मेरी अनुपस्थिति तो सेठ-साहूकारों के लिए हृदयघात जैसी जानलेवा बीमारी का आमंत्रण होता है। योगियों के लिए मैं ही सब कुछ हूं। अतः रोगी हो या भोगी, राजा हो या रंक, विद्यार्थी हो या व्यापारी, सभी के लिए मैं जीवन हूं। यह मेरा व्यावहारिक परिचय है।
अर्थशास्त्र की भाषा में मैं विनिमय का माध्यम हूं, वास्तविकता भी यही है कि मैं एक साधन मात्र हूं। लेकिन, आजकल लोगों ने मुझे ही साध्य बना लिया है। किसी चिकित्सक से आप पूछे कि तुम्हारे जीवन का लक्ष्य क्या है? जवाब मिलेगा, खूब पैसा कमाना। किसी भी अभियंता या पदाधिकारी, व्यापारी से पूछे, जवाब मिलेगा-पैसा कमाना। इस प्रकार सभी को मुझसे लगाव है। लेकिन इन दिनों राजनेताओं ने जो मुझसे असीम और अनन्य प्रेम दिखलाया है वह अन्यत्र दुर्लभ हैं। यही कारण है कि आज भारत को घोटालों का देश कहा जा रहा है। पशुपालन घोटाला, सांसद रिश्वत कांड, शेयर घोटाला और बोफोर्स दलाली आदि मेरी प्राप्ति हेतु खेले गए कुछ घृणित खेल हैं। इन घोटालेबाजों का कहना है जिसके पास जितना हो पैसा, उसका उतना जीवन अच्छा। इन्हीं लोगों के चलते मेरे प्रभाव में आशातीत वृद्धि हुई है। अगर आप परीक्षा में अच्छी सफलता चाहते हैं, नौकरी चाहते हैं या रुकी पदोन्नति चाहते हैं तो मुझे आगे करके देखों आपका रुका हुआ काम चंद मिनटों में हो जाएगा। इतना ही नहीं मैं जहां भी चाहता हूं, वहां की परिभाषा ही बदल देता हूं। व्यभिचारी के पास रहता हूं, तो लोग उसे सदाचारी मान बैठते हैं। मूर्ख के पास रहता हूं तो लोग उसे विद्वान मान बैठते हैं। मलिन के पास रहता हूं तो लोग उसे कुलीन मानने लगते हैं।
मेरी खनखनाहट में भी अद्भुत आकर्षण शक्ति है। इसे सुनकर मंदिर छोड़ पुजारी, आश्रम छोड़ महंत, कुर्सी छोड़ पदाधिकारी और बंगला छोड़कर राजनेता मेरी ओर दौड़ पड़ते हैं। कहने का तात्पर्य है कि पूरी दुनिया ही मेरी अंगुली पर नाच रही है। दुनिया की क्यों अब तो भगवान भी मेरी मुट्ठी में है। भीड़ के कारण अगर आपको मंदिर में प्रवेश करना कठिन लग रहा हो, तो भगवान के दूत पुजारी, पंडा के पास मुझे पहुंचा दीजिए। शीघ्र ही भगवान का दुर्लभ दर्शन सरल हो जाएगा। गोस्वामीजी की इस चौपाई से आप मेरी स्तुति करें। लोक-परलोक सर्वत्र आपकी विजय होगी।
कुवन काज कठिन जग माहीं।
जो न होइ तात तुम्ह पाहीं॥
मेरा प्रभाव जान लेने के बाद अब मेरी उत्पत्ति जानने के लिए आप अवश्य उत्सुक होंगे। सो उसे भी सुन लीजिए, लेकिन अति संक्षिप्त में कहूंगा।
इतिहासकारों का कहना है कि सर्वप्रथम ईसा से सात सौ वर्ष पूर्व ग्रीक में मेरा जन्म हुआ था। उस समय चांदी और स्वर्ण के मिश्रण से मेरा निर्माण होता था। भारत में वर्तमान स्वरूप में मुझे लाने का श्रेय अंग्रेज शासक जार्ज पंचम को जाता है। उन्होंने चांदी का रुपया, अठन्नी, चवन्नी तथा तांबे के एक-दो पैसे के सिक्के के रूप में सन् 1831 में मेरी शुरुआत की। आजादी के उपरांत सन् 1957 में मुझे दाशमिक पद्धति में परिवर्तित कर दिया गया। रुपया, अठन्नी, चवन्नी, दुअन्नी आदि के स्थान पर अब पांच पैसा, दस पैसा, पच्चीस पैसा, पचास पैसा एवं एक रुपया, दो रुपया, पांच रुपये आदि का प्रचलन प्रारंभ हुआ। मेरा निर्माण सोना, चांदी, तांबा में न होकर एल्यूमिनियम और लोहे में होने लगा। मेरे शरीर पर मेरा मल्य और अशोक चिह्न अवश्य अंकित रहता है। मेरे निर्माण के लिए कुछ मापदंड निर्धारित हैं। इसका अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक को है, जो राष्ट्रीय स्वर्ण भंडार के आधार पर मेरा निर्माण कराता है। मेरा विराट रूप 1000 रुपये के नोटों में प्रचलित है।
अपनी कहानी समाप्त करने के पहले अपने स्वभाव के बारे में एक-दो बातें और कहने जा रहा है। मेरी तीन गतियां हैं-दान. योग और नाश। सबसे अच्छी गति दान की हैं, उसके बाद उचित उपयोग करें, नहीं तो तीसरी गति नाश को प्राप्त कर लूंगा। एक सलाह और मुझे संचित अथवा अवरुद्ध न करें। नहीं तो समाज में चोरी, डकैती, हिंसा आदि का तांडव शुरू हो जाएगा, जो कि अब प्रायः प्रतिदिन होने लगेगा। इसलिए मेरे शुभागमन पर कबीरदासजी के इस दोहे का अनुसरण अवश्य करें-
पानी बाढ़ो, नाव में, घर में बाढ़ो दाम।
दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम ॥