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Hindi Essay on “Sahitya aur Jeevan” , ” साहित्य और जीवन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

साहित्य और जीवन

Sahitya aur Jeevan

 

ससरण करने की प्रवृत्ति को विद्वानों ने संसार कहा है। इसी प्रकार जीवन का कार्य भी जीवन का संचालन करना है। संसार और जीव दोनों ही एक दूसरे के अस्तित्व पर आधारित होकर अपने पग चिन्ह छोड़ते आये हैं। ये पग चिन्ह साहित्य के अनेक स्वरूपों में, संस्कृति के अनेक उपादानों तथा सभ्यता के भौतिक चिन्हों में समाहित हैं। साहित्य का कार्य जीवन की अनुरागमयी संस्कृति एवं समाज की रूढ़ियों तथा प्रथाओं को छुपाए रखना है। जीवन की गति के साथ-साथ साहित्य की गति भी चलती है। जीवन में आया हुआ गतिरोध साहित्य में भी बाधा डालता है। उसमें जब अवरोध आ जाता है, तब वह संज्ञाहीन हो जाता है और जब रुक जाता है, तब वह मृत कहलाता है।

साहित्य क्या है ? जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं, तो हम देखते हैं कि प्रकृति और मानव दोनों एक-दूसरे के सहारे जी रहे हैं। प्रकृति मानव को और मानव प्रकृति को आनन्द या कष्ट दोनों ही प्रदान कर सकते हैं। प्रकृति और मानव की अनुकृति ही साहित्य है। मानव की प्रगतिशीलता और परिवर्तनशीलता साहित्य को भी प्रभावित करती है। साहित्य के सृजन में जड़ तथा चेतन का अपूर्व मिश्रण रहता है। साहित्य का उद्देश्य मानव-कल्याण, मानव उपयोग तथा मनोरंजन होता है।

सृष्टि के औरम्भ से ही मानव ने का संग्रह करता रहा है। अनेक साहित्यकारों की कृतियों का संग्रह ही होता है। इस प्रकार साहित्य उत्तम मानवीय विचारों का ऐसा संग्रहालय है जिसमें के केवल शीर्षक ही परिवर्तित होते हैं। साहित्य भाषा-रूपी नारी का सौन्दर्य आषा-रूपी सुन्दरी नारी का शील या शीलवती सुन्दर नारी की सहाग-रेखा है। चार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-‘ज्ञान-राशि के संचित कोष का नाम साहित्य टॉ० श्यामसुन्दर दास के शब्दों में सामाजिक मस्तिष्क अपने पोषण के लिए जो भाव सपी निकालकर समाज को सौंपता है, उसी के संचित भण्डार का नाम साहित्य है।’

बाबू गुलाबराय के शब्दों में, “साहित्य संसार के प्रति हमारी मानसिक प्रतिक्रिया अर्थात विचारों, भावों और संकल्पों की शाब्दिक अभिव्यक्ति है और वह हमारे किसी न किसी प्रकार हित करने के कारण संरक्षणीय हो जाती है। विलियम हडसन के मतानुसार, साहित्य ऐसी पुस्तकों का भंडार है जो विषय-वस्तु और प्रतिपादन शैली के कारण सर्व-साधारण के लिए रुचिकर होता है। रूप और आस्वाद उसमें आवश्यक होते हैं।

साहित्य का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है। मानव जीवन की विशालता ही साहित्य क्षेत्र की सीमा है। इस दृष्टिकोण से मानव अति महान् है। अतः साहित्य की सीमाएँ भी अत्यन्त विस्तृत हैं, उसमें काव्य, शास्त्र, इतिहास, पुराण आदि सभी का समावेश हो जाता है। साहित्यकार में कवि के अतिरिक्त अन्य भी अनेक गुणों का होना आवश्यक है। जिस प्रकार समुद्र से निकलने वाले रत्नों में अमृत की प्रधानता है, इसी प्रकार साहित्य के विभिन्न अगों में काव्य की प्रधानता है। साहित्य में वेद, पुराण और दर्शन आदि सभी का सार रहता है।

साहित्य का अपना अनोखा संसार है और इस काव्य जगत का सृष्टा भी जैसा चाहता है अपने अनसार काव्य संसार को बना लेता है। इस से यह निष्कर्ष निकलता है कि साहित्य का लक्ष्य महान व विशाल है। अब प्रश्न यह उठता है कि जीवन क्या है और उसका साहित्य के साथ क्या सम्बन्ध है ?

