Hindi Essay on “Jaha Chaha Waha Raha ” , ” जहाँ चाह वहाँ राह” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
जहाँ चाह वहाँ राह
Jaha Chaha Wahan Raha
निबंध नंबर :-01
कहावत की भाव, चाह से तात्पर्य – ‘जहाँ चाह, वहाँ, राह’ एक कहावत है | इसका तात्पर्य है – जिसके मन में चाहत (इच्छा) होती है, उसके लिए वहाँ रास्ते अपने-आप बन जाया करते हैं | ‘चाह’ का अर्थ है – कुछ करने या पाने की तीव्र इच्छा |
सफलता के लिए कर्म के प्रति रूचि और समर्पण – सफलता पाने के लिए करम में रूचि होना अत्यंत आवश्यक है | जो लोग केवल इच्छा करते हैं किंतु उसके लिए कुछ करना नहीं चाहते, वे खयाली पुलाव पकाना चाहते हैं | उसका जीवन असफल होता है | सफल होने की लिए कर्म के प्रति पूरा समर्पण होना चाहिए | जयशंकर प्रसाद ने लिखा है –
ज्ञान दुर्कुछ्किर्य भिन्न है
इच्छा क्यों पूरी हो मन की |
एक-दुसरे से न मिल सकें
यही विडंबना है जीवन की ||
कठिनाईयों के बीच मार्ग-निर्माण – कर्म के प्रति समर्पित लोग रास्ते की कठिनाईयों से नहीं घबराया करते | कविकर खंडेलवाल के शब्दों में –
जब नाव जल में छोड़ दी
तूफान ही में मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को
फिर पार क्या, मँझधार क्या !
वास्तव में रस्ते की कठिनाइयाँ मनुष्य को चुनौती देती हैं | वे युवकों के पौरुष को ललकारती हैं | उसी में से कर्मवीरों को काम पूरा करने की प्रेरणा मिलती है | इसलिए कठिनाईयों को मार्ग-निर्माण का साधन माना चाहिए |
कोई उदाहरण, सूक्ति – देश को स्वतंत्रता कैसे मिली ? गाँधी जी ने सत्याग्रह का प्रयोग क्यों किया ? अंग्रेजी अनुसार सत्य और अहिंसा के पथ पर रहते हुए विरोध किया | अंग्रेजों की डिग्रियाँ फाड़ डालीं | भारत में आकर नमक कानून तोड़ा | भारत छोड़ों आंदोलन चलाया | परिणाम यह हुआ कि सारा भारत जाग उठा | एक दिन भारत स्वतंत्र हो गया | एक गईं की पंक्ति है –
तू चल पड़ा तो चल पड़ेगी साथ सारी भारती |
निष्कर्ष, प्रेरणा – इस कहावत से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि प्रबल इच्छा को मन में धारण करो | वह इच्छा शक्ति अपने-आप रास्ते तलाश लेगी | इच्छा शक्ति वह ज्वालामुखी है जो पहाड़ों की छाती फोड़कर भी प्रकट हो जाती है |
निबंध नंबर :-02
जहाँ चाह, वहाँ राह
Jahan Chaha Wahan Rhaha
विश्व के हर सफल व्यक्ति में यदि कोई एक बात एक समान होती है तो वह है चाहत। कहते भी हैं कि यदि आप शिद्दत से कुछ चाहते हैं तो दुनिया की सारी ताकतें आपको उससे मिलाने में जुट जाती हैं। चाहत यदि सच्ची हो तो फ़िर पहाड़-सी बाधा भी आप पार कर जाते हैं। आलोचनाओं का सैलाब भी आपको डुबा नहीं पाता है। सच्ची चाहत, दृढ़-संकल्प को जन्म देती है और संकल्प की दृढ़ता असंभव को भी संभव बना देती है। ‘सामने आल्प्स नहीं हैं, आगे बढ़ो’ नैपोलियन द्वारा कहे ये शब्द उसकी विजय का शंखनाद थे। इसके विपूरीत अपनी-अपनी असफलता या कुछ न कर पाने का दोष दूसरे व्यक्तियों या परिस्थितयों पर मढ़ देने वाले केवल वे लोग होते हैं जिनकी चाहत में ही शिद्दत नहीं होती, दम नहीं होता। जिस प्रकार आवर्तक काँच या शीशा एक किरण की ज्वलन क्षमता को इतना बढ़ा देता है कि उसके नीचे रखा कागज जलकर भस्म हो जाता है उसी प्रकार दृढ़ इच्छा शक्ति के सामने बड़ी से बड़ी कठिनाई भी टिक नहीं पाती। यह मानव की चाहत ही तो थी जिसने अँधेरी रातों को रोशनी के सैलाब में बदल दिया, समुद्र का सीना चीर कर पार पहुँचाने वाले जहाज, अंतरिक्ष के चाँद-तारों तक पहुँचाने वाले उपग्रह यंत्र बना दिए। यदि चाह नहीं होती तो आज भी मानव जंगलों में भटक रहा होता। दुष्यंत कुमार ने कितना सही कहा है-
‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता।
कोई पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।‘
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