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Hindi Essay on “Yadi me Border Sipahi Hota”, “यदि मैं सीमान्त सिपाही होता” Complete Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

यदि मैं सीमान्त सिपाही होता

Yadi me Border Sipahi Hota

निबंध नंबर : 01

प्रस्तावना : भारत विशाल देश है। इसलिए इसका सीमांत भी अधिक विस्तृत है। इसके सीमांत के छोरों में बड़े-बड़े पहाड़, जंगल, मरुस्थल, नगर और सागर आदि हैं। चीन, पाकिस्ताने, बंगलादेश, नेपाल, बर्मा और तिब्बत आदि देशों की भूपटियाँ इसके सीमान्त छोरों पर पड़ती हैं।

सीमान्त की महत्ता : सुरक्षा की दृष्टि से सीमांत छोरों की अधिक महत्ता है; क्योंकि इन्हीं से परदेशियों का देश के भीतर प्रवेश करने का डर रहता है। इसके अलावा यदि सीमान्त के राष्ट्रों से किसी कारणवश शत्रुता हो जाए, तो ये हर प्रकार से चिन्ता का विषय बन जाते हैं, ऐसी स्थिति में शत्रु राष्ट्रों से अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सीमान्त की ओर ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है। वहाँ पर सुरक्षा सैनिक लगाने पड़ते हैं। हमारे सीमान्त छोर बड़े ही मुसीबत वाले हैं। चीन और पाकिस्तान आदि देश छेड़छाड़ करते रहते हैं। इसलिए हम इनकी ओर पड़ने वाली विस्तृत भूपट्टियों पर शस्त्रों से सज्जित सेना को सतर्क रखते हैं। इससे हमें रक्षा में बहुत साधन लगाने पड़ रहे हैं। हमारे नेता बराबर शांति और मैत्री की अपील करते हैं। शिमला-समझौते पर चलने के लिए कहते हैं; किन्तु पाकिस्तान ऐसा हठधर्मी राष्ट्र है कि उस पर कुछ प्रभाव पड़ता ही नहीं। यह दिनोंदिन शत्रुता की ओर अग्रसर हो रहा है। कोई नहीं जानता कि इसकी शत्रुता व हठधर्मी का कहाँ अंत होगा ?

देश का एक सीमांत छोर : हमारे देश का राजस्थान का सीमांत छोर बहुत ही पास पड़ता है। यह क्षेत्र मरुस्थली होते हुए भी पाकिस्तान की दुष्टता से आतंकित है। कभी-कभी पाकिस्तानी सैनिक हमारे गाँवों में घुस कर पशुओं को हाँक ले जाते हैं। कभी-कभी चोरी से फसलें भी काट ले जाते हैं। कभी-कभी छोटा-मोटा हमला भी कर देते हैं। फलतः गाँवों में आतंक फैला रहता है। हमारे ग्रामीण डरे से रहते हैं। हमारे सिपाही भी कंधों पर बंदूक रखे, रात-दिन सीमान्त के आसपास बसे हुए ग्रामों की रक्षा करते हैं। कभी-कभी इनकी शत्रु सैनिकों से मुठभेड़ भी हो जाती है।

सीमांत के सिपाही का फर्ज : सीमांत के सिपाही का फर्ज है। कि वह शत्रु के सैनिकों को छेड़छाड़ करने पर और सीमा का अतिक्रमण करने पर बंदी बनाए तथा आक्रमण करने की स्थिति में गोलियों से भून दे। यदि आवश्यकता पड़े, तो देश की रक्षार्थ अपनी आहुति दे दे।

मेरी आकांक्षा : मेरी चिर अभिलाषा है कि मेरी नियुक्ति सीमांत पर हो जाए। मैं जैसलमेर की सीमा पर अपने फर्ज को पूरा करना चाहता हूँ। मैं बहुत दिनों से सेना में रह कर देश की सेवा कर रहा हूँ। मैं सदैव अधिकारियों से प्रार्थना करता रहता हूँ कि मेरी नियुक्ति सीमांत पर कर दें। काश ! ऐसा हो जाए।

उपसंहार : मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सीमांत की धरती बलिदान के लिए पुकार रही है। यदि इच्छा पूर्ण हो जाए, तो मैं उन पाकिस्तानी दस्युओं को मजा चखाऊँ जो रात्रि में घुसकर भारतीय पशुओं को चुरा कर ले जाते हैं। देखें, वह दिन कब आता है ?

निबंध नंबर : 02

यदि मैं सिपाही होता

Yadi mein Sipahi Hota

पता नहीं क्यों, जब मैं बहुत छोटा था और मैंने पहली बार एक वर्दीधारी सिपाही को देखा था, तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा था। जाने-अनजाने तभी मेरे मन-मस्तिष्क में यह इच्छा पैदा हो गई थी कि मैं भी यह वर्दी धारण कर इसी की तरह रोब-दाब वाला दिखाई दूँगा। बनूँगा, तो सिपाही ही बनूँगा। फिर मैं जैसे-जैसे बड़ा होता गया, सिपाही और उसके कार्यों के प्रति मेरी जानकारी भी बढ़ती गई। कुछ होने पर जब मैं अपने घर से बाहर आने-जाने लगा, पढ़ाई करते हुए नौवी-दसवीं कक्षा का छात्र बना; तब सिपाहियों का आम लोगों के साथ किया जाने वाला व्यवहार मुझे चौंका देता। मैंने पुस्तको में पढ़ा-सुना तो यह था कि पुलिस वर्दीधारी सिपाही जनता और उसके धन-माल की सुरक्षा के लिए होते हैं। लोगों को अन्याय-अत्याचार से बचाने के लिए इस महकमें का गठन और सिपाहियों को भर्ती कराया जाता है। लेकिन ये तो अपने वास्तविक कर्त्तव्य और उद्देश्य को भूल कर उलटे आम जनता पर अत्याचार करते हैं। लूट-खसोट में भागीदारी निभाते, रिश्वत लेते और भ्रष्टाचारी अराजक-असामाजिक तत्त्वों का साथ देकर उन्हें सजा दिलाने के स्थान पर उन का बचाव करते हैं। यह सब देख-सुन कर मन खट्टा हो कर भय-विस्मय से भर उठता है। सोचता हूँ कि जहाँ रक्षक ही भक्षक बन रहा है, इस देश का क्या होगा। तब साथ ही मेरे मन में एकाएक यह विचार भी अंगड़ाई लेकर जाग उठा करता है कि यदि मैं सिपाही होता, तो-?

