Hindi Essay on “Hamari Pariksha Pranali me Nakal ki Samasya ”, “हमारी परीक्षा प्रणाली में नकल की समस्या” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
हमारी परीक्षा प्रणाली में नकल की समस्या
Hamari Pariksha Pranali me Nakal ki Samasya
प्रत्येक व्यक्ति परीक्षा देना और सफल होने की इच्छा रखता है। नकल करने की प्रवृत्ति भी मानव-स्वभाव का अंग है। एक बच्चा भी बातें और सामान्य व्यवहार प्रायः अपने बड़ों या प्रकृति की नकल करके ही सीखता है। लेकिन एक विद्यार्थी का नकल करना उचित एवं हितकर नहीं कहा जा सकता। आज हमारी शिक्षा परीक्षा-प्रणाली के फलस्वरूप नकल की प्रवृत्ति घातक स्तर तक आम हो गई है जो निश्चित ही हमें पतन की ओर ले जाएगी ।
भारत में वर्तमान शिक्षा प्रणाली लार्ड मैकाले द्वारा चलाई गई तथा आज यह प्रणाली एक विद्यार्थी की वास्तविक योग्यता का मानदण्ड प्रस्तुत कर पाने में बिल्कुलां असमर्थ है। गाईडज़, घटिया कुंजियाँ आदि का दो-चार दिन सहारा लेकर परीक्षा देने वाले विद्यार्थी तो उत्तीर्ण हो जाते हैं.जबकि वर्षभर परिश्रम और लगन से पढ़ने वाले कई बार फेल हो या पिछड़ जाया करते हैं। परीक्षकगण उत्तर पुस्तिकाओं का परीक्षण तक ठीक ढंग से न कर बेगार में घास काटने जैसा काम करते हैं, जबकि प्रश्न-पत्र बनाने वाले भी योग्यता और प्रतिभा को जाँच सकने वाले नए प्रश्न न पूछ, बार बार वही घिस-पिट चुके प्रश्न ही पूछा करते हैं। आजकल तो धन के बल पर अंक तो बढ़वा ही लिए जाते हैं,प्रश्नपत्र भी परीक्षा से पहले भी निकलवा लिए जाते हैं। समाचार पत्रों में ऐसे समाचार आम पढ़ने को मिलते हैं।
परीक्षाओं की तैयारी नकल के सहारे पास कर लेने की प्रवृति दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रही है। केवल स्कूलों-कॉलजों में पढ़ने वाले छात्र ही नहीं बल्कि कई तरह की प्रतियोगिता-परीक्षाओं में भाग लेने वाले भी नकल करने की आदत के शिकार हो गए हैं। वास्तव में ऐसे लोग सारा साल तो पढ़ाई लिखाई की ओर ध्यान देते नहीं जब परीक्षा का समय आता हे तो हर प्रकार के हत्थकण्डे अपनाएं जान का प्रयास करते हैं। धन के बल पर प्रश्नपत्र लीक करवाने की प्रवृत्ति भी वास्तव में नकल की प्रवत्ति ही है। पुस्तकों के पन्ने फाड़ और छिपाकर परीक्षा भवन में ले जाए जाते हैं। गसलखानों, पेशाबघरों आदि में छिपाकर पुस्तकें रख लेते हैं। फिर बार बार पेशाब करने का बहाना बना कर परीक्षा भवन से बाहर जाकर उन्हें देखने की कोशिश की जाती है। पकड़े जाने पर झूठ या फिर चिरौटी, कई बार धमकियों का सहारा भी लिया जाता है। सामूहिक नकल का बन्दोबस्त भी भ्रष्ट निरीक्षकों के सहारे किया जाता है। परीक्षा भवन में पानी पिलाने वाले भी बाहर से प्रश्नों का उत्तर लाते हैं। ट्यूशन करने वाले अध्यापक तथा शिक्षक भी खुली नकल करने दिया करते हैं। इस प्रकार वर्तमान परीक्षा-प्रणाली वास्तव में नकल की प्रवृत्तियों पर ही आधारित बन कर रह गई है।
ऐसी नकल-प्रधान परीक्षा प्रणाली के कई प्रकार के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। नकल को बढ़ावा मिलने के कारण आज की परीक्षा-प्रणाली वास्तविक योग्यता का मानदण्ड नहीं रह गई है। नकल को रोकने का प्रयास करने वालों को तरह-तरह की धमकियों की छाया में तो जीना ही पड़ता ही है और कई बार प्राण भी गंवाने पड़ते हैं।
आज समय की माँग है कि परीक्षा-प्रणाली के इस सड़े-गले ढाँचे को पूरी तरह बदला जाए। नकल मारने वालों को सब प्रकार से अयोग्य घोषित किया जाए। तभी सारे शिक्षा जगत और देश-जाति का भी कल्याण संम्भव है।
Nakal unmulan par slogen
Nakal samasya aur samadhan
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