Hindi Essay on “Shiksha me Khelkud ka Sthan” , ”शिक्षा में खेलकूद का स्थान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
शिक्षा में खेलकूद का स्थान
Shiksha me Khelkud ka Sthan
खेल- खेल मनुष्य की जन्मजात प्रवृति है। यह प्रवृति बालकों, युवकों और वृद्धों तक में पायी जाती है। खेल के द्वारा मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ मनुष्य अपने जीवन में अपने कार्यों को अच्छी तरह से पूरा कर सकता है।
शिक्षा- प्राचनीकाल में शिक्षा का उद्देश्य मोक्ष-प्राप्ति था। इस शिक्षा को पाने का अधिकारी वहीं होता था, जो शारीरिक दृष्टि से हष्ट-पुष्ट हो। मध्यकाल में शिक्षा केवल पुस्तकों तक ही सीमित रह गई। महात्मा गाँधी ने शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर भी बल दिया। उनके अनुसार- ‘शिक्षा से तात्पर्य औरत और आदमी की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों के विकास से है।‘
इस प्रकार शिक्षा के उपर्युक्त अर्थ को समझने के बाद निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि शिक्षा और क्रीड़ा का अनिवार्य सम्बन्ध है। यही कारण है कि प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकीय शिक्षा के साथ-साथ खेल-कूद और व्यायाम की शिक्षा भी दी जाती है।
शरीर को शक्तिशाली, स्फूर्तियुक्त, ओजस्वी तथा मन को प्रसन्न बनाने के लिए जो कार्य किए जाते हैं उन्हें खेलकूद क्रीड़ा या व्यायाम कहते हैं।
शिक्षा का अर्थ- व्यापक रूप से शिक्षा से तात्पर्य केवल मानसिक विकास ही नहीं वरन् शारीरिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक और मानसिक सर्वांगीण विकास है। शारीरिक विकास के लिए खेलकूद और व्यायाम का विशेष महत्व है।
खेलकूद में सहायक- शारीरिक विकास की दृष्टि से खेलकूद से शरीर के विभिन्न अवयवों में एक संतुलन स्थापित होता है। शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न होती है, रक्त संचार ठीक प्रकार से होता है और शरीर का प्रत्येक अंग हष्ट-पुष्ट बनता है।
मनसिक विकास की दृष्टि से भी खेलकूद अत्यन्त महत्वपूर्ण है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।
अतः खेलकूद से शारीरिक शक्ति में तो वृद्धि होती ही है, साथ-साथ मन मे प्रफुल्लता, सरसता और उत्साह भी बना रहता है।
खेलकूद आध्यात्मिक विकास में भी परोक्ष रूप से सहयोग प्रदान करते हैं। आध्यात्मिक जीवन निर्वाह के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है, वे सब खिलाड़ी के अंदर विद्यमान रहते हैं।
उपसंहार- शिक्षा के खेलकूद अन्य रूप में भी महत्वपूर्ण हैं। बालकों का शिक्षण कार्य यदि खेल पद्धति से किया जाता है, तो बालक उसमें अधिक रूचि लेते हैं और ध्यान लगाते हैं। अतः खेल-कूद के द्वारा ही शिक्षा सरल, रोचक और प्रभावपूर्ण होती है। इस प्रकार व्यायाम और खेल-कूद के बिना शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करना असम्भव है।
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