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Hindi Essay on “Panchayati Raj Vyavastha” , ”पंचायती राज व्यवस्था” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

पंचायती राज व्यवस्था

Panchayati Raj Vyavastha

 

                पंचायती राज यानी ’पंच परमेश्वर’ का एक उत्कृष्ट विचार भारत को विरासत में मिला है। चूंकि भारत गांवों का देश है, इसलिए गांवों का समग्र विकास ही यहां लोकतंत्र की सफलता की कसौटी है। इस संदर्भ में जे.एस. मिल का कथन उपयुक्त है-’’सामाजिक राज्य की सभी आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूर्ण करने वाला शासन वहां से हो सकता है जिसमें सम्पूर्ण जनता भाग लें।’’ महात्मा गांधी ने स्वाधीनता के संघर्ष के समय ही भारत में रहने वाली 7 लाख गांवों की जनता के स्वराज्य की मूल भावनाओं को आत्मसात कर लिया था, क्योंकि शासन पद्धतियों के चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं ने लोकतंत्रात्मक प्रणाली को स्वीकार किया।

                पंचायती राजव्यवस्था हमें धरोहर में मिली है, जिसे अंग्रेजों ने अधिकार विहीन बनाकर कमजोर कर दिया था। नौकरशाही के मकड़जाल में फंसकर यह व्यवस्था मृतप्राय हो गई। अतः पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त एवं अधिकारयुक्त बनाने की दिशा में कार्य हुआ। भारत की सामाजिक व्यवस्था में पंच परमेश्वर की मूल अवधारणा प्राचीनतम है। गांवों के देश भारत ने इसी तंत्र से विधायी, कार्यपालिका, न्यायपालिका की सुदृढ़ शक्तियों को अपने हाथ में रखा था जिसे पंचायत का रूप दिया गया था।

                लास्की ने लिखा है, ’’हम लोकतंत्रात्मक सरकार का पूरा लाभ उठा नहीं सकते जब तक हम यह बात मानकर नहीं चलते कि सभी समस्याएं केन्द्रीय समस्याएं नहीं हैं, और ऐसी समस्याएं जो केन्द्रीय नहीं हैं उनका हल उस स्थान पर उन लोगों द्वारा होना आवश्यक है जिनके द्वारा वे अधिक अनुभव की जाती हैं।’’ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। गांधी जी ने कहा था-’’यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जाएगा। वह भारत नहीं होगा, विश्व मंे उसका संदेश समाप्त हो जाएगा।’’

                लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण एवं भारत के समग्र विकास की दिशा में पंचायती राज एक श्रेष्ठतम प्रयास है। भारत में पंचायती राज का वर्तमान स्वरूप संविधान के 73वें संशोधन पर आधारित है। लक्षद्वीप, मिजोरम, मेघालय, नगालैण्ड के अतिरिक्त सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न स्वरूपों में ग्रामीण स्थानीय सरकार कार्यरत हैं।

                राजस्थान पहला राज्य है जहां पर सर्वप्रथम पंचायती राज की स्थापना की गई। 12 दिसम्बर 1959 को राजस्थान विधानमंडल ने सबसे पहले पंचायत समिति और जिला परिषद अधिनियत पारित किया और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज का उद्घाटन किया।

                इसके बाद पंडित नेहरू ने 11 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश में विस्तारित पंचायती राज का उद्घाटन किया। 1960 में असम, मद्रास, कर्नाटक में, 1962 में महाराष्ट्र में, 1964 में पं. बंगाल मंे ग्रामीण स्थानीय सरकार के रूप में पंचायती राज लागू हुआ। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 226,108 ग्राम पंचायतें, 5736 पंचायत समितियां तथा 457 जिला परिषदें कार्य कर रही हैं। जिनमें विभिन्न स्तरीय कार्यरत जनप्रतिनिधियांे की संख्या लगभग 34 लाख है। ताजा आंकड़ों के अनुसार 31,98,554 ग्रामीण प्रतिनिधियों, 151412 पंचायत समिति स्तरीय प्रतिनिधियों तथा 15935 जिला स्तरीय प्रतिनिधियों का निर्वाचन हुआ है।

