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Hindi Essay on “Mele ka Drishya ” , ”मेले का दृश्य” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

मेले का दृश्य

Mele ka Drishya 

निबंध नंबर :- 01

भारत मेलों तथा त्योहारों का देश है। वे हमारा बहुत मनोविनोद कराते हैं। नगर के लोगों के पास आकर्षण तथा मनबहलाव के कई साधन होते हैं। वे चमकते हुए बाजारों, बड़े होटलों तथा सिनेमाघरों में जा सकते हैं। साप्ताहिक बाजारों से वे सुविधापूर्वक अपनी मनचाही वस्तुएं खरीद लेते हैं। ऐसी सुविधाएं बेचारे ग्रामवासियों को उपलब्ध नहीं हैं। ग्रामों में काफी दूरी पर बाजार होते हैं। ग्रामवासियों का जीवन बड़ा कठोर तथा आकर्षणहीन होता है। मनोविनोद के साधन उनके पास नहीं हैं। उनका विलग जीवन नागरिक आधुनिकीकरण से वंचित है।

ग्रामों में प्रति वर्ष बहुत मेले लगते हैं। ये प्रायः किसी त्योहार के अवसर पर ही लगते हैं। होली का मेला, रक्षाबन्धन का मेला, बसन्त मेला तथा बैसाखी मेला प्रमुख मेले हैं। हमारे क्षेत्र में बाबा हरिदास का मेला प्रमुखतम है। यह ग्राम झाड़ोदा कलां में वर्ष में दो बार लगता है।

इस वर्ष मुझे यह मेला देखने का अवसर मिला। यह ग्राम के बीच में लगा था। वहां पर बाबा की समाधि के चारों ओर बहुत बड़ा खुला स्थान है। हजारों की संख्या में नर-नारी तथा बच्चे दूर और समीप से अपने बन्धुओं के साथ वहां आए। मुझे वहां बड़ी चहल-पहल नजर आई। लोगों ने अपनी बैलगाड़ियां, स्कूटर, मोटर साईकिल, ट्रक, टैम्पो तथा ट्रोलियां गांव के बाहर ही खड़ी कर दी थीं। बहुत-से लोग पहली रात को वहीं पर ठहर गये थे। यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की छठ थी। वहां पर बहुत-सी अस्थायी दुकानें लगी हुई थीं। प्रातः से ही मेला पूरे जोरों पर था। सभी ने ‘मल्लाह’ (तालाब) में स्नान किया। कुछ स्त्रियों ने अपने नन्हें बच्चों के बाल उतरवाये तथा मल्लाह के शुद्ध जल में प्रवाहित कर दिये। स्नान करने के उपरान्त लोगों ने समाधि पर मस्तक झुकाया और घी के दीपक जलाये। सभी ने वहां प्रसाद चढ़ाया और बांटा। मनुष्यों, स्त्रियों तथा बच्चों ने वहां भिन्न-भिन्न प्रतिज्ञाएं की तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थनाएं की।

