Hindi Essay, Paragraph on “Loktantra mein Police ki Bhumika”, “लोकतंत्र में पुलिस की भूमिका” 1000 words Complete Essay for Students of Class 10,12 and Competitive Examination.
लोकतंत्र में पुलिस की भूमिका
Loktantra mein Police ki Bhumika
लोकतंत्र एक शासन-पद्धति है और एक जीवन पद्धति भी। इसमें प्रत्येक व्यक्ति समाज अधिकार एवं कर्तव्य होते हैं। पुलिस संपूर्ण समाज का अंग भी होती है और उसका नियामक भी होती है। इस प्रकार पुलिस विभाग के कर्मचारियों का जीवन कांटों की सेज होता है। वह सामान्य नागरिक भी होते हैं और नागरिकता के मार्गदर्शक एवं रक्षक भी होते हैं। इंग्लैंड की पुलिस की सिपाही इस दुर्विध कर्तव्य का पालन करने के कारण, अत्यंत सम्माननीय व्यक्ति होता है। वह समाज और शासन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है।
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में पुलिस प्रशासन की भूमिका को किसी भी तरह नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि इसके अभाव में लोकतंत्र उस शरीर के तुल्य है, जिसमें प्राण ही नहीं होता, उस वृक्ष के सदृश है, जिसकी जड़ ही नहीं होती है, जो विश्व सागर की लहरों के थपेड़े खाता रहता है और अंत में उसी में डूब जाता है। इस प्रकार पुलिस प्रशासन की लोकतंत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
लोकतंत्र में पुलिस प्रशासन अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुए सर्वत्र व्याप्त रहता है। समाज की बिगड़ती हुई दशा को पुलिस ही सही रूप प्रदान – करती है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा उनके धन संपत्ति की सुरक्षा, उनके धर्म की सुरक्षा उनके प्रत्येक कार्यों में सहयोग देना, आवश्यकता पड़ने पर उनकी आर्थिक सहायता करना, समाज में फैली बुराइयों का उन्मूलन करना, संक्रामक रोगों से लोगों की रक्षा करना और व्यक्तियों के मध्य विवाद है। उनका मध्यरचता करके निपटारा करने जैसे कार्य पुलिस प्रशासन द्वारा ही संपन्न किए जाते हैं।
आजकल भ्रष्टाचार बड़ी तेजी से समाज में व्याप्त होता जा रहा है। इसका बढ़ता साथ हमें गर्त में ढकेलता जा रहा है। साधारण जन-जीवन से लोग राजनीति तक इससे बहुत प्रभावित हुई हैं, यहां तक कि शिक्षण-व्यवस्था में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है। सरकारी अधिकारी, कर्मचारी सब इसमें आकंठ डूबे जा रहे हैं। इसके अंधकारमय शिंकजे से उबारने के लिए जो दमदमाती दीप्ति उभरकर सामने आती है, वह है पुलिस प्रशासन जो समाज के भ्रष्टाचारियों के समुचित दंड देते हुए उनका मार्गदर्शन करती है। इस प्रकार लोकतंत्र की जो गंभीर समस्या ‘भ्रष्टाचार’ है, उसमें पुलिस प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
लोकतंत्र का मूल है-मतदान कार्यक्रम, जिसमें यदि पुलिस-प्रशासन की कड़ी व्यवस्था न हो तो, शायद लोकतंत्र का होना ही असंभव होता। मतदान की अवधि में मानो कई प्रकार की समस्याएं उलझनें, परेशानियां आ खड़ी होती हैं, जिनका समापन पुलिस करता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की समस्या एक गंभीर समस्या होती है। कारण यह है कि एक ही राजनीतिक दल सदैव सत्ताधिकारी बने रहना चाहता है और उसकी यह चाह ही समस्याओं की जननी होती है। इन समस्याओं का निराकरण पुलिस प्रशासन अपनी पूरी लगन और निष्ठा के साथ करता है।
