Hindi Essay on “Loktantra aur Vipaksh ki Bhumika” , ”लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes
लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका
Loktantra aur Vipaksh ki Bhumika
प्रस्तावना- प्रजातंत्र या लोकतंत्र शब्द का अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में बहुत अधिक महत्व है। इस शब्द की महत्ता आज विश्व के सर्वाधिक जनमानस तथा जनजीवन में निहित है। जो व्यक्ति तथा शासन प्रणालीयां प्रजातन्त्र तथा प्रजातान्त्रिक मूल्यों में भी विश्वास नहीं रखती, वे भी प्रजातन्त्र का नाम जोडकर अपनी शासन व्यवस्था को चलायें रखना चाहती है। पूर्णरूप् के तानाशही शासन व्यवस्था में आस्था रखने वाले दल भी ’प्रजातन्त्र’ से परहेज नहीं करते। इसका कारण यह है कि विश्व जनमत में आज प्रजातंत्र शब्द एक ऐसा मूलभंग हो चुका है जो शासन व्यवस्था चलाये रखने के साथ निंरकुशता का आवरण भी साबित हो रहा है।
परिभाषा- प्रजातन्त्र या लोकतन्त्र की सबसे उपयुक्त परिभाषा अब्राहम लिंकन ने ’गेटिसबर्ग’ भाषाण में दी थी, जो इस प्रकार है-
‘‘जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन ही लोकतन्त्र या प्रजातन्त्र है।‘‘ इस परिभाषा का अर्थ यह है कि प्रजातन्त्र में जनता की सभी प्रकार से भगीदारी सम्भव है और उसके हितों की रक्षा के लिए विशेष ध्यान दिया गया है।
अतः स्पष्ट शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रजातन्त्र उस शासन व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें शोषणरहित, स्वतंत्र विचार, मानवीय अधिकारांे तथा कर्तव्यों में नैतिक मूल्यों का स्पष्टिकरण किया जाता है।
प्रजातन्त्र में दलीय व्यवस्था- प्रजातान्त्रिक शासन उस शसन व्यवस्था को कहा जाता है, जिसमें दलीय पद्धति सम्मिलित हो। एक से अधिक दलों का अस्तित्व में होना ही प्रजातन्त्र का परिचायक होता है।
राजनीतिक दल की परिभाषा- राजनीतिक दल से आशय समाज के किसी वर्ण के संगठित रूप् से है। यह संगठित वर्ण अपनी विचार धारा के साथ अपना आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक उद्देश्य रखता है।
शासन दल- शासन दल से तात्पर्य उस दल से है जो अपनी घोषित नीतियों के आधार पर बहुमत प्राप्त करता है और सत्तारूढ होकर अपनी उन नीतियों के आधार पर शासन चलाने का निरन्तर प्रयास करता रहता है।
विरोधी दल- विरोधी दल उन्हें कहा जाता है जिन्हें अपने पक्ष में बहुमत प्राप्त नहीं होते किन्तु अपनी प्रजातान्त्रिक मूल्यों के विपरीत आचरण करने पर विरोध करने के लिए कटिबद्ध है। तानाशाही तथा एकाधिकार को पनपने न दें।
प्रजातन्त्र या लोकतन्त्र में विरोधी दलों की भूमिका- प्रजातान्त्रिक या लोकतन्त्रिक शासन प्रणाली में विरोधी नीतियों का विरोध कर जनता को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते है।
निर्बल तथा कमजोर तथा विरोधी दलों के कारण सत्तारूण दल में तानाशाही मनोवृत्ति स्वेच्छाचारिता तथा निरंकुशता के लक्षण दिखाई देते है। इसका उदाहरण भारत में इन्दिरा गांधी के शासन काल में 1975 में लगाई एमरजेन्सी के रूप में लिया जा सकता है।