                भारत में पंचायती राज की विभिन्न संस्थाओं एवं प्रतिनिधियांे को सभी राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। ग्रामीण स्तरीय संस्थाओं को लगभग सभी राज्यों में ग्राम पंचायत, ग्राम सभा के नाम से सम्बोधित किया जाता है। पंचायत समिति को आंध्र प्रदेश में ’मंडल पंचायत समिति’, तमिलनाडु में ’पंचायत यूनियन’, बंगाल मंे ’ औपचारिक परिषद’ तथा असम मंे ’पंचायत’ के नाम से जाना जाता है। गुजरात में पंचायत समिति को ’तालुका पंचायत’, कर्नाटक में ’तालुका डेवलपमेंट बोर्ड’, अरूणाचल प्रदेश में ’अंचल समिति’ तथा मध्य प्रदेश मंे ’जनपद पंचायत’ कहा जाता है। पं. बंगाल, असम, गुजरात, कर्नाटक, अरूणाचल प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में पंचायत समिति के अध्यक्ष को ’प्रेसीडेन्ट’ कहा जाता है। महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब में ’चेयरमैन’ एवं बिहार तथा उ.प्र. मंे पंचायत समिति का अध्यक्ष ’प्रमुख’ कहलाता है।

                संविधान के अनुच्छेद 40 के अन्तर्गत पंचायत व्यवस्था का प्रावधान कर देश में प्रशासनिक अधिकारों को विकेन्द्रीकृत करने का प्रयास किया गया है। स्थानीय सरकारें ’डिकंसट्रेक्शन’ और ’डि-सेण्ट्रलाइजेशन’ के सिद्धातं पर आधारित हैं। डिकंसट्रेक्शन में केन्द्रीय सरकार स्थानी सरकार को समुचित प्रशासकीय शक्तियां देने के लिए उनमंे स्थानीय कार्यकर्ताआं को नियुक्त करती हैं और अधिकारियों की मात्रा परिस्थितियों के अनुसार रखती हैं। इसके अतिरिक्त दूसरे आधार पर विकेन्द्रीकरण में उनकी मुख्य शक्तियों को महत्व देते हुए स्थानीय निकायों निर्माण होने से है। उनका एक निश्चित कार्यक्षेत्र होता है जिसमें वे अपने निर्णय एवं प्रशासन को प्रयोग में लाते हैं। हेनरी मेडिक के अनुसार-’’विकेन्द्रीकरण हस्तान्तरण को अपने में विलीन कर देता है।’’

                वास्तव में पंचायत व्यवस्था में लाॅर्ड रिपन का मुख्य योगदान रहा। वे चाहते थे कि ये संस्थाएं सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहें ताकि भारतीय जनता स्वशासन का अनुभव प्राप्त कर सके। परन्तु रिपन के विचारों का पूर्णरूपेण पालन नहीं किया गया था। इस सम्बन्ध में मजूमदार ने लिखा है- स्वतक त्पचचवद उंकम बतनबपंस इमहपददपदह पद जीम कपतमबजपवद व िसवबंस ेमस िहवअमतदउमदज पद उवकमतद प्दकपंण् भ्पे पकमंे ूमतम दवज हपअमद निसस मििमबजए इनज ीम ेवूमक जीम ेममके ूीपबी नसजपउंजमसल हमतउपदंजमक पद तमंस कमअमसवचउमदज व िसवबंस ेमस िहवअमतदउमदजण्श्

                भारत में पंचायती व्यवस्था निम्नतम ग्रामीण स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाएं हैं, किन्तु पंचायत व्यवस्था को महत्व उच्चतम स्तर पर कार्य करने वाली संसद से किसी तरह भी कम नहीं है। भारत में गांवों का कायाकल्प इन पंचायतों के कुशल प्रशासन पर ही निर्भर है। इनको महत्व देने का प्रथम कारण है कि पंचायतें तथा स्थानीय संस्थाएं स्थानीय स्तर पर शासन का कार्य करती हैं। इसका कारण है प्रजातंत्र के प्रशिक्षण की प्राथमिे पाठशाला होना। महात्मा गांधी ने कहा है-’’स्वतंत्रता का प्रारम्भ धरातल से होना चाहिए।’’ पंडित नेहरू ने इसका महत्व बताते हुए कहा था-’’पंचायती राज का परम उद्देश्य भारत में प्रत्येक नागरिक को भारत के भावी प्रधानमंत्री बनाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना हो।’’

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