Hindi Essay, Paragraph on “Communalism”, “सांप्रदायिकता” 700 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Examination.
सांप्रदायिकता
Communalism
समस्याएं मानव समाज का एक अपरिहार्य अंग हैं। ज्यों-ज्यों सभ्यता और विज्ञान उन्नति करते हैं, नयी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, उनके लिए उपचार खोज लिए जाते हैं या तो उन्हें बिलकुल भूल जाते हैं। या वे इतनी परिष्कृत हो जाती है कि वह समाज के लिए योगदान छोड़ जाती है। इस संबंध में प्रायः शासन ही सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावपूर्ण भूमिका निभाता है। परंतु क्या कभी किसी ने ऐसी समस्या के संबंध में भी सुना है, जो इसलिए भयंकरतर बनती चली गई। क्योंकि जिनका कर्तव्य उसे समाप्त करना था, वे ही उसे पोषित एवं उत्साहित करते रहे। भारत में सांप्रदायिकता ऐसी ही है, मुसलमानों और हिंदुओं के एक होने की समस्या हैं।
हिंदू धर्म हमेशा से दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु रहा है। इस्लाम धर्म सदा से ही असहिष्णु और भेदभावपूर्ण रहा है। जैसा कि भारतीय हिंदू समाज का अनुभव है, भारत पर आक्रमण करने वाले शासकों ने भारतीय धार्मिक स्थलों को ही अधिक क्षति पहुंचाई। मुसलमान शासकों ने अपनी नीतियों द्वारा हिंदू धर्म को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया। जबरन वे इस्लाम धर्म कुबूल करवाते थे। बिट्रिश राज्यकाल में कई बार दंगे हुए, जिसमें हिंदुओं को काफी क्षति उठानी पड़ी थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी हमारे देश के कई भागों में दंगे हुए, जिनमें हिदंओं को काफी क्षति हुई। भारत-पाक बंटवारे के बाद समझा गया कि सांप्रदायिकता की समस्या का इलाज हो गया है। परंतु दुर्भाग्यवश यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। जहां मुसलमानों की संख्या अधिक हैं, वहां जरा-सी चूक हुई नहीं की दंगे होने लगते हैं। अलीगढ़, मुरादाबाद, मेरठ, अहमदाबाद, मालवा में जैसे यह राज हो गया है। अब दिल्ली जैसे भाग भी इससे प्रभावित होने लगे हैं।
भारत में सांप्रदायिक गड़बड़ी का कारण मुसलमानों की अशिक्षा और अंधविश्वास है। ऐसा कहते हैं कि कुरान में कहा गया है कि विधर्मियों को मारो। गैरमुसलमानों को मुसलमान बनाओ, मुस्लिम धर्म को फैलाओ। वे सदैव धर्मांधता से ग्रसति रहे हैं। और इसी के चलते दंगे-फसाद हुए। यह भावनात्म्क उन्माद है। एक जुनून जो परे समाज को जहरीला बना देता है। आदमी-आदमी का शत्रु बन जाता है।
तभी तो डॉ. राहुल ने कहा है-
क्या आदमी होने की बस अब एक परिभाषा यही
क्यों आज कोई बोलता है, नहीं मधुरभाषा सही
हर आदमी की शक्ल पर स्याही फिरे ऐसा न हो
हां आदमी खुद आदमी से लड़ मरे ऐसा न हो।
सांप्रदायिकता की आग में जलता हुआ समाज विवेक शून्य हो जाता है। पहले ऐसी भावनाएं थी, आज भी है तभी तो कवि सचेत करता है-
हो हार अथवा जीत मिलती न मन को शांति है
एक घुप्प अंधेरा, बवंडर, यह सांप्रदायिक व्यक्ति है
बहता हुआ यह खून कहता मत बहाओ तुम इसे
जब भी कभी विपदारत हो, मांगेगी तुम दोनों किसी?
यह भावना हिंदू और मुस्लिम नेताओं के मूर्खतापूर्ण व्यवहार से बढ़ी है। किसी ने उचित और ठीक शिक्षा नहीं देने का प्रयत्न किया। गांधीजी ने सदैव उनके सामने सिर झुकाया। नेहरू स्वभाव से ही मुसलमान माने जाते थे। कांग्रेस अपनी नीति द्वारा उनके कट्टरपन का समर्थन ही किया है। मुस्लिम औरतों के बिल तो उनका अति ही था। उनके कुछ नेता तो खुलेआम सरकार, सेवा और संविधान का चुनौती देते रहे हैं। लेकिन उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई। फल हुआ कि मुसलमानों का विश्वास बढ़ता गया कि इस राष्ट्र में कुछ भी करते रहो, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
मुसलमानों का भारतीयकरण किया जाना चाहिए। वे हिंदुओं के साथ सौहार्द पूर्ण ढंग से व्यवहार करें। बुरे मुसलमानों को बुरा आदमी समझकर तिरस्कृत किया जाए। मस्जिद में केवल धार्मिक सभा हो, उसका राजनीतिक आयोजन न हो। प्रत्येक विद्यालय में मुस्लिम बच्चों के उचित शिक्षा की व्यवस्था हो। उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार न हो। सरकार कानून बनाते समय भेदभाव न बरते। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। अतः राजनीतिक लोगों को चाहिए कि वे धार्मिक विषयों का प्रचलन न करे। मुसलमान और हिंदुओं को मिलकर धार्मिक स्थलों का विवाद शांतिपूर्वक सुलझा लेने का प्रयास करना चाहिए।
यदि उदार और जागृत मुसलमान साथ दें तो भारतीय लोगों में शांति की भावना फैली रहेगी। राजनीतिज्ञ भी हिंदू और मुसलमानों को साथ लाने का प्रयास करें। तभी भारत की राष्ट्रीय एकता बनी रहेगी।