मैंने बाजार की तरफ अग्रसर होती हुई भारी भीड़ को देखा। सभी सुन्दर वस्त्रों तथा प्रसन्नचित मुद्रा में थे। मिठाइयों की दुकानों पर सबसे अधिक भीड़ थी। लोग मिठाइयोंके डिब्बे खरीद रहे थे। कुछ ग्राहक दुकानदारों को ठगने के चक्कर में थे। उन्हें पकड़ा गया तथा उनका अपमान किया गया । छोटे बच्चे खिलौने, टॉफियां तथा गुब्बारे खरीदने में व्यस्त थे। नट, मदारी और जादूगर बहुत बड़े जमघट को आकर्षित कर रहे थे। लोग मन्त्र-मुग्ध होकर उनके करतब देख रहे थे। पुलिस के कर्मचारी, स्काउट तथा स्वयंसेवक भीड़ को नियन्त्रित कर रहे थे और लोगों का मार्ग-दर्शन कर रहे थे। जेबकतरे भी अपने धन्धे में लगे हुए थे। एक जेब-तराश एक स्त्री का हार छीनकर भागने लगा। वह रंगे हाथों पकड़ा गया। उसे बुरी तरह से पीटा गया तथा पुलिस के हवाले कर दिया गया। सभी सावधान हो गए। छोटे-छोटे लड़के, लड़कियां तथा नव-विवाहित युगल हिन्डोलों में झल रहे थे। सपेरे बीन बजा रहे थे तथा दर्शकों को भिन्न-भिन्न आकार व प्रकार के सांप दिखा रहे थे। मेले में कई प्याऊ लगी हई थीं। चूड़ी तथा प्रसाधन सामग्री आदि बेचने वाले स्त्रियों को आकर्षित कर रहे थे। स्त्रियां पाउडर, बालों की पिनें, नाखून पालिश, क्रीम, शीशे, कंघे, रिबन तथा जेवर खरीद रही थीं। गर्म केकों के समान गोल-गप्पे और चाट बिक रहे थे। सर्कस के खेल में नवीनता थी तथा उसके प्रति लोग आकर्षित थे। फेरी वाले, छाबड़ी वाले तथा अन्य पैदल विक्रेता जोर-जोर से बोलकर अपना माल बेच रहे थे। सस्ती तथा बासी खाद्य सामग्री वहां बिक रही थी। बहुत-से लोगों ने देवी-देवताओं और प्रसिद्ध फिल्मी सितारों के भिन्न-भिन्न रूप वाले चित्र व कलैण्डर खरीदे। मनुष्यों ने कश्तियां देखीं। विजेताओं को इनाम मिले। सेवा-समिति के शिविरों द्वारा खोए हुए बच्चों के बारे में घोषणाएं की जा रही थीं।

ग्रामों में लगने वाले मेले ग्रामवासियों के लिए बड़े लाभप्रद सिद्ध होते हैं। वे उनका मनोरंजन करते हैं तथा उनमें ताजगी पैदा करते हैं। वे उनकी बोरियत को समाप्त करते हैं और उन्हें कार्यकुशल बनाते हैं। मेलों के अवसर पर मित्रों तथा सम्बन्धियों के दर्शन भी हो जाते हैं तथा उनकी खुशी व गमी का समाचार भी मिल जाता है।

 

निबंध नंबर:- 02

 

किसी मेले का आँखों देखा दृश्य

Kisi Mele ka Aankhon Dekha Drishya 

 

सारा दिन परिश्रम करने के पश्चात् जब शाम तक मनुष्य थक जाता है तो वह विश्राम तथा मनोरंजन चाहता है। इस बहाने अपने कड़वे अनुभवों को भुलाने का प्रयास करता है। अपने पुराने मित्रों और परिचित लोगों तथा अपने सगे सम्बन्धियों से मिलकर वह कुछ समय के लिए जीवन के दुःखों को भुला देता है। वह अपने पूर्वजों द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए अपन जावन का सफल बनाने का प्रयत्न करता है। कभी वह अपनी भूली हुई धार्मिक भावनाओं को फिर से जागृत करने के लिए विचारों का आदान-प्रदान करता है। इसी दृष्टिकोण से भारतीय मेलों का विशेष रूप से महत्त्व है। भारतवर्ष एक मेलों का देश है। यहाँ आये दिन किसी न किसी जाति और धर्म का मेला लगा रहता है। प्राचीन काल में भी लोग मेलों के बहाने से एक दूसरे से मिल लेते थे तथा धार्मिक विचार तथा प्रेरणा ग्रहण करते थे। दूर जाकर कौन चार छ: दिन नष्ट करे, इसी बात को प्रमख रखकर प्रत्येक ग्राम के आस पास चार छ: महीनों में कोई न कोई मेला लगा करता था। पंजाब में तो मेले के अवसरों पर लोगों का उत्साह और उल्लास दर्शनीय होता है। वैशाखी का त्योहार इस वर्ष भी बहुत उमंग से मनाया गया। यह बहुत प्राचीन काल से मनाया जाता है। वैशाख मास की संक्रान्ति अर्थात् पहली तिथि एवं अप्रैल मास की 13 तारीख का दिन वैशाखी पर्व का दिन है। देसी वर्ष भी इसी दिन आरम्भ होता है।

