Hindi Essay on “Swavalamban” , ”स्वावलम्बन ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
स्वावलम्बन
Swavalamban
Best 4 Essay on ” Swavalamban”
निबंध नंबर: 01
स्वावलम्बन में दो शब्द हैं- स्व और लम्बन। एक का अर्थ है अपना और अवलम्बन का अर्थ है ‘सहारा’। इस प्रकार स्वावलम्बन का अर्थ हुआ ‘अपना सहारा स्वयं बनना’। दूसरे शब्दों में अपने आत्मबल को जागृत करना ही स्वावलम्बन है। राष्ट्र कवि दिनकर स्वावलम्बी व्यक्ति के लक्षण बताते हुए कहते हैं-
अपना बल तेज जगाता है। सम्मान जगत् से पाता है।
स्वावलम्बन के दो पहलू हैं- आत्मनिश्चय और आत्मनिर्भरता। स्वावलम्बी व्यक्ति को असम्भव कार्य भी सम्भव दिखने लगता है। इसे इस दृष्टान्त से अच्छी तरह समझा जा सकता है। एक बार विधाता अपनी सृष्टि को देखने निकले। धरती पर पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक किसान फावड़ा लेकर विशाल पर्वत की जड़ को खोद रहा है। उन्होंने किसान से इसका कारण पूछा किसान ने बताया, ‘‘बादल आते हैं और इस पर्वत से टकराकर इसकी दूसरी ओर वर्षा कर देते हैं मेरे खेत सूखे ही रह जाते हैं। अतएव मैं इसे हटाकर ही दम लूंगा।’’ विधाता किसान के स्वावलम्बन से प्रभावित होकर आगे बढ़े। तभी पर्वत गिड़गिड़ाने लगा- ‘‘भगवन्! इस किसान से मेरी रक्षा कीजिए।’’ विधाता ने पूछा- ‘‘तुम एक छोटे से किसान से इतने भयभीत हो।’’ पर्वत बोला-‘‘किसान छोटा है तो क्या वह स्वावलम्बी है। उसका आत्मविश्वास अडिग है। इस दोनों के सहारे वह मुझे हटाकर ही दम लेगा।’’
इसके ठीक विपरीत छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी दूसरे पर आश्रित रहना परावलम्बन कहलाता है। परावलम्बी व्यक्ति हाथ रहते लूला और पैर रहते लंगड़ा बना रहता है। जिसे अपने पैरों पर खड़े रहने की शक्ति नहीं है, वह दूसरांे का कन्धा पकड़कर कब तक चलता रहेगा। एक झटका खाते ही ऐसा व्यक्ति धराशायी हो जाता है। इसे इस दृष्टान्त से समझा जा सकता है। मेज के सहारे एक शीशा खड़ा था। चंचल बालक ने मेज को अलग हटा दिया, शीशा गिरकर चूर हो गया। अतः जीवन में जो व्यक्ति दूसरे के सहारे खड़ा होना चाहता है, उसका अन्त भी ऐसा ही करूणामय होता है। कहा भी गया है- ‘‘ईश्वर भी उसकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता आप करता है।’’
राम सहायक उनके होते, जो होते हैं आप सहायक
विश्व-इतिहास ऐसे महापुरूषों के उदाहरणों से भरा है, जिन्हांेने स्वावलम्बन का सहारा लिया। महाकवि तुलसीदास बचपन से ही अनाथ थे। वे दाने-दाने के मुहताज रहते थे। फिर भी अपनी आत्मनिर्भता के सहारे ही स्वतन्त्र लेखन का कार्य कर भारत के लोक कवि कहलाते थे। वहीं विलासी राजाओं का सहारा लेकर केशवचन्द्र ने अपनी ख्याति सीमित कर ली। एक बार अकबर ने भी सूरदास को वैभव का सहारा देना चाहा, तो सूरदास ने इनकार करते हुए कहा था-
मोको कहां सीकारी सों काम।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एक अति दीन परिवार की सन्तान थे। लैम्प पोस्ट की रोशनी में पढ़ते थे, किन्तु उन्होंने जो यश अर्जित किया, उसका आधार स्वावलम्बन ही था। अब्राहम लिंकन जूते की सिलाई करते थे लेकिन अपनी आत्मनिर्भरता और अपने आत्मनिश्चय को जगाकर एक दिन वे अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र के राष्ट्रपति पद पर जा बैठे। इसी तरह शिवाजी, न्यूटन, अकबर, नेपोलियन, शेरशाह, बंेजामिन, महात्मा गांधी इत्यादि अनगिनत नाम गिनाए जा सकते हैं, जिन्होंने स्वावलम्बन के बल पर व्यापक ख्याति अर्जित की।
