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[Update] 3 Hindi Essays on “Rashtrapita Mahatma Gandhi” ”राष्ट्रपिता महात्मा गांधी” Complete Hindi Essays for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

Rashtrapita Mahatma Gandhi

निबंध नंबर : 01

महात्मा गांधी के नेतृत्व वाला समय गांधी युग कहलाता है। गांधी भारतवासियों को कितने प्रिय लगते थे, इसके लिए प्रमाण की नही, इन पंक्तियों के मर्म को समझने की आवश्यकता है-

चल पड़े जिधर दो पग मग में,

चल पडे़ कोटि पग उसी ओर,

पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि,

पड़ गये कोटि दृग उसी ओर।

                                (दिनकर)

दूसरी बात यह भी है कि जब-जब मानव-समूह पर कोई संकट आता है, तो कोई-न-कोई आवतारी पुरूष सामने चला ही आता है। इतिहास साक्षी है-

धरा जब-जब विकल होती मुसीबत का समय आता,

किसी  भी रूप में कोई महामानव चला आता।

                                                (दिनकर)

महात्मा गांधी विश्व के मान्य नेता थे। उनका जन्म भारत में गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ा जिले के पोरबन्दर नामक स्थान में 2 अक्टूबर सन् 1869 ई0 को हुआ था। उनका जन्म एक वैश्य परिवार में हुआ था। उनकी माता पुतलीबाई अत्यन्त धार्मिक प्रवृति की महिला थी। उनके घर में रामायण और भागवत का पाठ होता था और भक्ति के गीत गाये जाते थे। जन्म से ही इस प्रकार के धार्मिक परिवेश का प्रभाव गांधीजी पर भी पड़े बिना न रहा। उन्होंने अपनी आत्मकथा में अपने बाल्यकाल के इस धार्मिक वातावरण का वर्णन किया है। वास्तव में, किसी भी व्यक्ति कम व्यंितव का निमार्ण उसके बचपन में मिले संस्कारों पर निर्भर करता है।

महात्मा गांधी सन् 1888 ई0 में कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैण्ड गये। सन् 1891 ई0 में वे इंग्लैण्ड गये। सन् 1891 ई0 में वे इंग्लैण्ड से बैरिस्ट्री की परीक्षा पास कर स्वदेश लौट गये। कुछ ही दिनों के बाद उन्हें वकालत के काम से दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां उन्हें कुछ ऐसे अनुभव हुए कि भारतवासियों के हितार्थ उन्होंने वहीं आन्दोलन और सत्याग्रह शुरू कर दिया। 20 वर्षों तक वे दक्षिण अफ्रीका में रहे। सन् 1901 ई0 में भारत लौट आये। इसी वर्ष उन्होंने कोलकता में कांग्रेस अधिवेशन में भारत में राजनीतिक जीवन का आरम्भ किया और नेताजी से उनकी बातचीत हुई। वे एक दिन देश के सर्वाेच्च नेता मान लिये गये। इस बीच वे एक बार फिर अफ्रीका गये, लेकिन कुछ ही वर्षों में लौट आये। लौटने के बाद वे देश में पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हो गये। 25 मई 1914 ई0 को उन्होंने अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। तदन्तर भारतीय राजनीति की बागडोर संभाली।

सन् 1920 ई0 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन किया। सन् 1930 ई0 में उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया और नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। यह आन्दोलन 1934 ई0 तक चलता रहा। सन् 1942 ई0 में भारत छोडो़ं प्रस्ताव पारित हुआ। गांधीजी जेल गये। जेल में उन्होंने 21 दिनों तक उपवास रखा। सन् 1947 ई0 में भारत आजाद हो गया। सन् 1920 ई0 तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का काल गांधी युग कहा जाता है।