वैशाख पर्व के दिन वैसे तो स्थान स्थान पर अधिक उमंग की लहर दिखाई देती है लेकिन अधिक रौनक नदी, सरोवर आदि पर होती है। प्रातःकाल से ही यहां लोग स्नान आदि का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर इस दिन लाखों लोग स्नान करते हैं। इस वर्ष की वैशाखी का दृश्य मेरे हृदय पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ गया है। हमारे गाँव के विशाल मैदान में नहर के किनारे वैशाखी का मेला मनाया गया। वहां बच्चों, युवकों और बूढ़ों की टोलियाँ भंगड़ा डालते हुए आ रही थी। पंजाबी जाटों ने तो ‘ओ जट्टा आई वैशाखी, कनकां दी मुक गई राखी’ की आवाज़ों ने तो आकाश तक को गुजां दिया। उस दिन मेरा छोटा भाई भी काफी समय के बाद अपनी पढ़ाई पूरी करके अमेरिका से आया हुआ था। उसके स्वागत में भी हमारे गाँव वालों ने विशेष कार्यक्रम तैयार किया हुआ था जिससे मुझे बड़ा आनन्द आया। मेले में एक ओर अखाड़ा था। कुछ युवक कुश्ती लड़ रहे थे। सधे हुए पहलवानों की कुश्ती देखने के लिए सैंकड़ों व्यक्ति खड़े थे। ढोल की ध्वनि पर मेले में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जिसका मन भंगडा डालने को न करता हो। ढोल की आवाज़ सब को अपनी ओर खींच रही थी। कहीं कबड्डी का मैच था तो कहीं बैल-गाड़ियों की दौड़। मैं तो दुविधा में था क्या देखू और क्या छोडूं।

चारों ओर मेला भरा भरा सा लाता था। मनचले नौजवान धक्केबाज़ी में ही आनन्द ले रहे थे, बेचारे शरीफ लोग भीड़ से बचकर निकलने की कोशिश कर रहे थे। खोमचे वालों की तरह तरह की आवाजें, खेल तमाशे वालों के गाने, रिकार्डों की आवाज़ों ने सारा वातावरण कोलाहल पूर्ण बना रखा था। एक तरफ पूड़ी-कचौरी वालों की दुकाने थीं। कहीं पूड़ियाँ सिक रही थी तो कहीं गरम गरम जलेबियां अपनी महकी-महकी सुगन्ध बिखेर रही थी और ग्राहकों को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। कोई बरफी खा रहा था, कोई लड्डु, कोई कलाकन्द का भोग लगा रहा था तो कोई कचौरियों पर आलू और चने की सब्जी डलवा रहा था। हलवाइयों की दुकानों पर इतनी भीड़ थी कि वहां बैठने की बात कौन कहे, वहां तो खड़े होने के लिए भी स्थान नहीं मिल पा रहा था। कहीं कहीं पर बिसातियों की दुकाने थीं जहां पर स्त्रियों और लड़कियों की भीड़ देखी जा सकती थी। कोई माथे की बिन्दी और कोई नाखूनों के लिए नेल पालिश खरीद रही थीं। बच्चे खिलौनों की दुकानों पर जमा थे और अपने माता पिता से खिलौने लेने के लिए मचल रहे थे। बच्चे एवं स्त्रियों की भीड़ सबसे ज्यादा गोल गप्पे वाली दुकानों तथा आलू की टिक्कियों की दुकानों पर देखी जा सकती थी। कुछ बच्चे झूलों पर झूलने के लिए भी मचल रहे थे। कहीं भजनोपदेश हो रहे थे, कहीं धार्मिक सभाएं हो रही थी। कुछ स्थानों पर पुस्तकों के स्टाल भी लगे हुए थे जहाँ से ग्रामीण लोग ग्रामीण साहित्य खरीद रहे थे। कुछ किताबे खरीद कर उनमें से गाना शुरु कर देते थे।

बडे दुःख की बात है कि कुछ लोग इस पवित्र दिन शराब पीते हैं। कभी कभी वे अपने आप से बाहर भी हो जाते हैं। ऐसे मौकों पर गाली-गलौच तथा मारपीट आजकल साधारण बात बन गई है। कभी कभी तो कुछ लोग आवेश में आकर एक दूसरे की हत्या तक कर देने में भी संकोच नहीं करते। इस प्रकार रंग में भंग डालना कोई अच्छी बात नहीं। इस दोष को दूर करके ही हम ऐसे मेले या पर्वों का वास्तविक आनन्द ले सकते हैं।

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