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Hindi Essay on “Press ki Aajadi Kitni Sarthak” , ”प्रेस की आजादी कितनी सार्थक ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

प्रेस की आजादी कितनी सार्थक

Press ki Aajadi Kitni Sarthak

प्रस्तावना- वर्तमान युग में प्रेस की स्वतंत्रता अत्याधिक उपयोगी एंव महत्वपूर्ण है। प्रेस, राष्ट्र जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करती है। यह आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक गतिविधियों और इनके माध्यम से जनजीवन पर होने वाले परिणामों पर निगाह रखता है।

प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में तो प्रेस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती है। इसके द्वारा जनमत का निर्माण किया जाता है। यह शासन की नीतियों को प्रभावित करता हैं जनता को सामाजिक चेतना से परिपूर्ण करता है। मानवीय हितों के पोषण में सहयोग प्रदान करता है। राष्ट्र में व्याप्त जटिल समस्याओं पर प्रकाश डालता है। राजनीतिक व आर्थिक संरचनाओं में सुधार का हर सम्भव प्रकाश करता है।

प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ है कि वह समाज, देश, व्यवस्था मंे जो कुछ देखे उस छापे, उस पर अपनी निर्भीक टिप्पणी और जनता को जागरूक करे। समाचार-पत्र को लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ माना गया है।

स्वतन्त्र प्रेस की आवश्यकता- प्रजातान्त्रिक देशों में प्रेस की स्वतंत्रता की बहुत आवश्यकता होती है। खुले तथा मुक्त समाज में प्रेस अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। प्रेस की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में कुछ राष्ट्रों के संविधानों में अनेक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। अमेरिका मंे तो सामान्यतः प्रेस निजी हाथों मंे है, सरकार हाथों में नहीं।

अधिनायकवादी तथा एकाधिकारवादी मनोवृति को नियन्त्रित करने से स्वतन्त्र प्रेस पूर्ण रूप से अपनी भूमिका अदा करता है। स्वतन्त्र प्रेस द्वारा अत्याचार,
असमानता, व्यक्तियों में भेद, शोषण, निर्माण, सामाजिक तथा राजनीतिक दोषों को दूर करने के लिए जनमत निर्माण का कार्य किया जाता है। अतः स्वतन्त्र प्रेम की आवश्यकता पूरे राष्ट्र को पड़ती है।

प्रेस का दायित्व- स्वतन्त्र प्रेस अपना दायित्व तभी निभा सकते हैं जब वे व्यक्तियों के आर्थिक प्रलोभनों, राजनीतिक दबावों तथा दलीय संक्रीर्णता से मुक्त हो। पीत पत्रकारिता में लिप्त प्रेस अपनी विधायक भूमिका कभी भी सिद्व नहीं कर सकते।

पत्रकारिता की आचार संहिता के आधार पर प्रेस अपना दायित्व भलीं-भाति निभा नहीं सकते क्योंकि उसमें भी काफी प्रतिबन्ध होते हैं।

प्रेस स्वतन्त्रता की विशेषता- प्रजातान्त्रिक देश में प्रेस की स्वतन्त्रता प्रजातान्त्रिक मूल्यों तथा आदर्शो की सुरक्षा की गारन्टी है। यह प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया की बड़ी ही सरलता से अनपढ़ एवं अशिक्षित लोगों को परिचित करते हैं।

प्रेस संघर्षों से जुझकर नये-नये रास्ते निकालने की मानसिकता उत्पन्न कर सकता है। नवनिर्माण की दिशा प्रदान करता है। युद्व तथा शान्ति दोनों ही अवस्थाओं में उसकी मुख्य भूमिका होती है।

स्वतन्त्र प्रेस के मार्ग की बाधाएं- प्रेस की स्वतंत्रता के मार्ग में पथ-पथ पर अनेक बाधाएं आती हैं इसलिए यह प्रश्न हमेशा पैदा होता है कि वर्तमान समय में प्रेस की आजादी क्या सम्भव है? प्रेस की स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधा पूर्वाग्रहशीलता है, अर्थात् इन्सान ने जिस चीज का पहले से मन बना लिया है, उसे उसी रूप में करना चाहता है। इस विचारधारा के चलते कभी-कभी प्रेस की टिप्पणियों का जनता स्वीकार नहीं कर पाती।

उधोगपतियों के द्वारा संचालित पत्र भी स्वतन्त्र प्रेस के लिए बाधक हैं उधोगपतियों द्वारा अपने पत्रों का उपयोग अपने औधोगिक हितों के लिए किया जाता है।

वे अपने औधोगिक हितों की पूर्ति के लिए सरकार से सांठ-गांठ करके चलते हैं। सरकार की उन योजनाओं की प्रशंसा भी वे अपने समाचार-पत्रों के माध्यम से करते हैं जो आम जनता के हित में नहीं होती। यह स्थिति प्रेस की आजादी में बाधा उत्पन्न करती है। अन्य छोटे अखबारों की जनता के हित में उठायी जाने वाली आवाज दब जाती है।

प्रेस की स्वतन्त्रता पर नियन्त्रण रखने से उत्पन्न होने वाली हानियां- प्रेस की स्वतन्त्रता पर नियन्त्रण रखने से अनेक हानियां उत्पन्न हो सकती हैं-

(1) सम्पादकों पर अभियन्त्रित दबावों के कारण भ्रष्टाचार की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वृद्वि होगी।
(2) एकपक्षीय प्रेस के द्वारा सार्वजनिक हितों की रक्षा नहीं की जा सकती।
(3) एकपक्षीय प्रेस निहित स्वार्थों के धंधों में खिलौना बन जाती है, जिसके कारण जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में योगदान सम्भव नहीं हो सकता।
(4) सेंसरशिप से सरकार को भी सही विषयों का ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता जिस कारण सरकार अन्धकार में डूब जाती है।
(5) सरकारी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने से अफवाहों को ही बल मिलता है।

उपसंहार- यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि न अधिक आजादी ही सही है और न ही अधिक पाबन्दी। जीवन के हर क्षेत्र में यह सिद्वान्त सत्य साबित होता है। यहां सिद्वान्त प्रेस की आजादी के मामले में भी पूर्णतयः सच है। प्रेस को यदि पूर्ण आजादी हो गयी तो वे अपने निजी स्वार्थ साधने लगंेगे। अंकुश लग भी गया तो सरकार की दोषपूर्ण नीतियों का वे उजागर न कर सकेंगे। इसके लिए प्रेस कौंसिल को व्यापक अधिकार दिये जायें कि वे सरकारी हस्तक्षेप के बगैर प्रेस आजादी पर नियंत्रण और अकुंश रख सकें।

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