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Hindi Essay-Paragraph on “Aarakshan ” “आरक्षण” 500 words Complete Essay for Students of Class 10-12 and Subjective Examination.

आरक्षण

Aarakshan 

‘आरक्षण’ का अर्थ होता है-चारों तरफ से रक्षा का प्रयास करना। भारतीय नेताओं की मानसिकता यह थी कि समाज के दबे, कुचले, दलित, पिछड़े लोगों को भी अवसर दिया जाए। उस समय यह भावना थी कि कुछ प्रतिशत लोग अयोग्य भी हैं, तो योग्य का पद उन्हें भी दिया जाए। अगर ऐसा नहीं होगा, ते वे सदा पिछड़े के पिछड़े रह जाएंगे और विकास के लाभ से सदा वंचित रह जाएंगे। उस समय कुछ सीमित जातियों को इस श्रेणी में रखा जाएगा। राजनीतिक दल के नेताओं ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए आरक्षण की सीमा का विस्तार कर दिया और उस सीमा का लगातार विस्तार होता जा रहा है। आज आरक्षण के कारण अयोग्य व्यक्ति पदों पर आसीन होकर कार्य पूर्ण नहीं कर पाते हैं। दूसरी तरफ योग्य नौजवान अपनी प्रतिभा के लिए सड़कों पर धल फांकते जाते हैं। वस्तुतः आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए, न कि वर्गीय या जातीय। लेकिन इसे आज वर्ग/ जाति विशेष का रूढ़ बना दिया गया है। डॉ. अंबेडकर ने कहा था, “आरक्षित बनकर नहीं, बुद्धिमान बनकर ही समाज में आर्थिक और राजनीतिक शक्ति प्राप्त की जा सकती है।”

हमारे देश में आरक्षण का प्रयोग अंग्रेजी सरकार की देन है। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को राष्ट्रीय स्तर तक लाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में प्रावधान किया गया है। इनके अनुसार इन जातियों के सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक क्षेत्र में अनेक सुविधाएं दी जाती है। इन्हीं सुविधाओं को आरक्षण कहा जाता है।

पिछड़े वर्गों के लिए प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 340 में किया गया है। संविधान के इसी प्रावधान को कार्य रूप देने के लिए राष्ट्रपति ने 29 जनवरी, 1951 में काका साहब कालेलकर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया, जिसका उद्देश्य पिछड़ों का उत्थान था और आयोग का नाम था-प्रथम पिछड़ा आयोग। आयोग की रिपोर्ट पर तत्कालीन सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। सन् 1989 में सार्वजनिक निर्वाचन के समय राष्ट्रीय मोर्चा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में आरक्षण को एक प्रमुख मुद्दा बनाया और वादा किया कि सरकार बनने पर हम मंडल आयोग को लागू करेंगे। मोर्चा सरकार बनी और आरक्षण को लागू किया। मंडल आयोग के समर्थन और विरोध में जन आंदोलन हुए। जिससे पूरा राष्ट्र प्रभावित हुआ। परंतु आरक्षण को लागू कर दिया जाए।

देश के बहुमुखी विकास के लिए समाज में समानता की आवश्यकता है। जब तक समाज का एक वर्ग सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा रहेगा। तब देश और समाज की प्रगति असंभव है। उच्च वर्ग को भी यह सोचना चाहिए। लेकिन जातिगत आधार पर मिलने वाला आरक्षण न्याय संगत नहीं है। आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए। गरीब लोग उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग दोनों में ही होते हैं। अतः इस आधार पर आरक्षण से सामाजिक न्याय का गला दबाता है। सामाजिक न्याय और समता के लिए लोगों को इसके निर्धारण पर विचार करना आवश्यक होगा। आरक्षण भी एक निश्चित सीमा तक ही लागू होनी चाहिए। समाज के आरक्षित वर्ग अच्छी स्थिति में आ जाते हैं, तब उनको मिलने वाली सुविधा रोक देनी चाहि। न्याय की वह कसौटी है, जिस पर सरकार खरा नहीं उतर पाती है। वोट की राजनीति में आरक्षण को बीच में मुद्दा बनाकर राजनीति की रोटी सेंकी जाती है, जो नहीं होना चाहिए।

500 Words Essay

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