Hindi Essay on “Satsang ke Labh” , ”सत्संग के लाभ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
सत्संगति
Satsangati
या
सत्संग के लाभ
Satsang ke Labh
निबंध नंबर :01
सत्संगति से तात्पर्य है सज्जनों की संगति में रहना , उनके गुणों को अपनाना तथा उनके अच्छे विचारों को अपने जीवन में उतारना | सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को किसी-न- किसी का संग अवश्य चाहिए | यह संगति जो वह पाता है अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी | यदि उसकी संगति अच्छी है तो उसका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है और यदि यह संगति बुरी हुई तो उसका जीवन नरक के समान बन जाता है |
संगति का मनुष्य के जीवन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है | वह जैसी संगति में रहता है उस पर उसका वैसा ही प्रभाव पड़ता है | एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बनती है, सीप में पड़ जाती है तो मोती बन जाती है और यदि साँप के मुँह में पड़ जाती है तो विष बन जाती है | इसी प्रकार पारस के छूने से लोहा सोने में बदल जाता है | फूलो की संगति में रहने से कीड़ा भी देवताओं के मस्तक पर चढ़ जाता है |
महर्षि बाल्मीकि रत्नाकर नामक ब्राह्मण थे | किन्तु भीलो की संगति में रहकर डाकू बन गये | परन्तु बाद में व्ही डाकू देवर्षि नारद की संगति में आने से तपस्वी बनकर महर्षि बाल्मीकि से नाम से प्रसिद्ध हुई | ऐसे ही अंगुलिमाल नामक भयंकर डाकू भगवान बुद्ध की संगति पाकर महात्मा बन गया | गन्दे जल का नाला भी पवित्र-पावनी भागीरथी में मिलकर गंगा जल बन जाता है | अच्छे व्यक्ति की संगति का फल अच्छा ही होता है | किसी कवि ने ठीक ही कहा है – जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन’ |
जो व्यक्ति जीवन में ऊचा उठना चाहता है उसे समाज में अच्छे लोगो से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए क्योकि मनुष्य के मन पर इसका प्रभाव शीघ्र ही होता है | मानव मन तथा जल एक से ही स्वभाव के होते है | जब ये दोनों गिरते है तो शीघ्रता से गिरते है परन्तु इन्हें ऊपर उठने में बड़ा प्रयत्न करना पड़ता है | कुसंगति में पड़ने वाले व्यक्ति का समाज में बिल्कुल आदर नही होता | वह जीवन में गिरता ही चला जाता है | अंत : प्रत्येक व्यक्ति को कुसंगति से दूर रहना चाहिए | तथा उत्तम लोगो से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए |
बुद्धिमान व्यक्ति सदैव सज्जनों के सम्पर्क में रहते है तथा अपने जीवन को भी वैसा ही बनाने का प्रयत्न करते है | उन्हें सत्संगति की पतवार से अपने जीवन रूपी नौका को भवसागर से पार लगाने का प्रयत्न करना चाहिए | सत्संगति से ही वह ऊचे-से -ऊचे सकता है और समाज में सम्मान भी प्राप्त कर सकता है |
निबंध नंबर :02
सत्संगति
Satsangati
अर्थ- ‘सत्संगति‘ से तात्पर्य अच्छे लोगों की संगति मंे रहने, अपने जीवन में उसके द्वारा दिये गये अच्छे विचारों को उतारने तथा उनकी अच्छी आदतों को अपनाने से है। अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अच्छे व सच्चे मनुष्य की संगत में रहना पसन्द करता है।
अच्छी संगति के द्वारा मनुष्य का जीवन बड़े आनन्द एंव सुखपूर्वक व्यतीत होता है किन्तु यदि कोई व्यक्ति कुसंगति में पड़ जाता है, तो उसका जीवन दुःखपूर्वक व्यतीत होता है।
इस प्रकार मनुष्य जैसी संगति में बैठता है उसका मन पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है। एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बनती है तथा वही संाप के मुंह में पड़कर विष बन जाती है।
सत्संगति की श्रेष्ठता- अच्छे व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से बुरे व्यक्ति भी अच्छे बन जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि सर्वप्रथम भीलों की संगति में रहकर भी डाकू बन गये थे तथा बाद में देवर्षि नारद की संगति से तपस्वी बनकर महर्षि वाल्मीकि नाम से प्रसिद्व हुआ। गन्दे जल का नाला भी पवित्र पावनीं भागीरथी में मिलकर गंगाजल बन जाता है।
जो व्यक्ति समाज मे उन्नति करना चाहता है, उसे समाज के प्रत्येक व्यक्ति से काफी सोच-समझ के बाद सम्पर्क जोड़ने चाहियें, क्योंकि किसी ने ठीक ही कहा है कि मनुष्य का मन तथा जल का स्वभाव दोनों एक-जैसे होते हैं। जब कभी ये दोनों गिरते है तो तेजी से गिरते हैं, परन्तु इन्हें ऊपर उठाने में बड़ा प्रयत्न करना पड़ता है।
बुरे व्यक्ति को लोग नकारते हैं। कोई भी व्यक्ति बुरे व्यक्ति का आदर व सम्मान नहीं करता। कुसंगति, काम, क्रोध, मोह और मद पैदा करती है। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को कुसंगति छोड़कर सत्संगति को ही अपनाना चाहिये।
उपसंहार- इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मानव जीवन में उन्नति की एकमात्र सीढ़ी सत्संगति है। हमें चाहिये कि हम सत्संगति की पतवार से अपनी जीवन रूपी नाव भवसागर से पार लगाने पर हर सम्भव प्रयास करें, तभी हम ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं, समाज में आदर व सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। सत्संगति पाकर हमारा स्वभाव चन्दन के वृक्ष के समान हो जाना चाहिये- जिसकी सुगन्ध के मोह में आकर सर्प लिप्ट जाते हैं, पर चन्दन अपनी शीतलता के स्वभाव को नहीं छोड़ता।