देश को स्वतन्त्रता मिलने के बाद गांधीजी ने सरकार से अलग रहकर आन्दोलन को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। गांधीजी के जीवन पर गीता और उपनिषद् का विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। हमारे लिए सबसे अधिक उपयोगी हथियार गांधी का दिया हुआ सत्य और अहिंसा का हथियार है। इसके बाद उनके शिक्षा से सम्बन्धित कुछ विचार भी अत्यन्त महत्वपूर्ण  हैं। शिक्षा के सम्बन्ध में गांधी के विचार बिल्कुल स्पष्ट थे-’’शि़क्षा से मेरा तात्पर्य शिशु और मनुष्य में शरीर, मन और आत्मा जो कुछ सर्वोत्तम  है, उसकी सर्वागीण अभिव्यक्ति है।’’

साक्षरता शिक्षा का लक्ष्य नहीं है और न उससे शिक्षा आरम्भ होती है। वह तो उन साधनों में से एक है, जिससे सभी पुरूष शिक्षित किये जाते हैं। साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है। गांधीजी ने अंग्रेज सरकार द्वारा चलाई गयी तत्कालीन शिक्षा-योजना की कटु आलोचना की। गांधीजी का विचार था कि शिक्षा बेरोजगारी के विरूद्ध एक प्रकार का बीमा होनी चाहिए। यही कारण था कि गांधीजी ने अपनी बुनियादी शिक्षा योजना में उद्योग द्वारा शिक्षा एवं बेसिक शिक्षा पद्धति पर जोर दिया था। ’रूसो’ के समान गंाधीजी ने शिक्षा को बाल केन्द्रित माना। उनके विचार से-’’सच्ची शिक्षा वह है, जो बालकों की आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों को प्रोत्साहित करती रहे। ’’गांधीजी शिक्षा को चरित्र-निर्माण का आधार मानते थे। गांधीजी के ऊपर टाॅल्स्टाय का भी बहुत प्रभाव था। उन्होंने 25 मई सन् 1915 ई0 को अहमदाबाद में सरस्वती के तट पर सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की और एक विद्यालय भी खोला।

गांधीजी शिक्षा के माध्यम से ’अंग्रेजी’ के कट्टर विरोधी थे। उस सम्बन्ध में उन्होंने कहा है- ’’आज, जबकि हमारे पास निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को प्रारम्भ करने के साधान तक नहीं हैं, हम अंग्रेजी पढ़ने की व्यवस्था किस तरह कर सकते हैं। रूस ने अंग्रेजी के बिना ही समस्त वैज्ञानिक क्रिया की है। यह हमारी मानसिक दासता ही है, जो हमें यह अनुभव करने के लिए बाध्य करती है कि हम अंग्रेजी के बिना काम नहीं कर सकते। हम इस पलायनशीलता का समर्थन कभी नहीं कर सकते।’’ उन्होंने स्त्री-शिक्षा, शिक्षकों के लिए आवश्यक गुण शिक्षा के लक्ष्य और साधन, इन सभी विषयों पर अपने मौलिक विचार प्रस्तुत किये। गांधीजी ने बहुत गहराई से भारत और भारतीय संस्कृति को समझ था। गांधीजी के विषय में जितन भी कहा जाये, कम है। उन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर सदियों की गुलामी से भारत को आजादी दिलायी। अफसोस है कि जीवन-भर अहिंसा की पूजा करने वाला दुनिया का अव्वल अहिंसावादी व्यक्ति, जिसने पूरी दुनिया को अहिंसा का स्वार्णिम सन्देश दिया, आखिरकार 30 जनवरी सन् 1948 ई0 को हिंसा का ही शिकार हो गया। मरते समय गांधीजी के मुख से-  ’हे राम……. हे राम’ के अतिरिक्त एक भी शब्द नहीं निकला। गांधीजी का सम्पूर्ण जीवन एक हिन्दू महात्मा के रूप में व्यतीत हुआ था। उनके दर्शन को समझने के लिए सत्य और अहिंसा की आध्यात्मिकता को समझना जरूरी है।

