Hindi Essay on “Padhne ka Anand”, “अध्ययन का आनन्द” Complete Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
अध्ययन का आनन्द
Padhne ka Anand
प्रस्तावना : हजारी प्रसाद द्विवेदी के कथनानुसार, साहित्य मनुष्य की अपनी विशेषता है। साहित्य भाषा में लिखा जाता है। वह कुछ शब्दों का आधार संघात है और ये शब्द कुछ खास अर्थों को प्रकट करते हैं।” वास्तव में देखा जाए, तो ये अर्थ ही अध्ययन का आनन्द उत्पादक शक्ति हैं। इस शक्ति को अंगीकार करने के लिए सदैव ही मनुष्य विद्यार्थी बना रहना अच्छा समझता है। यही प्रवृत्ति उसे अन्य प्राणियों से भिन्न बनाए है। वह अन्य प्राणियों की तरह प्रकृति में जो कुछ भी घट रहा है उसे ज्यों का त्यों नहीं स्वीकारता है; अपितु उसके सदस्यों का अध्ययन करके आनन्द अर्जित करता है और उसका ज्ञान बढ़ता जाता है।
अध्ययन का आनन्द : मनुष्य की कर्मेन्द्रियाँ व ज्ञानेन्द्रियाँ किसी-न-किसी व्यापार में लीन रहकर और उसका सुख भोग कर होती रहती हैं। जिस प्रकार स्वादिष्ट आहार जिह्वा को सुख देता है, सुन्दर दृश्य नयनों की प्यास बुझाते हैं और मधुर स्वर लहरी कानों को अच्छी लगती है। उसी प्रकार अध्ययन मस्तिष्क का खाद्यान्न है। इसी को ग्रहण करने के बाद संतुष्टि का अनुभव करता है। मन के विकारों को अध्ययन से दूर किया जा सकता है। सत्साहित्य के द्वारा चरित्र का निर्माण होता है। सच्चरित्रता की समाज में सराहना की जाती है। यह सब कुछ अध्ययन के आनन्द के परिणामस्वरूप ही आता है।
अध्ययन का आधार : अध्ययन का आधार है सत्साहित्य। इससे मन बहलता है और आनन्द की प्राप्ति होती है। यदि हम अपने जीवन का वास्तविक व सच्चा प्रतिबिम्ब देखना चाहते हैं, तो सदा इसको अंगीकार करना पड़ेगा; पर यह व्यक्ति विशेष की रुचि एवं संस्कारों पर निर्भर रहता है। लोकनायक तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ या ‘विनयपत्रिका’ भक्ति व धर्म की भावना से ओतप्रोत है। इससे भी ऐसे रस की निष्पत्ति होती है जो आनन्द का जनक कहलाता है। पाठक इनको पढ़ते-पढ़ते राममय हो जाता है। वह श्रीराम के चरित्र से जीवन को संघर्ष से जीना सीखता है।
अध्ययन संतप्त मानस की अचूक औषधि : यह कथन यथार्थ है। संतप्त मानस को गीता आराम पहुँचाती है और तनाव खत्म कर देती है। सूरसागर का वात्सल्य, गोपियों की विरह भावना और मीरा की टीस का अध्ययन ऐसे आनन्द की अनुभूति कराता है जो जनमानस के लिए अद्वितीय है। रीतिकालीन श्रृंगारिक काव्य भी मनोवेगों को संतुष्ट करता है। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का साहित्याध्ययन मानव जीवन को सही अर्थों में जीना सिखाता है और आत्म-संस्कार करवाता है। वास्तव में अध्ययन संतप्त मानस की अचूक औषधि है। इससे आकुल हृदय में भी नए भावों का उदय होता है। वह स्फूर्ति से भर जाता है।
आनन्द का रस : यह बड़ा ही विचित्र होता है। आनन्द रस के भोगी कई ऐसे भी होते हैं जो एक बार पुस्तक को पकड़ लेते हैं, तो फिर उसे खत्म करके ही छोड़ते हैं। कई लोगों को समाचारपत्र की ललक इतनी होती है कि उसे पढ़े बिना उन्हें चैन ही नहीं पड़ती है। यह सब आनन्द के रस को ही खेल है। इसके खिलाड़ी की भूख, प्यास और नींद तक उड़ जाती है। देर-देर तक पढ़ने के कारण ज्योति भी क्षीण पड़ जाती है और पाचन शक्ति में भी कई तरह से विकार पैदा हो जाते हैं। इसके आनन्द का रसपान करना वहाँ तक ही उचित है जहाँ तक उसमें नियमितता बनी रहे। यही अध्ययन का वास्तविक आनन्द है।