विशेष दल कमजोर हो तो सत्तारूढ दल को राल्य सत्ता से उपदस्थ होने की आशंका कम से कम रहती है। वह अपने शासन के बाद में चूर होकर कार्य करने लगती है। अपने द्वारा घोषित सामाजिक व आर्थिक नीतियांे, कार्यक्रमों तथा योजनाओं का खुद ही अपमान करने लगती है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए एक या दो विरोधी दलों का अस्तित्व में होना आवश्यक है।
प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में विरोधी दलों का भूमिकाएं निम्नलिखित होती है-
(1) सरकार चलाने लिए सत्ताहीन होना- प्रत्येक विराधी दल का यह उद्देश्य होता है कि वह सत्ता प्राप्त करने और सरकार चलाये। इस प्रकार की महत्वकांक्षा की राजनीतिक दल में सक्रियता प्रदान करती है। सत्ताहीन होने के लिए वे जनमत को अपने पक्ष में परिवर्तित करते है। सत्ता द्वारा ही वे अपनी दलीय नीतियों कों कार्यरूप् में परिवर्तित करते हैं। वे अपने दल या व्यापारियों की नीतियों और उद्देश्यों को प्रचारित-प्रसारित कर जनता मंे अपने लिए विश्वास पैदा करने का प्रयास करते हैं।
(2) मतदाताओं में राजनीतिक चेतना उत्पन्न करना- विरोधी दल अपने राजनीतिक तथा आर्थिक विचारों का जगह-जगह प्रचारित करते है। वे जनता को अपनी पक्ष में करने के लिए जनसभा द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया द्वारा सभी साधारण जन उनके विचारों तथा नीतियों को जान पाते हैं। इस तरह विरोधी दल जनता में राजनीतिक चैतन्य प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह शासन दल के साथ अन्य दलों की नीतियों को आलोचना द्वारा प्रकाश्या में अन्य जनता को नीर क्षीट विवेक का अवसर देती है।
सत्तारूढ की निरंकुशता से बचाव- सत्तारूढ दल कभी-कभी अपने-अपने स्पष्ट बहुमत के बल पर राष्ट्र जीवन के मान्य सिद्धान्तों तथा नैतिक मूल्यों की हत्या करने का प्रयास करती हैं। ऐसी दशा में विरोधी दलों द्वारा प्रचार माध्यमों तथा आन्दोलनों के माध्यम से प्रबल जनमत की उत्पत्ति की जाती है तथा वे नैतिक मूल्यों की हत्या नहीं होने देते। इस प्रकार सरकार ने भ्रष्टाचारी हथकंडों का पर्दाफाश करने के में विरोधी दल के साथ-साथ पे्रस की भूमिका अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।
प्रजातांत्रिक मूल्यो की रक्षा करना- कभी-कभी शसन दल, प्रजातांत्रिक पद्धति से सत्ता में सभीं विरोधी दलों की राज्यसरकारों को अपदस्थ करता है। ऐसी दशा में विरोधी दल संगठनात्मक दृष्टि से कमजोर यदि कमजोर नहीं पड जाते हैं और जनता को अत्याचार तथा अन्याय से मुक्ति दिला पाते हैं तो वे अपनी सहीं भूमिका निभाते है।
ऐसा करके वे राजनैतिक मूल्यों की रक्षा करते हैं। इस प्रकार विरोधी दलों की सक्रिय भूमिका, सही रणनीति, से ही प्रजातन्त्र की रक्षा सम्भव है।
निष्कर्ष- उपर्युक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रजातंात्रिक शासन व्यवस्था में विरोधी दलों की भूमिका अत्यन्त आवश्यक है किन्तु, विरोध के लिए विरोध की भूमिका को नकरात्मक माना गया है। विरोधी दलों को स्वस्थ भूमिका निभानी चाहिये। इस दृष्टिकोण को अपनाएं रखनें से ही प्रजातन्त्र का भविष्य उज्जवल रहता है। हर्ष की बात है कि विश्व के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश भारत में विरोधी दल, प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अपनी सहज भूमिका निभाते आयें है।