लोकतंत्र का अस्तित्त्व जनता के सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए होता है। इस संदर्भ में लोकतंत्र पुलिस की भूमिका को निश्चय ही बहुत महत्त्वपूर्ण बना देता है क्योंकि ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं से लेकर झोंपड़ी तक के व्यक्तियों के सुखदुःख में पुलिस समान रूप से क्रियाशील होती हैं। गांवों की संपूर्ण व्यवस्था के साथ विद्यालय में परीक्षा संपन्न कराने, हार, मेला प्रदर्शनी, जुलूस यहां तक कि धार्मिक कार्यक्रम तक संपन्न कराने में पुलिस-प्रशासन की अहम् भूमिका है। इसके बिना कोई भी कार्य कहीं भी संपन्न नहीं हो पाता है।
भारत में समयानुसार ऋतु परिवर्तन होते ही रहते हैं, फिर भी प्राकृतिक आपदाओं को कौन रोक सकता है? बाढ़, भूकंप, सूखा, महामारी जैसी प्राकृतिक विपत्तियां तो आती ही हैं। इन परिस्थितियों में पुलिस प्रशासन की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। अपने प्राणों को जोखिम में डालकर भी प्रत्येक व्यक्ति के प्राणों की रक्षा करने के गुरुत्तर दायित्व का निर्वाह पुलिस कर्मचारी करते हैं। इस प्रकार ये पूर्ण तथा स्पष्ट है कि यदि लोकतंत्र हमारे राष्ट्र का मस्तिष्क है तो पुलिस प्रशासन उसकी मांस-पेशियां, उसके हाथ, उसके पांव होते हैं। लोकतंत्र के प्रत्येकक्षेत्र में उनकी परम आवश्यकता होती है, चाहे वह फिर साधना का क्षेत्र हो, युद्ध का क्षेत्र हो, उद्यम का क्षेत्र, निर्माण का क्षेत्र हो या सुख-सुविधा का क्षेत्र हो।
आज के इस भौतिकवादी अर्थ-प्रधान युग में जीवन के सभी क्षेत्रों में, जीवन मूल्यों और मान्यताओं में गिरावट आई है। ऐसा तभी होता है, जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों से भटक जाता है, झूठी कल्पनाओं और निराधार महत्त्वाकांक्षाओं के हाथों में बिक जाता है। इसका दुष्परिणाम सामाजिक अशांति और अव्यवस्था के रूप में उभरकर हमारे सामने आता है, ऐसे लोगों को अपना मोहरा बनाने के लिए असामाजिक तत्त्व घात लगाकर बैठे रहते हैं। ऐसे भटके हुए व्यक्तियों का मार्गदर्शन पुलिस-प्रशासन द्वारा ही किया जाता है। इस समय हमें आवश्यकता है लोगों के हृदय में अंतस्त में विराजमान उस विश्वास की जो पुलिस-प्रशासन के माध्यम से लोकतंत्र को आलोकित करता है।
पुलिस में विश्वास से हमारा आशय उस वृत्ति से है, जिसके द्वारा हर असंभव कार्य संभव बनाया जाता है। विश्वास की महत्ता को हम युद्ध क्षेत्र में डटे हुए एक वीर के कथन से स्पष्ट कर सकते हैं-रण में बच्डक नहीं लड़ती, उसे सामने वाला सैनिक युद्ध नहीं करता, सैनिक का हृदय युद्ध करता है, बल्कि हृदय ही नहीं, उसका विश्वास युद्ध करता है। इस प्रकार हमें विश्वास रहा कि लोकतंत्र को सर्वाधिक सफल बनाने वाला पुलिस प्रशासन अपनी अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन समुचित रूप से करेगा, तो निश्चय ही सामाजिक व्यवस्था में सौमनस्य निहित होगा। मैं उनसे यह कहना चाहूंगा कि उन्हें, अपने कर्तव्यों उत्तरदायित्वों का समुचित रूप से निवर्हन करना चाहिए। क्योंकि उनका अपने कर्तव्यों के प्रति सदैव सचेष्ट रहना और पालन करना ही सफल लोकतंत्र का निर्माण, राष्ट्र की समृद्धि का आधार है।
इस प्रकार लोकतंत्र में पुलिस-प्रशासन की अद्भुत भूमिका होने के कारण व्यक्ति की स्वतंत्रता भी बाधित नहीं होती, अपितु और भी अधिक सुरक्षित हो जाती है। लोकतंत्र में पुलिस प्रशासन की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उसकी अलौकिक दीप्ति से दमटमाती हई मानव मर्ति सभी की श्रद्धा का भाजन बन जाती है। उसकी भूमिका लोकतंत्र के पहरी जैसी समझी जानी चाहिए। निर्भय समाज लोकतंत्र का आदर्श माना जाता है। निर्भय समाज की स्थापना शत-प्रतिशत पुलिस विभाग की कर्मठता पर निर्भर करती है। लोकतंत्र में पुलिस प्रशासन लोकतंत्र है।