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Hindi Essay on “Swatantrata Diwas ka Mahatva”, “स्वतन्त्रता दिवस का महत्व” Complete Essay, Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

स्वतन्त्रता दिवस का महत्व

Swatantrata Diwas ka Mahatva 

प्रस्तावना : भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतवासी अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए निरन्तर संग्राम करते रहे हैं। उन्होंने कभी भी किसी के समक्ष झुककर पराधीनता स्वीकार नहीं की। अत: रणकेसरी प्रताप, हिन्दुओं के गौरवगुमान शिवा, वीर राठौर दुर्गादास, वीर बुन्देला छत्रसाल, वीर बन्दा वैरागी, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्दसिंह आदि के नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखे हुए हैं। मुस्लिम युग और उसके आरम्भ में पृथ्वीराज चौहान, हम्मीर, रानी पद्मिनी और राणा सांगा जैसे रणबांकुरों ने शत्रु से लोहा लेकर  भारतीय शौर्य की उज्ज्वल परम्परा को स्थिर रखा । अंग्रेज़ी युग में नवाब सिराजुद्दौला, हैदरअली, टीपू सुलतान, नानाफड़नवीस, महावीर सिंधिया पेशवा और रणजीत सिंह आदि वीरों ने अंग्रेजी शक्ति के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष किया।  1857 के प्रथम स्वातन्त्र्य संग्राम में महारानी लक्ष्मी बाई, तात्याटोपे, अन्तिम मुगल सम्राट् बहादुरशाह जफर आदि के शौर्य पूर्ण कार्यों ने अंग्रेजी सत्ता की नींव तक को हिला दिया। इसके बाद तो अनेक क्रांतिकारियों में सरदार भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल आदि ने मृत्यु का आलिंगन कर स्वतन्त्रता की नई राह दिखाई । नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने अपनी निर्भीकता और सैन्य संगठन की कुशलता का परिचय देते हुए ब्रिटिश सत्ता पर करारी चोट की। राष्ट्रपिता बापू के तत्वावधान में अहिंसात्मक ढंग से स्वतन्त्रता का वह आन्दोलन चला जिससे देश की सोई हुई आत्मा जाग उठी।

स्वतन्त्रता दिवस मनाने की रीति : इसी के फलस्वरूप सैकड़ों वर्षों की परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटकर 15 अगस्त 1947 को देश स्वतन्त्र हुआ। इससे पूर्व असंख्य स्थानों पर जो साम्प्रदायिक दंगे हुए, जो अमानवीय ढंग से नरसंहार हुआ, जो मानवता ने दानवता का। अनुकरण किया, वह दिल दहलाने वाला पकरण है। भारतमाता के विशाल हृदय के दो टुकड़े कर दिये गये। भारत और पाकिस्तान ने जन्म लिया। अल्पसंख्यकों को घर से बेघर होना पड़ा । इस पर भी । हरेक का हृदय प्रसन्न था। स्वतन्त्रता की अमिट छाप की चमक उनकी आँखों में थी । उल्लसित कदमों से दिल्ली के लालकिले पर तिरंगा फहराया गया। वर्षों की साधना पूर्ण हुई। वीरों की कुर्बानी अपना रंग लायी और लालकिले के समक्ष विशाल मैदान में स्वतन्त्रता समारोह सम्पन्न हुआ। देश के कोने-कोने में स्वतन्त्रता की देवी का स्वागत किया गया ; किन्तु नोआखाली में पाशविकता और बर्बरता का नग्न नृत्य हुआ, जिसे महात्मा गाँधी की आँखें न देख सकीं, उनकी आत्मा न सहन कर सकीं, वे उसे रोकने के लिए चल दिये । बापू के लिए आज़ादी का यह प्रथम दिवस उपवास और आत्म-निरीक्षण का दिवस था। सारा देश स्वतन्त्रता की दीप शिखा से जगमगा रहा था, सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे थे। इस दिवस पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू ने ध्वजारोहण कर ओजपूर्ण भाषण दिया, जिसे सुनने के लिए लाखों की संख्या में नर-नारियों का समूह वहाँ एकत्रित हुआ था।

तब से यह स्वतन्त्रता दिवस का पवित्र पर्व प्रति वर्ष मनाया जा रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री, भिन्न-भिन्न राज्यों में मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं के भाषण होते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं। सबकी छुट्टी होती है। रेडियो व दूरदर्शन से महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जी के भाषण प्रसारित किये। जाते हैं। इस दिन मित्र देशों से शुभकामनाओं का ताँता लग जाता है। समाचारपत्रों के स्वाधीनता अंक प्रकाशित होते हैं और विशेष लेखों । द्वारा स्वाधीनता का अभिनन्दन किया जाता है। रात्रि में रोशनी की। जाती है। कवि सम्मेलन और मुशायरों का आयोजन किया जाता है। इनकी ओजपूर्ण कविताएँ और गज़लें मानवी हृदयों में अपने प्रेरणाप्रद संदेश को प्रवाहित करती हैं। इस प्रकार अनेक रूपों में यह पुनीत पर्व मनाया जाता है। यह हमें स्फूर्ति और नव-जीवन प्रदान करता है। इस शुभ दिवस पर हमारा गौरवपूर्ण इतिहास मस्तिष्क में चक्कर काटने लगता है।

