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Hindi Essay on “Mera Priya Upanyaskar ” , ” मेरा प्रिय उपन्यासकार” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

मेरा प्रिय उपन्यासकार

Mera Priya Upanyaskar 

 

प्रेमचंद मेरे प्रिय उपन्यासकार मुन्शी प्रेमचन्द का जन्म 31 मई सन 1880 ई० को काशी चार मील उत्तर पाण्डेयपुर के निकट लमही ग्राम में एक निम्न वर्ग के कुलीन कायस्थ रिवार में हुआ था। आपका बचपन का नाम धनपतराय था। माता का नाम आनन्दी देवी आ। पिता बाबू अजायबराय डाकखाने में बीस रुपये मासिक वेतन पर मुन्शी का कार्य करते थे।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा पाँचवे वर्ष से प्रारम्भ हुई। पहले आपने उर्दू पढी। इसके उचात किग्सवे कॉलेज से हाई स्कूल की परीक्षा पास की। तत्पश्चात् प्रयाग में सरकारी नौकरी में आकर सी०टी० और इण्टर परीक्षाएँ पास की। उन्नति करते-करते आप स्कूलों के उपनिरीक्षक हो गये; किन्तु स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण नौकरी छोड़ दी। पुनः बस्ती के सरकारी विद्यालय में अध्यापक हुए। वहाँ से गोरखपुर जाकर बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। आपने सन् 1921 में देश की स्थिति को देखकर सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। माधुरी, हंस और जागरण पत्रिकाओं का सम्पादन किया। जीवन भर आर्थिक कठिनाइयों से जूझते रहे। 18 अक्टूबर सन् 1936 को आपका निधन हो गया।

मेरे प्रिय उपन्यासकार प्रेमचन्द जी समय की गति को पहचानने में अद्वितीय थे। आपने जीवन की निर्मम परिस्थितियों का कटु-आस्वादन भली भाँति किया। आपकी समाजवादी विचारधारा की छाप आपकी कृतियों पर स्पष्ट रूप से पड़ी है। ग्रामीण जीवन का जैसा जीता-जागता चित्र आपकी रचनाओं में उपलब्ध है वैसा अन्यत्र नहीं। यथार्थ चित्रण के साथ आपकी रचनाओं में

आदर्श का समन्वय हुआ है। आपका दृष्टिकोण सर्वत्र मानवतावादी था। उपन्यास तथा कहानियों के अतिरिक्त आपने निबन्ध तथा नाटक भी लिखे हैं। वास्तव में आप अपने युग के एक महान् कलाकार थे। हिन्दी जगत् सेवाओं के लिए सदैव आपके प्रति श्रद्धानत रहेगा।

रचनाएँ सम्पादनः मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरण, गल्प सुमन, गल्प रत्न, जमाना।

उपन्यासः कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, वरदान, रंगभूमि, प्रेमा. मंगलसूत्र, दुर्गादास, सेवासदन, गबन तथा गोदान।

कहानी-संग्रहः आपकी कहानियाँ मानसरोवर (आठ भागों में) हैं। इसके अतिरिक्त अन्य संग्रह-प्रेम प्रसून, प्रेम-पच्चीसी, प्रेम-तीर्थ, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम द्वादशी, प्रेरणा, ग्राम्य जीवन की कहानियाँ कुल मिलाकर हिन्दी में 356 तथा 178 उर्दू में हैं।

नाटक: कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी, रूहानी-शादी, रूठी रानी और चन्द्रहार।

निबन्ध-संग्रहः कुछ विचार, स्वराज्य के फायदे और साहित्य का उद्देश्य।

जीवन चरितः दुर्गादास, महात्मा शेखसादी, कलम-तलवार और त्याग।

बाल साहित्यः कुत्ते की कहानी, मन-मोदक, रामचर्चा आदि।

प्रारम्भ में प्रेमचन्द जी उर्दू के लेखक थे। बाद में हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया आपकी साधारण बोल-चाल की चलती हुई भाषा है। इसमें मुहावरों और कहावतों को पर्याप्त प्रयोग मिलता है। आपकी भाषा सरल, सुबोध तथा पात्रानुकूल कथोपकथनों । अनुरूप है। अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी यत्र-तत्र मिलता है। सक्ति। भी यथास्थान प्रयुक्त हुई हैं। प्रेमचन्द की शैली अत्यन्त आकर्षक एवं मार्मिक है। उसमें उर्दू का चुलबुलापन तथा हिन्दी की सरलता, भाव गम्भीरता एवं सजीवता का उत्तम योग मिलता है।

कहानी तथा निबन्ध लेखकों में प्रेमचन्द जी का श्रेष्ठ स्थान है। उपन्यासों के तो आप सम्राट्र ही कहे जाते हैं। जब तक इस भू पर सूर्य व चन्द्र हैं, तब तक मेरे प्रिय उपन्यासकार की कीर्ति अमर रहेगी।

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