Hindi Essay on “Saksharta Abhiyan” , ”साक्षरता अभियान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
साक्षरता अभियान
Saksharta Abhiyan
साक्षरता अभियान अनपढ-अशिक्षित भारत में शिक्षा-प्रचार का एक प्रयास कहा जा सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यद्यपि भारत में शिक्षा का प्रचार और विकास काफी हुआ है। शिक्षालयों के बढ़ने के साथ-साथ पढ़-लिख सकने में समर्थ लोगों की संख्या भी काफी बढ़ी है। फिर भी जनसंख्या के अनुपात से अभी तक भारत में शिक्षितों की तो क्या, मात्र साक्षरों अर्थात् अक्षर-ज्ञान रखने वालों की संख्या भी बहुत कम है। भारत के देहातों, नगरों की स्लम बस्तियों में रहने वाले अनपढ़-अशिक्षित लोग कम-से-कम इतना तो पढ़ना-लिखना सीख ही लें कि समय पढ़ने पर अंगूठा लगाने के स्थान पर अपने हस्ताक्षर कर सकें, सामान्य चिट्ठी-पत्री पढ़-लिख सकें। सरकारी और गैर सरकारी कागज जिस पर कभी-कभी उन्हें अंकण करना, दस्तखत करने पड़ते हैं, उनकी भाषा पढ़कर का ज्ञान प्राप्त कर सकें। सख-दःख की सचना स्वयं लिख कर अपने दूर नजदीक रश्ते-नाते तक भेज सकें। हमारे विचार में साक्षरता अभियान का आरम्भ इन्ही सब मुख्य बातों को सामने रखकर ही किया गया था जिसे आज काफी मात्रा में सफल कहा जा सकता है।
मनुष्यों होने नाते पढ़ना-लिखना सभी का उसी तरह बुनियादी अधिकार है कि जिस तरह स्वतंत्रता, खाना-पीना और सांस लेना। लेकिन परतंत्र भारत में आम जन को पढाने-लिखाने का तो क्या साक्षर तक कराने अर्थात अक्षर-ज्ञान कराने तक की ओर कतई कोई ध्यान नहीं दिया गया। होना क्या था? गाँव-खेड़े में अगर किसी के दूर-दराज रहने वाले रिश्ते- नाते का सुख-दुःख का सन्देश लेकर कोई पत्र आ गया है तो उसे ऐसे व्यक्ति की खोज में मारे-मारे फिरना पड़ता था कि जो उसे आया पत्र पढ़ कर सुना सके। इसके लिए उसे निरन्तर खुशामद तक करनी पड़ती थी। कई बार तो पत्र पद सकने वाले की खोज करने में ही इतना समय बीत जाता था कि उसमें लिखे समाचार संदेश या बात का महत्त्व ही खत्म हो जाया करता था कि तब कहीं जा कर पढ़ सकने वाला मिल पाता था। यही समस्या पत्र लिखवाने के लिए भी हुआ करती थी। साक्षरता के अभाव में लोग तरह-तरह से ठगे भी जाया करते थे। मान लो किसी ग्रामीण का कोई बेटा, भाई, पुत्र या पति कहीं दूर शहर पर आस-पास के कल-कारखाने में। काम करता है। कहीं मेहनत-मजदूरी या कुछ और करके रुपये जोड़कर घर भेजता है। वह भेजता पचास है, पर मनिआर्डर आदि देने वाला तीस चालीस ही अँगूठा लगवा कर उसके हवाले कर देता है। पढ़-लिख सकने में असमर्थ होने के कारण वह वास्तविकता कभी जान ही नहीं पाता था।
निरन्तर और अनपढ़ व्यक्ति तथा कई प्रकार से भी साक्षरों, पढ़े-लिखों द्वारा ठगा जाया करता था। शहर में मेहनत मजदूरी कर के, कमाई करने वाले निरन्तर लोग डाकखानों के बाहर बैठ कर फार्म-मनिआर्डर भरने का काम करने वालों से रुपया घर भेजने के लिए फार्म भरवाते। फार्म भरने के चार-आठ आने तो ले ही लिया करते होता यह कि भरवाने वाले से पता बोलने को कहते; पर वास्तव में पता लिख किसी अपने का या अपने ही घर द्वार का दिया करते। सो रुपया भेजने वाला समझता कि उसने ठीक समय पर रुपया घर भेज दिया है, इस कारण घर-परिवार के सदस्य उसे पाकर अपना गुजर-बसर ठीक से कर रहे होंगे या उन्होंने कर्ज चुका दिया होगा, लगान जमा करा दिया होगा। उधर दूर गाँव में बैठे उस बेचारे के घर-परिवार के सदस्य सोच-सोच कर किस्मत को कोस रहे होते हैं कि इस बार समय पर रुपया नहीं आया। पता नहीं आप स्वस्थ भी है कि नहीं। इसी उधेड़बुन में कई बार बेचारों के हल-बैल नीलाम हो जाते हैं, घर और जमीन के टुकड़े से बेदखल कर दिए जाते हैं। पता चलने पर भेजने वाला बेचारा माथा पीट कर रह जाता है।
साक्षरता के अभाव में गाँवों के साहूकार, महाजन भी अपनी असामियों कोखूब-लूटा-खसौटा करते थे। जैसे पचास रुपये दे कर पाँच सौ पर अँगूठा लगवा लेना. ब्याज अपने खाते में जमा न करना। ब्याज पर ऋण देने की बात लिखने के नाम पर उनके घर-द्वार खेत-खलियान आदि भी जान बूझकर रहन रखे लिख और दिखा देना। इस प्रकार क्या लिखा गया है, यह पढ़ पाने में असमर्थ होने के कारण कई-कई परिवार बरबाद हो जाया करते थे। जमींदारों के कान में सरकारी कर्मचारी जिसका जहाँ बस चलता, बेचारे अनपढ-निरक्षर को लूट-खसोट लेते? यही सब देख-सुनकर भारत में सरकारी और कुछ गैर सरकारी समाज सेवी संस्थाओं द्वारा मिल कर साक्षरता अभियान आरम्भ किया गया। केरल आदि कुछ राज्य आज पूर्णत: साक्षर हो चुके हैं । वहाँ से निरक्षरता का पूर्णतया उन्मूलन किया जा चुका है। अन्यत्र भी ऐसा प्रयास चल रहा है।
यों तो भारत में चल रहा समूची शिक्षा प्रणाली ही वास्तव में मात्र साक्षर बनाने वाली ही है, पर फिर भी निरन्तर निरक्षरों को शकशेर बनाने का जो अभियान चलाया जा रहा है। उसका इतना लाभ तो अवश्य हुआ है कि लोग अपने ही लाभ के लिए उसका महत्व समझने लगे है। इतना लिखना-पढना ही लेना चाहते हैं कि उन्हें कोई अंकों का धोखा न दे सके. उनके पते के स्थान पर अपना या किसी अपने का पता न लिख दे, पत्र पढ़ने या लिखवाने के लिए उसे भटकना और मिन्नत-खुशामद न करनी पड़े। इस प्रकार की उपलब्धियों को और और भी व्यापक बनाने के लिए साक्षरता अभियान देश के अन्तिम व्यक्ति को साक्षर बनाने तक जारी रहना चाहिए।