Hindi Essay-Paragraph on “Bal-Shram Samasya ” “बाल-श्रम समस्या” 400 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Competitive Examination.
बाल-श्रम समस्या
Bal-Shram Samasya
भारत एक विशाल देश है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद भारत के नागरिकों की गरीबी हटाने के लिए अनेक वृहद् एवं सीमित योजनाएं समय-समय बनती गईं। फिर भी गरीबी की मान्य सीमा-रेखा से भी निचली सतह पर जीवन जीने को विवश लोगों की संख्या यहां कम नहीं हो सकी। बाल-श्रमिक समस्या का संबंध मुख्य रूप से गरीबी से है। जिन नन्हें-मुन्नों के खेलने-खाने या पढ़-लिखकर अपना भविष्य संवारने के दिन होते हैं, उन दिनों वे बच्चे भखे-प्यासे कठोर श्रम करने के लिए विवश होते हैं। उन बच्चों को केवल काम ही नहीं करना पड़ता, बल्कि निर्दयी मालिकों की भद्दी गालियां भी सुननी पड़ती हैं। आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक वर्ष बाल दिवस मनाया जाता है। बच्चों को भविष्य का नागरिक घोषित करके उचित लालन-पालन को राष्ट्रीय एवं महत् मानवीय कर्तव्य कहा जाता है, परंतु वस्तु स्थिति यह है कि बाल-श्रमिकों की समस्या और स्थिति सुधारने के स्थान पर और भयावह होती जा रही है।
भारत में बाल-श्रमिकों की समस्या कोई नयी बात नहीं है। यह बाल-श्रमिक दूर-देहात और पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक मिलते हैं। अब भी वैसे बाल-श्रमिक होते हैं जिनका परिवार दरिद्र भी है और अशिक्षित भी। आज केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही बालश्रमिक नहीं मिलते, दूसरे क्षेत्रों में भी बाल-श्रमिक देखे जाते हैं। ये गरीब और अशिक्षित होते हैं। आजकल इन श्रमिकों का काम केवल घरों तक सीमित नहीं हैं ये अब होटलों, कारखानों, दुकानों आदि स्थानों पर कठोर श्रम करते देखे जा सकते हैं। घोर गरीबी, माता-पिता के कठोर व्यवहार आदि उन्हें बाल-श्रमिक बनने पर मजबूर कर देते हैं।
निर्धनता, दुव्यर्वहार, कुसंगति आदि भी इसके कारण हैं। बाल-श्रम के कुछ परंपरागत कारण भी हैं। लोहार, मोची, बढ़ई आदि के बच्चे स्वाभाविक रूप से पिता के साथ काम में लग जाते हैं। जिनसे वे अशिक्षित रह जाते हैं।
बाल-श्रमिक वयस्कों की तुलना में कम दर पर और सुविधापूर्वक मिल जाते हैं। इनसे मालिकों को कोई खतरा भी नहीं रहता है। कम दाम और मनमाना काम यह मनोवृत्ति इन बेचारों के शोषण के पीछे साफ स्पष्ट देखी जाती है।
वैसे सरकार ने बाल-श्रम के विरोध में कानून भी बनाए हैं, परंतु ये कानून कम कारगर हैं। जबकि कुछ बच्चों को उसके मां-बाप बेचने को विवश होते हैं। इन बच्चों से मालिक कठोर व्यवहार करते हैं और कठोर श्रम करवाते हैं।
बच्चे राष्ट्र की संपत्ति और भविष्य के नागरिक हुआ करते हैं। अतः प्रत्येक राष्ट्र का यह पहला कर्तव्य होता है कि अपनी इस चल संपत्ति की रक्षा और विकास की तरफ उचित ध्यान दे। बाल-श्रम के उन्मूलन के लिए शिक्षा एवं पोषाहार की व्यवस्था करे। इस समस्या का हल करना जनता एवं सरकार की जिम्मेवारी है। यदि इस समस्या का निदान नहीं किया गया तो देश का भविष्य अंधकारमय होता रहेगा।
अतः-
बाल-श्रम की समस्या का हो उचित निदान।
नन्हा जीवन होवे विकसित भरे सभी में ज्ञान ॥