स्वातंत्र्योत्तर प्रगति : देश ने इन 53 वर्षों में खूब प्रगति की है। इस पर हर भारतवासी को गर्व है। शरणार्थियों की समस्या का लगभग समाधान हो चुका है। उनके ढलकते हुए आँसू पूँछ चुके हैं। स्वर्गीय सरदार वल्लभ भाई पटेल ने असंख्य रियासतों का विलय करके भारत की अखण्ड शक्ति को स्थापित किया है। यह कार्य उसी लौह पुरुष के द्वारा हो सका। हिन्दी के समर्थक राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन जी के अनथक परिश्रम के फलस्वरूप आज हिन्दी को राजभाषा बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। स्वतंत्र भारत का संविधान पूर्ण रूप से अब लागू है। अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिये विशेष कार्यक्रम चल रहा है। कृषि की उन्नति के लिये सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जिससे अन्न संकट दूर हो सके और भारत इस ओर भी आत्म-निर्भर देश कहला सके। सभी योजनाएँ देश के विकास के पथ पर अग्रसर हो रही हैं। सुरक्षा, सामान, सामान्य कल यंत्र और अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण प्रगति पर है। आज विश्व में हमारे देश की प्रतिष्ठा है। शान्ति के पथ पर चलने वाले इस राष्ट्र ने सबकी ओर मैत्रीपूर्ण हाथ बढ़ा रखा है। उनके सुख-दु:ख में साथी है।

शत्रु राष्ट्रों को भी किसी प्रकार से तंग करना इसकी नीति नहीं है; परन्तु आत्म-रक्षा के लिये हर प्रकार से तत्पर है, जिसका रूप पड़ोसी देश पाकिस्तान सितम्बर 65 में देख चुका है। इतना ही नहीं भारतीय सैन्य शक्ति और जेट विमानों ने पाश्चात्य देशों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अब कोई भी शत्रु देश इसकी स्वाधीनता के हरण हेतु इस ओर । आँख नहीं उठायेगा । भारतीय दूतावास विदेशों में महत्त्वपूर्ण कार्य कर । रहे हैं। आवास समस्या के समाधान हेतु नई-नई कालोनी बनाई जा रही हैं। लाखों क्वार्टरों का निर्माण कार्य हो रहा है। नए-नए नगर । बसाये जा रहे हैं। पुराने नगरों में आवश्यकतानुसार विकास किया जा रहा है। शिक्षा की ओर भी ठोस कदम उठाया जा रहा है। मेधावी छात्रों को राजकीय व्यय पर उच्च शिक्षा के लिये विदेश भेजा जा रहा है। सन् 1982 में एशियाई खेलों का आयोजन किया गया। देश में रामराज्य की स्थापना के प्रयत्न किये जा रहे हैं। समाज कल्याण विभाग द्वारा ग्रामों की भी काया पलट दी गई है।

हर वर्ग के लोग आज सामर्थ्य के अनुसार राष्ट्र के उत्थान में संलग्न हैं। किन्तु पड़ोसी . देश चीन भारत की इस प्रगति से जल उठा था। उसने सन् 1962 के सितम्बर मास में भारत पर आक्रमण करके उसकी प्रगति को रोका। उसने मित्र बनकर छाती में छुरा भोंका था। भारतवासियों ने पारस्परिक द्वेष को भुलाकर तन, मन और धन से शत्रु का सामना किया।  हमारी संगठित शक्ति के समक्ष शत्रु को रुकना पड़ा। सन् 1975 में इस शक्ति का मुकाबला करने के लिये चीन के इशारे पर पाकिस्तान आगे बढा। उसे अमरीकी और चीनी शस्त्रों पर बड़ा विश्वास था। लेकिन भारत की अखण्डता ने उन्हें नाकाम बना दिया। उसकी इस युद्ध में करारी हार हुई। आज भारत पूर्णतया समर्थ है। हरेक शक्तिशाली शत्रु का वह सामना कर सकता है।

उपसंहार : स्वतन्त्रता दिवस के इस पावन अवसर पर हमें अपनी कमजोरियों की ओर भी निहारना चाहिये । आज प्रान्तीयता का प्रश्न सबसे जटिल है। भाषा की संकीर्णता व्यर्थ के संघर्षों को चुनौती दे रही है। विभिन्न स्थानों पर अनुशासनहीनता के जो प्रदर्शन हुए हैं। वे हमारे भविष्य की नींव को खोखला कर रहे हैं। घूसखोरी, भ्रष्टाचार और पापों का जो दौर है, उसने देश की उज्ज्वलता पर कलंक लगा दिया है। शुभ कार्यों में अनैतिकता का प्रादुर्भाव शोचनीय है। इन सबसे हमें सतर्क रहना चाहिये। विश्वासघाती मित्रों को त्याग कर राष्ट्र हित में लग जाना चाहिये। ऐसा होने पर ही हम देश की स्वतन्त्रता को स्थिर व सुदृढ रख सकते हैं।

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