इस प्रकार, स्वावलम्बन ही जीवन है और परावलम्बन मृत्यु। स्वावलम्बन पुण्य है और परावलम्बन पाप। अतः हर माता-पिता को चाहिए कि वे बचपन से ही अपने बच्चों में स्वावलम्बन की भावना भरें। छात्रों को अपने छोटे-छोटे कार्य, जैसे कमरे की सफाई, वस्त्र की धुलाई आदि स्वयं करने की आदत डालनी चाहिए। ऐसे छात्र ही आगे चलकर स्वावलम्बी नागरिक बनते हैं। और इनके सहयोग से एक स्वावलम्बी राष्ट्र का निर्माण होता है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की तरह हमें भी ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए।
यह पापपूर्ण परावलम्बन चूर्ण होकर दूर हो।
फिर स्वावलम्बन का हमें प्रिय पुण्य पाठ पढ़ाइए।
निबंध नंबर : 02
स्वावलम्बन
Swavalamban
स्वावलम्बन का अर्थ है अपने पैरों पर खड़ा होना। इसका हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके द्वारा ही हमारी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक उन्नति हो सकती है। इसकी भावना हमें छोटे-छोटे पशुओं और पक्षियों में भी मिलती है। वे जन्म लेने के बाद ही अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करने लगते हैं। बनैले पशु तो बेचारे थोडे दिनों बाद ही अपने आहार के लिए फिरने लगते हैं। वे पालतू पशुओं के समान किसी पर अवलम्बित नहीं रहते हैं।
स्वावलम्बन के द्वारा ही मानव में आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न होती है। पुरुषार्थ परछाईं के रूप में हमारे साथ फिरता रहता है। यदि हममें यह गुण न हो, तो कभी उन्नति नहीं कर सकते हैं और सदैव के लिए दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाले पशुओं के समान हो जाते हैं।
स्वावलम्बी मनुष्य ही देश और समाज का कल्याण कर सकता है। स्वावलम्बन ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिज्ञों, कर्णधारों, वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों और विद्वानों को जन्म दिया है। इन्हीं के द्वारा विश्व प्रगतिशील बन सका और उनमें बन्धुत्व की भावना फैल सकी है। आज विदेशी राष्ट्र इन्हीं के द्वारा उन्नति के शिखर पर पहुँच चुके हैं। इनकी गौरवपूर्ण अमर कथाओं से विश्व के इतिहास के पन्ने चमक रहे हैं। इसी की शक्ति के द्वारा श्री टाटा साधारण मनुष्य से धन कुबेर बन गए। नैपोलियन ने इसी के द्वारा राज्य की स्थापना की। राणा प्रताप ने मुट्ठी भर भीलों से ही शाही सेना का मुकाबला किया।
आज के विद्यार्थी को भी स्वावलम्बी बनना चाहिए। ये इसी के सहारे निर्धनता के अभिशाप से बचकर अपनी शिक्षा को पूर्ण कर सकते हैं। धनवान बच्चे इस गुण से वंचित होते हैं। उदर पूर्ति के लिए पैतृक सम्पत्ति मिल जाती है। अतः वे परिश्रम से दूर भागते हैं। यदि भाग्यवश पैतृक सम्पत्ति नष्ट हो जाती है, तो उन्हें भूखों मरना पड़ता है। सभी को चाहिए कि वे स्वावलम्बी बनें।
स्पष्ट है कि स्वावलम्बी के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। वह सुयश का भागी बनता है.