निबंध नंबर : 02 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

Rashtrapita Mahatma Gandhi

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वह महान पुरुष हैं जो किसी और को उपदेश । देने से पहले स्वयं उस पर अमल करते थे। उन्होंने अपने देश के लिए सब कुछ।  कुर्बान कर दिया।

अपनी मानवतावादी दृष्टिकोण, अहिंसा, सत्य, प्रेम और भाई चारे के कारण  वे गांधी से महात्मा गांधी बन गए। संपूर्ण भारत उन्हें बापू ने नाम से पुकारता था, उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित करता था। शायद ही किसी को भारतीय इतिहास में अभी तक इतना आदरसूचक संबोधन मिला हो।

गांधी जी का जन्म अंग्रेजों के शासन वाले भारत में हुआ। अंग्रेज भारतीयों पर तरह तरह के अत्याचार किया करते थे। हर जगह अराजकता एवं अत्याचार का बोलबाला था। ऐसे में गांधी जी का जन्म किसी अवतार से कम नहीं था।

गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। पिता का नाम करमचंद गांधी व माता का नाम पुतलीबाई था। कहा जाता है कि अपनी माता से ही इन्हें सच्चाई की शिक्षा मिली है। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदाम करमचंद गांधी था। 13 वर्ष की बाल्यावस्था में ही गांधी जी की शादी कस्तूरबा से हुई थी। कस्तूरबा एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं।

गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। सन् 1887 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर बैरिस्ट्री की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां से आकर बंबई में वकालत में जुट गए पर उनका जन्म तो किसी और कार्य के लिए हआ था. उनकी वकालत नहीं चली। संयोग से उन्हें सन् 1892 में मुकद्दमे की पैरवी करने जाना पड़ा। वहाँ उनके जीवन ने ऐतिहासिक मोड़ लिया। वहाँ उन्होंने देखा कि किस तरह से अंग्रेज भारतीय मूल के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं। इसका प्रभाव ऐसा पड़ा कि वह इतिहास पुरुष ही बन बैठे।

वहीं उन्होंने भारतीय मूल के लोगों को इकट्ठा किया और सत्याग्रह आंदोलन चलाया, जिसे अपार सफलता मिली और दक्षिण अफ्रीका में बसे सभी भारतीयों को राहत मिली।

भारत लौट गांधी जी ने मन बना लिया कि अब इन गोरों से भारत को मुक्त करवा के ही वह दम लेंगे मगर साथ ही उन्होंने मार्ग चना अहिंसा का।।

वह बिहार के चंपारण पहुँचे जहाँ अंग्रेज किसानों से जमीन छीनकर उनसे । जबरन नील की खेती करवाना चाहते थे। यहाँ भी गांधी जी ने उन सभी किसानों को संगठित कर इस अन्याय के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन करने लगे। जिसकारण किसानों को काफी सुविधाएँ प्राप्त हुई। अचानक इसी बीच बालगंगाधर तिलक जी की मृत्यु हो गई। फिर कांग्रेस की बागडोर गांधी जी को ही संभालनी पड़ी।

गांधी जी संपूर्ण देश में घूम-घूमकर लोगों को आजादी का महत्व समझाने लगे और इसकी प्राप्ति के लिए अहिंसा एवं सत्याग्रह का मार्ग ही चुनने की सलाह देते रहे। सन् 1930 को गांधी जी का नमक आंदोलन तो भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों । में मुद्रित किया गया।

इसी तरह से वह जीवन भर हमें अहिंसा व सत्याग्रह के मार्ग पर चलते रहने की सलाह देते रहे जो काम हमारा लड़ने-झगड़ने से नहीं निपट सकता है, वही काम हमारा प्यार-मोहब्बत से बातचीत करने से निपट सकता है यही सीख महात्मा गांधी सदैव देते थे।

गांधी-वाणी का सब से बड़ा साक्ष्य हमें हमारी भारतीय स्वतंत्रता की कहानी पढ़ने से मिलता है। किस तरह से अंग्रेजों को बापू के आगे झुकना पड़ा। वह भी एक ऐसे आदमी के सामने जिसने केवल धोती पहन रखी हो और अहिंसा का अपना.मार्ग चुन रखा हो। अंततः 15 अगस्त 1947 को हमारा गुलाम देश आजाद हो गया!