सचमुच, यदि मैं सिपाही होता तो यह बनने के उद्देश्य की रक्षा करने के लिए सभी तरह के निश्चित-निर्धारित कर्त्तव्यों का पूरी तरह से पालन करता। वर्दी की हर तरह से प्रयत्न करके लाज बचाता और जन-सुरक्षा का जो सिपाही का प्रमुख कर्त्तव्य होता है, प्राण-पण की बाजी लगा कर भी उसका सही ढंग से निर्वाह करता। जिन के साथ किसी तरह का अन्याय हो रहा है, अत्याचार किया जा रहा है. उन सब की रक्षा के, उन्हें न्याय दिलवाने के लिए सीना तान कर खड़ा हो जाता। अन्यायियों-अत्याचारियों के कदम कहीं और कभी भी एक क्षण के लिए भी टिकने न देता। आज पुलिस के सिपाहियों पर कोई भी दुर्घटना को देख कर भी अनदेखा करने, अराजक-असामाजिक तत्त्वों का बचाव करने, बात-बेबात में घूस लेने, कर्त्तव्य से कोताई करने जैसे जो तरह-तरह के दोषारोपण किए जाते हैं, निरन्तर प्रयत्न करके मैं इन सभी तरह के आरोपों और बुराइयों-दोषों का निराकरण कर देता।

आज व्यापक और व्यावहारिक जीवन समाज में अन्य कई प्रकार की बुराइयाँ बढ़ती . हई दिखाई दे रही है। लूट-पाट, मार-पीट, काला बाजार और सामान्य सी बात पर मार-पीट हो जाने. गोली-लाठी चल जाने, घातक छुरेबाजी और चोरी-चकारी का बाजार चारों तरफ गर्म है। लोग यह बात उचित ही मानते और कहा करते हैं कि यदि देश की पलिस ईमानदार हो, तो यह सब हो ही नहीं सकता। अक्सर यह सही दोषारोपण भी किया जाता है कि इस तरह के सभी कुकृत्य पुलिस-सिपाहियों की मिली भगत से, उनकी आँख के नीचे ही किये जाते हैं। यदि मैं सिपाही होता, तो अपनी कर्त्तव्य परायणता से, अपनी लगन और परिश्रम से पुलिस पर लगने वाले इस तरह के सभी धब्बों को धोकर साफ करने का प्रयास करता। जीवन और समाज में पनप रहीं सभी तरह की बुराइयों के विरुद्ध जहाँ तक और जिस प्रकार भी सम्भव हो पाता, अपनी सामर्थ्य के अनुसार खुला संघर्ष छेड देता।

मैं तो जानता और समाचारपत्रों में अक्सर पढ़ता भी रहता हूँ कि आज देश में चारों ओर चोरी-छिपे नशाखोरी तो बढ़ ही गई है, नशीले पदार्थों का धंधा भी खूब जोर-शोर से फल-फूल रहा है। अवैध और जहरीली शराब खुले आम बिक कर, जहर साबित होकर बेचारे गरीब की जान ले रही है। शराब-माफिया राजनीतिज्ञों और पुलिस वालों का सरक्षण प्राप्त करके ही यह जान लेवा जहर का धधा निरन्तर चल रहा है। जहरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। दूसरी ओर स्मैक, बुराउन शूगर, हशीश जैसे प्राण घातक नशीले पदार्थों की बिक्री भी चल रही है। यह जानकर ही खुले घूमने वाले मौत के इन व्यापारियों पर कोई हाथ नहीं डालता। लेकिन यदि मैं सिपाही होता, तो यह जानते हए भी कि इतनी बड़ी पुलिस-व्यवस्था के सागर में, भ्रष्टाचार के उमड़ते सैलाब में सिपाही होने के कारण मेरी हस्ती एक नन्ही-सी बूंद के बराबर भी नहीं, इस तरह की सभी बराइयों, छोटे-बड़े सभी तत्त्वों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा पता और सिद्ध कर देता कि सभी को एक-जैसा समझना उचित कार्य नहीं है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि मेरा मन इस प्रकार की बुराइयों, उनके साथ जुड़े लोगो बात सुन कर भर उठता है। भभक कर दहक उठता है। यह देखकर दुःख से भर उठता है कि सब-कुछ जानते-समझते हुए भी समर्थ लोग मचल मार कर अपनी ही ज-मस्ती में मग्न हैं। यह ठीक है कि मेरे अकेले के करने से कुछ विशेष हो नही पाता, लेकिन यदि मैं सिपाही होता, तो अपने कर्तव्यनिष्ठ संघर्ष से एक बार सभी की नीद तो पश्य ही हराम कर देता-काश ! मैं सिपाही होता।

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