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Hindi Essay on “Sangathan mein Shakti”, “संगठन में शक्ति” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

संगठन में शक्ति

Sangathan mein Shakti

 

यह उक्ति शत-प्रतिशत सत्य है कि संगठन में शक्ति है । अकेला चना भाड नहीं फोड़ सकता न पानी की अकेली बंद का कछ महत्त्व होता है । जब पानी की बूंदें मिल कर धारा बन जाती हैं तो वे अपने लिये रास्ता बनाने के लिए बडे-बड़े पर्वतों को भी काट डालती हैं । बंद को तो थोडी सी धूप या गमी सुका देती है किन्तु नदी की धारा अपनी मस्ती भरी चाल से चलती हुई, हरियाली बाटता हुई, समुद्र तक जा पहुंचती है । जो पानी एक कण के रूप में असमर्थ और तुच्छ था वह सागर के रूप में संगठित होकर विराट और शक्तिशाली बन जाता है । उसकी एक लहर का तनिक सा क्रोध बड़े-बड़े जहाज़ों को आन की आन में डुबा सकता है तथा तटवर्ती नगरों को पल भर में वीरान बना सकता है ।

व्यक्ति एक कण की तरह है और उसका संगठन सागर की शक्ति का रूप धार लेता है । परिवार, समाज या राज्य आदि का गठन इसी विचार से किया गया कि संगठन में शक्ति है । अकेला मनुष्य प्रगति करना तो दूर रहा अपने अस्तित्व की रक्षा भी नहीं कर सकता; इसी लिए उसने संगठन का मार्ग अपनाया । यदि भारतवासी संगठित न होते तो शक्तिशाली ब्रिटिश सत्ता के चुंगल से कभी भी स्वतन्त्र न हो पाते ।

आज भी मज़दूरों या कर्मचारियों के संगठन ही अपनी मांगे मनवाने में सफल होते हैं । यदि हर कोई अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग अलापता रहे तो उन निर्बल इकाइयों को बड़ी सरलता से दबाया और कुचला जा सकता है । एक कहानी प्रसिद्ध है कि जाल में बंधे हुए कबूतरों ने जब संगठित हो कर ज़ोर लगाया तो वे जाल को भी ले उड़े और बेचारा बहेलिया मुंह देखता रह गया । एक-एक तिनका जब तक पृथक्-पृथक् रहता है उसे आसानी से तोड़ा जा सकता है किन्तु उन्हीं तिनकों के संगठन से जब रस्सा बन जाता है तो उससे मदमस्त हाथियों को भी बांध लिया जाता है । यह शक्ति संगठन की ही शक्ति है । अत: यह निश्चित है कि अकेला व्यक्ति चाहे कितना भी बुद्धिमान, धनवान और शक्तिशाली क्यों न हो वह संगठन के बिना सफल नहीं हो सकता क्योंकि संगठन में ही शक्ति है ।

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