Hindi Essay on “Sabse Mitha Boliye”, “सबसे मीठा बोलिये” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
सबसे मीठा बोलिये
Sabse Mitha Boliye
सबसे मीठा बोलना चाहिए । मीठा बोलना, विनय रा नम्रता आदि सुशील व्यक्ति के लक्षण है । इनसे ही मनुष्य की शिष्टता प्रकट होती है और शिष्टता ही सज्जनता की विशिष्टता है ।
‘शीलं हि सर्वस्व नरस्व भूषणम् ।
हिन्दी में कहावत भी है शील के बिना डील बेकार है । कास जी ने शीलशाली को सर्वविजयी कहा है-सर्वशीलवता जितम् (महाभारत) । वास्तव में विनयी.सदाचारी ही सर्वप्रिय और सर्वमान्य होता है । सुप्रसिद्ध नीतिकार भर्तृहरि ने बड़े सुन्दर ढंग से कहा है जो नम्रता से ऊँचे होते हैं, पराये गुण कहकर अपने गुण प्रसिद्ध कर लेते हैं । सज्जनता आदि गुण विनय से ही मिलती है विद्या ददाति विनयं । विनयी, सुशील और विनम्र होने से ही मनुष्य सभ्य पुरुष कहलाता है । इन्हीं सदगणों से संसार में बड़प्पन मिलता है । विनय स्तृति से मनुष्य तो क्या देवता भी वश में हो जाता है । एक प्रसिद्ध कहावत है-
कागा काको धन हरै, कोयल काकू देत ।
तुलसी मीठे वचन से, जग अपनो कर लेत ॥
अर्थात् कौआ किस का धन चुराता है और कोयल किसी को क्या देती है ? तुलसीदास जी कहते हैं मीठे वचनों से मनुष्य सारे संसार को अपना बना लेता है । यद्यपि कौआ तथा कोयल दोनों का रंग काला होता है परन्तु फिर भी कोयल की मीठी आवाज़ को सुनना हर कोई पसन्द करता है जबकि कौआ जब घर की छत पर आकर कांय काय करने लगता है तो सभी उसे पत्थर मार कर भगा देते हैं । कहने का भाव यह है कि व्यवहार विभेद प्राणी के गुण-अवगुणों पर आधारित है । यदि आप में मीठा बोलने का गुण है तो आप शत्रु को भी मित्र बना सकते हैं । मधुर भाषण से मनुष्य, पशु पक्षी भी प्रिय बन सकते हैं । यह वह वशीकरण मन्त्र है जिससे आप मानव मन में अपना घर बना सकते हैं । यह वह अमृत है जिससे मृतजनों में भी जीवन का संचार हो जाता है । मधुर भाषी के मुँह से निकला एक एक शब्द सुनने वालों पर अपना प्रभाव डालता है और उसके मन को आनन्द से भर देता है । तुलसीदास जी लिखते हैं-
वशीकरण एक मन्त्र है, तज दे वचन कठोर ।
तुलसी मीठे वचन से, सुख उपजत चहुं ओर ॥
अर्थात् मीठे वचन वशीकरण मन्त्र के समान हैं, हमें कभी कठोर वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए । मीठे वचनों से चारों ओर सुख पैदा होता है । मीठे वचन बोलने से केवल श्रोता को ही आनन्द नहीं मिलता बल्कि वक्ता की भी आत्मा आनन्दित होती है । अहंकारी व्यक्ति कभी भी मधुर भाषी नहीं हो सकता, वह दूसरे के हृदय को दुःखी करने में अपना जी बहलाता है । कबीर का कहना है-
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे, आप भी शीतल होय ॥
