Hindi Essay, Paragraph on “Bharat mein Utpaad Patent Vyavastha “, “भारत में उत्पाद पेटेंट व्यवस्था” 600 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Examination.
भारत में उत्पाद पेटेंट व्यवस्था
Bharat mein Utpaad Patent Vyavastha
विश्व व्यापार संगठन के प्रति अपनी प्रतिद्वंद्विता को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार ने पेटेंट अधिनियम में संशोधन हेतु एक अध्यादेश गत 26 दिसंबर, 2004 को जारी किया। इसमें बहुत विवादित रही, उत्पाद पेटेंट व्यवस्था, जनवरी 2005 से प्रभावित हो गई है। इससे पूर्व 1985 व 2002 के पेटेंट (संशोधन) अधिनियमों के जरिए प्रक्रिया दवाओं, रसायनों व अनाज के मामलों में उत्पाद पेटेंट अभी तक लंबित था। विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकार समझौते के तहत भारत को दवाओं, खाद्य पदार्थों व रसायनों के मामले में उत्पाद पेटेंट व्यवस्था को 1 जनवरी, 2005 तक लागू करना था।
इस प्रतिबद्धता को संदर्भित अध्यादेश के जरिए पूरा किया गया है।
विश्लेषकों का मत है कि उत्पाद पेटेंट व्यवस्था लागू होने से शरू से कुछ वर्ष तक आते ही इसका अधिक प्रभाव आम व्यक्तियों तक न पड़े, किंतु उन्नत दवाओं, रसायनों, कृषि बीजों के मूल्यों में भारी वृद्धियां इसके परिणामस्वरूप अन्ततः होगी। विश्व व्यापार संगठन ने बौद्धिक संपदा अधिकार समझौते के तहत नयी खोजों पर आधारित उत्पादों के 20 वर्ष तक विपणन का विशेषाधिकार केवल शोधनकर्ता व्यक्ति अथवा कंपनी को प्राप्त होगा तथा उसे उनके मूल्य निर्धारण की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। इन आलोचनाओं का खंडन करते हुए सरकार ने दावा किया है कि नये अध्यादेश के कारण न तो दशाएं आम आदमी की पहुंच से बाहर होंगी और न ही भारतीय उद्योगों पर इसका बुरा असर पड़ेगा। नये पेटेंट में भारतीय फार्मी इंडस्ट्री को उन्नति के पहले से अधिक अवसर प्राप्त होंगे तथा बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से दवाएं सस्ती भी हो सकती हैं। इस संदर्भ में तीन तथ्यों का हवाला सरकार ने दिया है। एक तो यह कि बाजार में उपलब्ध 97 प्रतिशत दवाएं पेटेंट के दायरे में आती ही नहीं, इसलिए उनके महंगा होने का सवाल ही नहीं पैदा होता, दूसरे पेटेंट के दायरे में आने वाली बाकी 3 प्रतिशत दवाओं में भी अनेक ऐसी हैं, जिनके बाजार में विकल्प उपलब्ध हैं और तीसरे भारत सरकार ने संशोधित कानून में जनहित की दृष्टि से विशेष प्रावधान ऐसे रखे हैं, जिनके जरिए सरकार किसी भी पेटेंट को रद्द करने, पेटेंट शुद्ध प्रोजेक्ट का आयात करने का किसी भी आविष्कार को अपने लिए इस्तेमाल करने का अधिकार रख सकेगी।
विदित है कि एक दशक पूर्व भारत में पेटेंट कानून की बात डराती थी, क्योंकि तब ऐसे कानून से सिर्फ बहुर्राष्ट्रीय कंपनियों को फायदा होता दिखाई देता था, किंतु आज हालात बदल गए हैं। अब स्वयं भारतीय दवा कंपनियों को विश्व बाजार में झंडे गाड़ने के लिए पेटेंट संरक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा है कि 10 वर्ष पूर्व भारत का फार्मा निर्यात एक हजार करोड़ रुपये था, जो आज बढ़कर 14 हजार करोड़ रुपये हो गया है। भारतीय फार्मा निर्यात अब प्रति वर्ष 30 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है और कंपनियां अब अपने टर्न ओवर का 6 से 8 प्रतिशत भाग अनुसंधान में लगा रही हैं। इन परिस्थितियों में वर्तमान के कड़े पेटेंट कानून से भारतीय दवा बाजार को नुकसान नहीं, फायदा होने जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि ट्रिप्स समझौते के अनुपालन हेतु 1970 के पेटेंट अधिनियम में यह तीसरा संशोधन 20 दिसंबर, 2004 के अध्यादेश के जरिए किया गया तथा 23 मार्च, 2005 को यह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया। पहला संशोधित मार्च 1999 में अधिसूचित किया गया था, जो 1 जनवरी, 1995 से प्रभावी हुआ था, जून 2002 में अधिसूची दूसरा संशोधन 1 जनवरी, 2005 से प्रभावी हुआ है।
संक्षेप में कह सकते हैं पेटेंटे उत्पाद व्यवस्था को बेहतर बनाने और उपयोगिता की दृष्टि से भी विशेष प्रभावी करने के लिए इसकी सामाजिक आवश्यकता भी क्योंकि इससे उत्पाद वस्तुओं में बेहतर बढ़ोतरी होगी और आम आदमी को भी आवश्यकतानुसार उचित मूल्य-दर पर मिल सकेंगी।