Hindi Essay on “Manav aur Dharam”, “मानव और धर्म” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
मानव और धर्म
Manav aur Dharam
मानव उस ईश्वर की सबसे अनोखी रचना है । मानव उस प्रभु का एक अंश है । इसलिए वह जानता है कि वह ईश्वर के हाथ का खिलौना है । इन्हीं कारणों से वह ईश्वर से डरा-डरा रहता है । इस डर से मुक्त होने के लिए वह उस ईश्वर की अनेक मूर्तियां मन्दिरों में स्थापित करता है । उनकी पूजा करता है ताकि वह परम सत्ता उससे प्रसन्न रहे । हर मनुष्य का ईश्वर के बारे में अपना-अपना मत, विचार है जिसे ‘धर्म’ की संज्ञा दी जाती है ।
धर्म मानव के गुणों से उत्पन्न वह तत्व है जिसको मान कर मानव सुख शान्ति, आनन्द, तृप्ति प्राप्त करता है । प्रत्येक प्राणी का धर्म अलग-अलग हो सकता है परन्तु धर्म की परिभाषा या स्वरूप में अन्तर नहीं हो सकता । स्पष्ट है-धर्म का कार्य मानव में श्रेष्ठ गुण पैदा करना है ।
मानव की एक ही इच्छा है-इष्टलोक से मुक्ति पाना । इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए अनेक मार्ग हो सकते हैं पर साहय एक ही है । धर्म अनेक हो सकते है पर सभी धर्मों का उद्देश्य एक है, वह है-मानव में सदगुण पैदा करना ताकि वह परम सत्ता में लीन हो जाए । सभी धर्म कहते हैं-मानव मात्र पर दया करो, मनुष्य से प्रेम करो क्योंकि सभी में परमात्मा का निवास है जो सर्वव्यापक है ।
धर्म आत्मा की प्रेरणा है जो प्रेम से फैलता है । मानव को धर्म से ऊपर उठ कर ईश्वर की उपासना करनी चाहिए । अतः ईश्वर, अल्ला, वाहेगुरु, परमात्मा ये सभी नाम एक ही महाशक्ति के हैं जिसकी लोग पूजा करते हैं । धर्म मानव के लिए है,मानव धर्म के लिए नहीं । इसलिए मनुष्य को धर्म की संकीर्ण दीवारों से ऊपर उठ कर मानव कार्य की बात करनी चाहिए । यदि मानव धर्म की सीमाओं में बंधा रहेगा तो वह साम्प्रदायिकता फैलाएगा । यदि हम मानव को मानव न समझ कर हिन्दु, मुस्लमान, सिक्ख, ईसाई के रूप में देखते रहेंगे तो हम मानवीय गुणों से गिर जाएंगे । हम पिछड़ जाएंगे । हम कभी भी उन्नति नहीं कर सकेंगे।
धर्म एक अफीम है जिसके नशे में लीन मानव अपना स्वतन्त्र अस्तित्व खो देता है । यह नशा मानव को पागल कर देता है । इसी नशे के वशीभूत अफगानिस्तान में तालेबिलन बौद्ध की मूर्तियां तोड़ रहे हैं । ऐसा करके वह अपनी नैतिकता का प्रदर्शन नहीं कर रहे बल्कि अपने अन्दर छिपी किसी हीन भावना का परिचय दे रहे हैं । उनके इस कार्य से विश्व में उनकी निन्दा ही हुई है ।
मानव का धर्म इतना छोटा नहीं होना चाहिए कि वह मूर्तियां तोड़ कर अपनी आत्म-तुष्टि करता रहे । मानव का धर्म है-प्रेम का प्रसार करना । मानव के हृदय को चोट पहुंचाना उसका धर्म नहीं होना चाहिए । दुःखियों के दुःख दूर करना उसका धर्म है । दूसरों की सेवा करना मुसीबत की घडी में दूसरों के काम आना ही मानवता है । उसे अपने स्वार्थों से ऊपर उठना होगा । उसका जीवन केवल अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के हित-साधन में होना चाहिए । मानव का धर्म है दूसरों का परोपकार करना । यदि ऐसा करते-करते उसका अपना जीवन भी चला जाए तो उसे दुःख नहीं होना चाहिए ।
मानव का धर्म होना चाहिए कि मानव को मानव से जोड़े । इसी में उसकी महानता है । जैसे सुकरात ने ज़हर का प्याला पीकर, महात्मा गांधी ने वक्ष पर गोली खा कर मानवता को प्रेम का अमर सन्देश दिया । विश्व के लोग आज भी इनके सामने नत्-मस्तक हो जाते हैं । उन्होंने अपने प्राण देकर मानव को उसका धर्म सिखाया ।
धर्म मनुष्य में विश्व-बन्धुत्व की भावना पैदा करता है । मानव और उसका धर्म एक दूसरे से बंधे हैं । यदि मानव का हृदय विशाल है तो वह अपने मानवीय-धर्म का पालन करके इस संसार का कल्याण कर सकता है जिससे अपना जीवन भी सुधार सकता है, दूसरों का पथ-प्रदर्शन भी कर सकता है । स्पष्ट है, मानव और धर्म एक दूसरे के प्रतीक हैं, एक दूसरे के मार्ग की रुकावट नहीं। अत: मानव का धर्म इतना महान होना चाहिए कि वह अपने मानवीय धर्म का पालन करके सबको मानवता का पाठ पढ़ाए ।