Hindi Essay on “Satsangati ka Mahatva”, “सत्संगति का महत्त्व” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
सत्संगति का महत्त्व
Satsangati ka Mahatva
संकेत–बिंदु–संगति का अर्थ। सत्संग व कसंगत का प्रभाव। विदयार्थी जीवन में महत्त्व।
संगति का अर्थ है ऐसे लोगों के साथ उठना-बैठना जो हमारे जीवन को निरंतर और स्थायी तौर पर प्रभावित करते हैं। संगति अर्थात् ‘सम् + गति’ तो वह है जो दिन-रात समान रूप से हमारे साथ चल रही है क्रिया में, विचार और व्यवहार में। इसलिए जीवन के उत्थान व पतन का कारण संगति ही होती है।
कबिरा संगत साधु की, हरे और की व्याधि।
संगत बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि।
इस संगति के दो रूप स्पष्ट हैं ‘सत्संग’ और ‘कुसंग’ । हमें नित्य उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित करने वाले, स्वयं पर आस्था व विश्वास जगाने वाले, दया, प्रेम, करुणा आदि का भाव जगाने वाले लोगों का साथ सत्संग है और इसके विपरीत मन को निम्न कत्यों के लिए प्रेरित करने वाले, हमें परावलंबी व नास्तिक बनाने वाले, कठोरता, क्रूरता. कदाचार और अमानवीय व्यवहार का औचित्य सिद्ध करने वाले लोगों का साथ ‘कुसंग’ है। सत्संग उस पारस पत्थर के समान है जो लोहे को भी पारस बना देता है। सज्जन सदैव सद्गुणों की ओर प्रेरित करता है। शुभ संकल्पनों को दृढ़ता प्रदान करता है। हृदय में प्रेम, करुणा और सहिष्णुता जैसे दैवीय गुणों का विकास करने का अवसर मिलता है। विद्यार्थी जीवन में तो सत्संगति का और भी अधिक महत्त्व है क्योंकि यह जीवन ही संपूर्ण भावी जीवन की आधारशिला है। इस समय सांसारिकता से दूर कोमल व निर्मल पर जो संस्कार पड़ते हैं वे अस्थायी होते हैं। अतः इस समय मित्र बनाते समय विशेष सावधान रहना चाहिए। जीवन में अनुशासन, संयम और उदारता ‘सत्संगति’ से ही प्राप्त होते हैं।