Hindi Essay on “Nasha Mukti” , ”नशा मुक्ति” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
नशा मुक्ति
Nasha Mukti
मादक द्रव्य सेवन की पृवति हजारों वर्ष पुरानी है। अनुसंधान एवं वस्तु-निर्माण की शक्ति से युक्त मानवों ने सभ्यता के विकास के साथ एक से बढ़कर एक उपयोगी चीजें खोज लीं, उपकरण बना लिए, वस्तुएँ निर्मित कर लीं। इस क्रम में उन्होने मादक द्रव्य ढूँढ निकाले एवं उनका प्रयोग करना सीख लिया। भारत के प्राचीन ग्रंथों में ’सोम और सुरा’ का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि वैदिक-पौराणिक कालीन भारतीय मादक द्रव्य से परिचित थे और विशेष अवसरों पर उसका सेवन करते थे। एक विशेष प्रकार की लता से सोमरस तैयार किया जाता था। इसका पान उल्लास एवं उत्साह की वृद्वि करने वाला माना जाता था। यह नहीं कहा जा सकता है कि सोमरस के पान को लेकर मुसीबतें नहीं आती थीं। बहुत बार इसको लेकर झगड़े हो जाते थे।
मादक द्रव्य सेवन न तो किसी एक देश की समस्या है और न ही एकदम नई है, फिर भी जिस रूप में यह भारत में उभरी और बढ़ी है, वह किसी सीमा तक आयातित एवं नई है। अभी कुछ वर्ष पूर्व तक स्थिति यह थी कि कुछ ही लोग मादक द्रव्य के सेवन में रूचि लेते थे, शेष उससे मुक्त रहते थे। किशोर एवं युवा वर्ग के व्यक्ति प्रायः मादक द्रव्य सेवन से दूर रहते थे किन्तु आज पश्चिमी देशों की तरह भारतीय किशोरों एवं युवाओें में भी यह आदत तेजी से फैल रही है। दुःख की बात यह है कि किशोर-किशोरी एवं युवक-युवती विशेष रूप से इनकी चपेट में आ रहे हैं। इस समस्या का सर्वाधिक प्रभाव महानगरों पर पड़ रहा है। मादक द्रव्य किसी विशेष वर्ग के लोग ले रहे हों, यह बात नहीं। अमीर-गरीब, विद्यार्थी-अध्यापक, बेरोजगार-रोजगार, ग्रामीण-शहरी, शिक्षित-अशिक्षित, नर-नारी किसी भी वर्ग का व्यक्ति इनका शिकार हो सकता है। यहाँ तक कि कुछ चिकित्सक भी इनके शिकार पाए गए हैं।
सामान्यतः मादक द्रव्यों के घेरे में स्वापक एवं संवेदना मंदक द्रव्य या औषधि आते हैं। अंग्रेजी में इन्हें ’ड्रग्स’ कहा जाता है। आज ’ड्रग्स’ शब्द का प्रयोग सामान्यतः स्वापक, संवेदना मंदक द्रव्य के अर्थ में ही किया जाता है। ऐसा कोई भी पदार्थ ’ड्रग्स’ कहला सकता है, जो आहार की सीमा मंे न आते हुए भी अपनी रासायनिक प्रकृति के कारण जीवों की क्रिया-प्रणाली की संरचना पर प्रभाव डालता है। वैज्ञानिक रूप से यह परिभाषा सही होते हुए भी व्यापक है, क्योंकि मादक द्रव्यों के अतिरिक्त ऐसे अनेक पदार्थ हैं जो आहार की सीमा में नहीं आते हैं तथापि उनका सेवन जैविक क्रिया-प्रणाली की संरचना को प्रभावित कर सकता है।
मादक द्रव्य अनेक प्रकार के होते हैं। इनके मुख्य चार वर्ग हैं-स्वापक, उद्दीपक, शासक, विभ्रक उत्पादक। उपर्युक्त चार वर्गों के मादक द्रव्यों को पुनः दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-(1) सामान्य स्वापक शासक, उद्दीपक या संवेदना मंदक द्रव्य एवं (2) गम्भीर समस्या उत्पन्न करने वाले मादक द्रव्य।
सामान्य शासक, उद्दीपक मादक द्रव्यों में ’निकोटीन’, कैफीन आदि को लिया जा सकता है। सिगरेट के ’निकोटीन’ एवं काॅफी के ’कैफीन’ भी हानिकारक हैं किन्तु इनका हानिहार प्रभाव असंयमित मात्रा में दीर्घकाल तक प्रयोग करने पर पड़ता है। सामान्य शराब ’अल्कोहल’ के साथ भी किसी सीमा तक यही बात है, किन्तु यह सिगरेट के ’निकोटीन’ एवं काॅफी के ’कैंफीन’ से तुलनीय नहीं है क्योंकि इसमें व्यसनी बना देने एवं हानि पहुँचाने की क्षमता कहीं अधिक है। बार-बार के प्रयोग से व्यक्ति इस पर निर्भर रहने लगता है। अभिप्राय यह है कि सामान्य तौर पर अधिक खतरनाक न दिखलाई देेने वाला पेय भी अंसयमित अथवा दीर्घकाल प्रयोग से गंभीर समस्या का रूप धारण कर सकता है।
स्वापक अथवा संवेदना मादक द्रव्य- इस वर्ग के अन्तर्गत मुख्यतः वे मादक द्रव्य आते है जो पोस्ते के पौधे से बनाए जाते हैं। इनमें मुख्य हैं-अफीम, माॅरफीन, हेरोइन, स्मैक आदि। सामान्य तौर पर ये द्रव्य दर्द कम करने, निद्रालुता उत्पन्न करने, सुखबोध देने का काम करते हैं। यद्यपि सभी व्यापक अथवा संवेदना मंदक द्रव्य आदीत का शिकार बना देते हैं किन्तु इनमें हेरोइन एवं स्मैक व्यसनी बना देने की अत्यधिक क्षमता रखते हैं। हेरोइन अफीम का अत्यधिक परिष्कृत रूप है। इसको लेने पर व्यक्ति एक विशिष्ट प्रकार के सुखबोध की स्थिति में चला जाता है और सामान्य होने पर बहुत अधिक कष्ट अनुभव करता है। किसी-किसी को भंयकर पीड़ा की अनुभूति होती है। इसके बाद व्यक्ति फिर इसे लेना चाहता है ताकि उसकी बेचैनी और पीड़ा दूर हो सके। हेरोइन की आदत के शिकार लोगों की संख्या काफी अधिक है।
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