निबंध नंबर: 03
स्वावलंबन
Swavalamban
- जीवन में महत्त्व।
- सफलता की प्रतीक।
- स्वावलंबी मनुष्य के गुण।
‘स्वावलंबन की एक झलक पर न्योछावर कबेर का कोष‘ ।
स्वावलंबन के समक्ष कुबेर का कोष भी तुच्छ है। स्वावलंबन का अर्थ है आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास के बल पर निरंतर अपने पथ पर बढ़ते जाना। स्वावलंबी मनुष्य कभी परतंत्र नहीं होता। वह कभी दसरों का मख नहीं देखता। कठिन से कठिन कार्य को अपने आप करने की क्षमता व हिम्मत रखता है। स्वावलंबन वह दैवी गण है जिसके सहारे व्यक्ति उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाता है और शिखर पर पहुँचता है। परमुखापेक्षी व्यक्ति न तो स्वयं कभी उन्नति कर पाता है और न अपने देश और समाज का कल्याण कर पाता है। स्वावलंबी मनुष्य के समक्ष तो ईश्वर को भी झुकना पड़ता है। सफलता और समृद्धि परिश्रमी और स्वावलंबी मनुष्य के चरण चूमती है। आज विश्व के कितने ही देश स्वावलंबन के बल पर कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं। विश्व युद्ध की विभीषिका से जर्जर जापान परिश्रम और स्वावलंबन के बल पर पुनः विश्व का प्रमुख औद्योगिक और विकसित देश बन गया। रूस और अमेरिका यदि उन्नति और विकास के शिखर तक पहुँच सके तो किसी और के सहारे से नहीं बल्कि स्वावलंबन के बल पर। एकलव्य यदि इतना बड़ा धनुर्धर ही बना तो स्वावलंबन के बल पर। एक ही नहीं अनेक उदाहरण ऐसे हैं जब मनुष्य ने स्वावलंबन के बल पर सफलता के झंडे गाड़ दिए। शिवाजी ने मुट्ठी भर मराठा सिपाहियों की मदद से औरंगजेब की विशाल सेना को तितर-बितर कर दिया। एक साधारण स्थिति के व्यक्ति नेपोलियन को स्वावलंबन ने महान विजेता बना दिया। कोलंबस ने अमेरिका की खोज कर ली। स्वावलंबी मनुष्य में आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, दृढ़ संकल्प, साहस, धैर्य और आत्मबल जैसे गुण विकसित हो जाते हैं। कायरता, भय, संशय, चिंता, आलस्य जैसे अवगुण उससे कोसों दूर रहते हैं। स्वावलंबी व्यक्ति एकवीर पुरुष की तरह राह की सभी बाधाओं का रौंदता-कुचलता निर्भीकता से आगे बढ़ता जाता है। जिस देश के नागरिक स्वावलंबी होते हैं उस देश में कभी भुखमरी, बेरोजगारी और निर्धनता नहीं होती। आज आवश्यकता है कि हम सभी भारतवासी स्वावलंबी बनें, कठोर परिश्रम करें और राष्ट्र की उन्नति में सहायक हों। स्वावलंबन ही राष्ट्र के बल, गौरव और विकास का द्वार है। हम और हमारा समाज जितना स्वावलंबी होगा, राष्ट्र भी उतना ही गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकेगा।
निबंध नंबर: 04
स्वावलंबन
Swavalamban
- स्वावलंबन का अर्थ
- स्वावलंबन आत्म-विश्वास की सीढ़ी
- स्वावलंबन समाज और राष्ट्र काहितैषी
स्वावलंबन का अर्थ है अपने पैरों पर खड़ा होना। इसका हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके द्वारा ही हमारी आर्थिक मानसिक और शारीरिक उन्नति हो सकती है। ईश्वर भी इसी गुण वाले की सदैव रक्षा करते हैं। वे कभी भी आलसी की सहायता नहीं करते हैं। स्वावलंबन की भावना हमें छोटे-छोटे पशुओं और पक्षियों में भी मिलती है। वे जन्म लेने के उपरांत ही अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करने लगते हैं। बनैले पशु तो बेचारे थोड़े दिनों बाद ही अपने आहार के लिए फिरने लगते हैं। वे पालतु पशुओं के समान किसी पर अवलंबित नहीं रहते हैं। इसके द्वारा ही मानव हृदय में आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न होती है। इससे हमारा उत्साह बढ़ जाता है और अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ता के साथ चले जाते हैं। पुरुषार्थ परछाई के रूप हमारे साथ फिरता रहता है। यदि हम में यह गुण न हो तो कभी उन्नति नहीं कर सकते हैं और सदैव के लिए दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाले पशु के समान हो जाते हैं। स्वावलंबी मनुष्य ही देश और समाज का कल्याण कर सकता है। इसी ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिज्ञों, वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों और विद्वानों को जन्म दिया है। इसी के द्वारा विश्व प्रगतिशील बन सका है और उसमें बंधुत्व की भावना फैल सकी है। आज विदेशी राष्ट्र इसी के द्वारा उन्नति के शिखर पर पहुंच चुके हैं। इसकी गौरवपूर्ण अमर-कथाओं से विश्व के इतिहास के पन्ने चमक रहे हैं। इसी की शक्ति के द्वारा श्री टाटाजी साधारण मनुष्य से धन कुबेर बन गए। नेपोलियन ने इसी के द्वारा राज्य की स्थापना की। अत: कह सकते हैं कि स्वावलंबी के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। वह सुयश का भागी बनता है। इसलिए प्रत्येक को स्वावलंबी बनना चाहिए।