विकासवादियों का कथन है कि सष्टि का विकास एक निश्चित क्रम तथा सिद्धान्त के अनुसार होता है। जीवन सर्वदा संघर्षों से पर्ण रहा है। ‘वीर भोग्या वसुन्धरा’ के सिद्धान्त के अनुसार हमेशा शक्तिशाली लोगों की ही यहाँ विजय हुई है। कुछ क्रिया–व्यापारों का ” जीवन नहीं है। जीवन तो प्रगतिशीलता को कहते हैं। जीवन में यह प्रगति ऊंच दशा तथा महान दश्य की कल्पना के द्वारा ही होती है। जिस मनुष्य की कल्पना उच्च होगी उस व्यक्ति का जीवन भी उतना उच्च होगा।’

साहित्य का सम्बन्ध मानव-जीवन के साथ सदैव से अविच्छेद्य रहा है, क्योंकि विन के ही परिवेश में साहित्य का जन्म और परिपोषण होता है। वास्तव में त्यकार का जीवन ही साहित्य है। यदि हम साहित्य को पढ़ें, तो यह भली प्रकार मालूम हो जायेगा कि उसके जीवन की छाप साहित्य में कहाँ तक अवतरित हुई है ? मुन्शी प्रेमच— के साहित्य को पढ़ने से हमारे सम्मुख प्रेमचन्द की दरिद्रता स्पष्ट रूप से झलकती है। कुछ विद्वानों ने साहित्य और जीवन में समन्वय की भावना को हृदय में रखकर मनुष ही साहित्य का लक्ष्य है। इस नारे को बुलन्द किया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी इस मत के अनुयायी हैं।

वस्तुतः मनुष्य साहित्य का चरम लक्ष्य है और उसी का जीवन साहित्या के मल में स्थित है। जीवन की गतिशीलता साहित्य को प्रभावित करती है। अंग्रेजी, जर्मन फेर रूस चीनी और जापानी आदि भाषाओं के साहित्य समाज में अनवरत गति से आगे बटे है। साहित्य में केवल जीवन का चित्रण ही नहीं अपित पथ-प्रदर्शन भी होता है। जो साहित्य केवल मनोरंजन की सामग्री जुटाकर उपस्थित करता है उसका ध्येय क्षणिक होता है। जब तक साहित्य में पोषक तत्त्व रहते हैं, वह सजीव रहता है। महाकवि भारवि का प्रकति वर्णन साहित्य और जीवन के संदर्भ में देखिये-नीले आकाश में हरे रंग के तोते अपनी लाल चोंच में पीली बालियों को लेकर धनुषाकार पंक्तियों में उड़ रहे हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश में इन्द्रधनुष दिखाई पड़ रहा है।

जीवन और साहित्य का सर्वकालीन अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। अतः साहित्यकार का जीवन उच्चादर्शों से युक्त होना चाहिये; क्योंकि उसके द्वारा निर्मित साहित्य जीवन में उमंग और उल्लासों को प्रदान करता है। विश्व मानवता की स्थापना में ही साहित्य की सफलता है। उच्च साहित्यकार जीवन रूपी समुद्र में से सत् रूपी मोतियों को चुन आ जाती है। लेता है और असत् रूपी ककरों को तिलांजलि देता है। ऐसी स्थिति में साहित्य में सजीवता

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