Hindi Essay on “Kal Kare so Aaj Kar” , ” काल्ह करै सो आज कर” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
काल्ह करै सो आज कर
Kal Kare so Aaj kar
निबन्ध नंबर :- 01
सूक्ति का स्पष्टीकरण – यह सूक्ति सुख कार्यों के बारे में कही गई है | इसका अर्थ है – सुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए | काम अच्छा हो तो उसे कल पर नहीं छोड़ना चाहिए | उसे तुरंत आरंभ कर देना चाहिए |
सफलता का मंत्र – समय- नियोजन – सफलता-प्राप्ति का मूल मंत्र है – अपने समय का सदुपयोग करना | सदुपयोग का अर्थ है – तुरंत कार्य में लग जाना | जीवन में अनेक दबाव आते हैं | अनके व्यस्तताएँ आती हैं | व्यस्तताओं से अधिक मन का घेरता है – आलस्य और निम्मापन | जो व्यक्ति व्यस्तताओं का बहाना बनाकर या आलस्य में घिरकर सुभ कार्यों को टाल देता है, उसकी सफलता भी टल जाती है | इसके विपरीत, जो मनुष्य सोच-समझकर योजनापूर्वक सुभ कार्यों की और निरंतर कदम बढ़ाता चलता है, एक दिन सफलता उसके चरण चूम लेती है |
टालू-प्रवृति घातक – आज के काम को कल पर डालने की प्रवृति सबसे घटक है | इस प्रवृति के कारण मन में असंतोष बना रहता है | मनुष्य के सर पर अनेक कामों का बोझ बना रहता है | इससे काम को तलने की ऐसी आदत लग जाती कि सुभ कार्य करने की घड़ी आती ही नहीं |
कुछ उदाहरण – जो मनुष्य घर में सफाई करने के काम को टालते रहते हैं, उन्हें गंदगी में रहने की आदत पड़ जाती है | उनका घर हमेशा बिखरा-बिखरा रहता है | उसके घर में जले मिलेंगे, कहीं कोई बटन टुटा हुआ मिलेगा तो कहीं कोई पानी का नल बहता मिलेगा |
सरकारी कार्यालयों का हाल देखिए | जो कर्मचारी आज की फाइल कल पर टाल देता है, उसकी मेज़ पर फाइलों का ढेर लगता चला जाता है | परिणाम यह होता है कि वह उन्हें देख-देखकर चिड़चिड़ा हो उठता है | वह एक भी फाइल नहीं निपटाता | दिल्ली प्रशासन में ऐसे-ऐसे कर्मचारी है जिनकी ज़िंदगी बीत जाती है किंतु उन्हें नौकरी पक्की होने का एक प्रमाण-पत्र तक नहीं मिल पाता |
निष्कर्ष – मनुष्य को चाहिए कि वह आज के काम को आज ही करके सोए | इससे उसे अच्छी नींद आएगी | वरना रात को भी कल के बचे हुए काम के सपने आएँगे जो उसे सोने नहीं देंगे |
निबन्ध नंबर :- 02
काल्ह करै सो आज कर
Kal Kare so Aaj kar
सन्त कबीर एक महान ज्ञानी, साधक और सन्त हो गुजरे हैं। उन्हीं का रचा हुआ एक प्रसिद्ध दोहा है कि जिस की प्रथम पंक्ति को उपयुक्त शीर्षक बनाया गया है। पूरा दोहा इस प्रकार है:
‘काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरी करोगे कब।
सामान्य-सी लगने वाली इन दो पंक्तियों में ज्ञानी सन्त और साधक ने जीवन और समय के महत्त्व का समस्त सार तत्त्व भर दिया है। आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। प्रश्न उठता है कि क्यों नहीं छोड़ना चाहिए? उत्तर यह है कि पता नहीं अगला पल प्रलय का ही पल हो। यदि ऐसा हुआ तो वह अधूरा या सोचा गया काम कर पाने का अवसर ही न मिल पाएगा। फिर कब करोगे? कहा जा सकता है, कि यदि कोई काम नहीं भी हो पाया, तो उससे क्या बनता-बिगड़ता है? बस यही वह बात, वह मुद्दा या नकता है कि जिसे ज्ञानी सन्त ने हमें समझाना और स्पष्ट करना चाहा है। कहा जा सकता है कि भारतीय पुनर्जन्म और मुक्ति के सिद्धान्त का समूचा तत्त्व वास्तव में इस कथन में समाया हुआ है।
भारत में माना जाता है कि मरते समय यदि व्यक्ति का मन और आत्मा किसी प्रकार की इच्छाएँ लिए रहते हैं, तभी दुबारा और किसी भी योनि में जन्म हुआ करता है। यदि मृत्यु के समय मन में कोई इच्छा नहीं रहती, वह अपने किए कर्मों को पूर्ण मानकर सन्तुष्ट और तृप्त रहा करता है, तो जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाया करता है। इस मुक्तावस्था को पाने के लिए ही सन्त कवि ने आज का काम कल पर नहीं छोड़ने की प्रेरणा दी है। कहा है कि जो काम कल के लिए सोच रखा है, उसे आज बल्कि अभी ही शुरू करके पूरा कर डालो, ताकि प्रलय यानि मृत्यु का अल्पप्रभावी अवसर आने तक करने को बाकी कुछ न बच रहे । फलस्वरूप जन्म-मरण और कर्मों के बन्धन से मुक्ति का अधिकारी बना जा सके।
सामान्य व्यावहारिक दृष्टि से भी आज का काम कल पर कभी नहीं छोड़ना चाहिए। कल करने के लिए कोई अन्य काम आवश्यक हो सकता है। उसको करने के चक्कर : में पिछला काम अधूरा रहकर हानि का कारण बन सकता है। फिर आज का काम कल पर छोड़ते रहने से स्वभाव या आदत टालते जाने वाले बन सकते हैं, जिसे किसी भी प्रकार अच्छा एवं उचित नहीं कहा जा सकता । सांसारिक सफलता के लिए भी समय – पर प्रत्येक काम को पूरा करते जाना आवश्यक हुआ करता है। लोक-परलोक, काम पूर्ण किए बिना कहीं भी छुटकारा नहीं; फिर क्यों न समय पर ही सब कुछ करने का निश्चित प्रयास किया जाए।
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