मधुर भाषण से ही मनुष्य में नम्रता शिष्टता आदि गण पैदा होते हैं । क्रोध उसके पास नहीं आता । क्रोध मानव का सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोधी व्यक्ति स्वयं तो क्रोध की आग में जलता ही है परन्तु जो उसके पास आता है उसको भी जलाकर राख कर देता है । इसके विपरीत मधुर बोलने वाले व्यक्ति स्वयं भी ठंडे स्वभाव के होते हैं और उनके सम्पर्क में जो भी आता है उसको भी शीतलता की ठंडा छाया मिलती है। मधुर भाषी व्यक्ति समाज के उत्थान में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
बड़े बड़े शस्त्रों का प्रहार वह काम नहीं कर सकता जो मनुष्य की कटु वाणी कर देती है । ऐसा कहा जाता है कि तलवार का जख्म कुछ समय के बाद भर जाता है, परन्तु जो हम किसी को कटु वचन बोलते हैं, गालियां निकालते हैं, उस का जख्म कभी नहीं भरता। ऐसे वचनों की समय समय पर जो टीस उठती है, उससे व्यक्ति बार बार तिलमिला उठता है । कटु वाणी द्वारा मनुष्य दूसरों के दिल को तो दुखाता ही है परन्तु स्वयं भी कभी कभी अनादर का पात्र बन जाता है । कड़वा बोलने वाले व्यक्ति से कोई भी बात करना पसन्द नहीं करता । कड़वा बोलने वाला व्यक्ति न केवल अनादर का पात्र ही बनता है अपितु कहीं कहीं तो उसकी पिटाई की नौबत भी आ जाती है । कवि रहीम ने कडुवा बोलने वालों के लिए बहुत ही सख्त सज़ा की बात कही है । वह लिखते हैं-
खीरा मुख ते काटि के, मलियत लौन लगाय ।
रहिमन कडुए मुखन को चाहियत, इहै सजाय ॥
अर्थात जिस प्रकार खीरे का मुख कड़वा होता है तथा उसके अन्दर की ज़हर निकालने के लिए उसको ऊपर से काट कर अच्छी तरह नमक लगाकर मला जाता है इसी प्रकार कडुवा बोलने वाले को यही सज़ा मिलनी चाहिए ।
जहाँ मधुर भाषी व्यक्ति को लोग देवता की उपाधि देते हैं, वहीं कट भाषी को राक्षस की । जहाँ मधुर भाषण अमृत है, वहां कटु भाषण विष । जहाँ मधुर भाषण एक अमूल्य औषधि है, वहाँ कटु भाषण एक ज़हरीला बाण जो कानों के द्वार से होकर जाता है और सारे शरीर को घायल कर देता है।
एक बार अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्राहम लिंकन के सैकेटी ने किसी के कठोर पत्र का उत्तर उससे भी कठोर शब्दों में लिखकर लिंकन को दिखाया । लिंकन ने वह पत्र पढ़ा और पढ़ कर फाड़ दिया और अपने सेक्रेटरी से कहा-इस प्रकार के पत्र भेजने के लिए नहीं लिखे जाते। एक महापुरुष का उपदेश सबके लिए माननीय है। भगवान बद्ध ने कभी अपने कटुर शत्रुओं को भी कटु शब्द नहीं कहे। कौरवों के कटु वचनों का श्री कृष्ण ने बड़े ही मधुर शब्दों में उत्तर दिया। गान्धी जी अपने शत्रुओं और मित्रों दोनों से मीठी वाणी में ही बात किया करते थे। दयानन्द सरस्वती ने तो जहर देने वाले को भी अपनी तरफ से किराये के पैसे देकर भगा दिया था ताकि पुलिस उसे पकड़ न ले।
कहने का भाव यह है मनुष्य को जीवन में उन्नत बनने के लिए मधुर भाषण की आवश्यकता है। किसी भी काम में नाक झौं नहीं सिकोड़ना चाहिए क्योंकि नाक झौं सिकोड़ना तमचा चढ़ाने के बराबर है । जो भी करना चाहिए, उसे मृदुता के साथ करना चाहिए । बड़ों के साथ ही नहीं अपित छोटों, नौकरों और बच्चों के साथ विशेष रूप से नम्रता का व्यवहार करना चाहिए ।