गांधी जी अन्य भारतीयों के साथ मिलकर एक ऐसे चट्टान के रूप में खड़े हो गए जिसके आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा और देश छोड़ना पड़ा।

महात्मा गांधी एक विश्व स्तर के महान नेता के रूप में अपनी पहचान बनाए रखे थे। इनकी हत्या 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर की गई थी। मरते समय गांधी जी ने अपनी महात्मा वाली उपाधि को सार्थक करते हुए केवल हे राम! कहा था। आज उनकी समाधि राजघाट पर मंदिर की तरह पूजी जाती है।

देश ने उनके जन्म दिवस के उपलक्ष्य में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में राष्ट्रीय पर्व घोषित कर रखा है, जिसे हर भारतीय एक त्यौहार की तरह मनाता है।

निबंध नंबर : 03

राष्ट्रपिता

या

महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता है। उनके काबिल और अहिंसक नेतृत्व में भारत ने विदेशी राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की।

उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ। वे एक समान्य विद्यार्थी थे परन्तु उनमें भविष्य को महानता के चिन्ह थे। वे राजा हरीशचन्द्र के सच के प्रति प्रेम से प्रभावित थे। वे स्वयं अपने जीवन में भी इस पर आचरण करते थे। उनमें ईश्वर के प्रति गहरी आस्था थी।

वे एक वकील बने। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने देखा कि किस तरह एशियाई मूल के लोगों के साथ व्यवहार किया जाता था। वे जातीय पक्षपात के शिकार थे। वे अंग्रेज सरकार के शासकों के खिलाफ लड़े। उन्हें कई बार जेल भेजा गया परन्तु वे इस प्रकार की सजा से डरते नहीं थे।

भारत में वापिस आने पर उन्होंने भारतीय लोगों को अपनी अहिंसा से प्रभावित किया। जल्दी ही वे इन्डियन नैशनल कांग्रेस के नेता बन गए। उनके, आज़ादी के लिए, दो सबसे शक्तिशाली हथियार अहिंसा और सत्याग्रह थे। इन्होंने हमारी आज़ादी की लड़ाई में बहुत सहायता की। हमने बिना कोई खून बहाए आज़ादी प्राप्त की।

उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया। उन्होंने कई सत्याग्रह शुरु किए। उन्होंने हाथ बुने कपड़े पर जोर दिया। उन्होंने हमें परिश्रम का गौरव समझाया। लोग दिल की गहराई से उनके शिष्य बन गए। उन्होंने विदेशी कपड़ों और सामान का बहिष्कार किया। भारत के लोगों ने उनके उदाहरण का पालन किया। वे केवल कमर पर ही कपड़ा (लंगोटी) पहनते थे क्योंकि उनका मानना था कि उनके देश के लोग गरीब हैं। वे सादा जीवन और ऊँची सोच में विश्वास करते थे। यहाँ तक कि उनके दुशमन भी उनकी सादगी सच्चाई, अहिंसा, लक्ष्य के प्रति ईमानदारी और व्यक्तित्व की शक्ति से प्रभावित थे।

उन्होंने गरीबों और पिछड़े लोगों को ऊपर उठाने के लिए काम किया। यह बड़े शर्म की बात है कि वे 30 जनवरी, 1948, आज़ादी के एक साल बाद अपने ही देश के वासी द्वारा मार दिए गए। उन्हें सबसे अच्छी श्रद्धांजलि उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चल कर दी जा सकती है। उनकी समाधी दिल्ली में राज घाट पर बनाई गई। वे हमारे आज़ादी की लड़ाई में रौशनी दिखाने वाले थे। लोग प्यार से उन्हे बापू पुकारते थे।

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