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Hindi Essay on “Dipo ka Tyohar Deepawali ”, “दीपों का त्योहार दीपावली” Complete Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

दीपों का त्योहार दीपावली

Dipo ka Tyohar Deepawali 

प्रस्तावना : वैसे तो हर जाति और देश के अपने-अपने पर्व एवं त्योहार होते हैं, जिन्हें वे महत्त्वानुसार हर परिस्थिति में मनाते रहते हैं। किन्तु हमारा देश तो पर्वो एवं त्योहारों का गढ़ है। यहाँ हर मास कोई न कोई त्योहार अथवा पर्व आता ही रहता है। ये पर्व राष्ट्रीय जीवन में एक प्रकार का उल्लास और आशा दीप लेकर आते हैं। जब मानव दैनिक गतिविधियों से थक-सा जाता है, नीरसता जब उसके जीवन के आह्लाद को चुरा ले लाती है, तब इससे मुक्ति की राह दर्शाते हैं ये पर्व और त्योहार।

हमारा देश अनेक धर्मों एवं मत-मतान्तरों का पोषक है, इसलिए किसी न किसी धर्म का नित्य प्रति कोई न कोई पर्व अथवा त्योहार आता ही रहता है। फिर भी हिन्दू जाति के चार प्रमुख त्योहार होते हैं। इनमें दशहरा युद्ध एवं शस्त्रों की महत्ता का प्रतीक है, होली नाच-रंग और भ्रातृत्व-भावना को दर्शाता है और दीपावली भारतीय जन-जीवन का त्योहार है।

ऐतिहासिक, पौराणिक तथा धार्मिक महत्त्वे : यह प्रत्येक वर्ष नया संदेश और नया उल्लास लेकर आती है। इस शुभ दिवस से हमारे हृदय में नए आदर्श और नई कल्पना का संचार होता है। भारतीय जनता इस पर्व के आगमन की बहुत समय पूर्व से ही प्रतीक्षा करने लग जाती है। इसके मनाने की तैयारियाँ शुरू की जाती हैं। पुरातन युग में व्यापारी जलयानों में बैठकर सागर पार जाया करते थे और अपनी व्यापारिक यात्रा के बाद इस शुभ पर्व पर वे अपने घर लौटकर परिवार के सदस्यों से मिलकर आनन्दोत्सव मनाया करते थे। घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता था। इस प्रकार यह गृहस्थ-जीवन का सौभाग्यपूर्ण त्योहार के रूप में मनने लगा।

दीपावली के इस शुभ त्योहार के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ गॅथी हुई हैं। सुना जाता है कि दशहरे के दिन भगवान् राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी और इस दिन वे सती सीता सहित अयोध्या पधारे थे। उनकी आगमन की खुशी में यह त्योहार भारत में प्रचलित हुआ। सच तो यह है कि सत्य की असत्य पर विजय के रूप में यह । त्योहार जन-जन के जीवन में उतर आया है।

कुछ लोगों का कथन यह भी है कि प्रागज्योतिष नगर में एक नरकासुर नामक दुष्ट नरेश राज्य करता था। वह अपने बाहुबल पर अनेक राजकुमारियों को अपहरण करके ले गया और उन्हें बंदी बनाकर अपने बन्दीगृह में डाल दिया। भगवान् कृष्ण ने भार्या सत्यभामा के साथ जाकर उसे युद्ध में पराजित किया और उन राजकुमारियों को कारागार से मुक्त कराया । उस नराधम नरकासुर के यमलोक गमन पर सारे देश में आनन्द की लहर दौड़ गई और कार्तिक की अमावस्या की अँधेरी रात्रि को दीप पंक्तियों से इतना सजाया कि वह पूर्णिमा जैसी रात्रि बन गई।

किन्तु यह नरकासुर हर वर्ष जन्म लेता है और उसे हर वर्ष ही यमलोक गमन करना पड़ता है। पावस ऋतु में उत्पन्न गन्दगी से नगर व ग्राम चारों ओर से घिर जाते हैं। उनमें पनपने वाले कीटाणु जन-जीवन को त्रस्त कर देते हैं। तब उस नराधम राक्षस के वध हेतु देश की जनता कुदाली और फावड़ों से उसके साथ युद्ध करती है और विजय प्राप्त कर तेल के दीपकों को प्रकाशित कर मच्छरों एवं कीटाणुओं को नष्ट कर देती है। लोग खुशी के उल्लास में खूब मिष्ठान्न खाते हैं और इष्ट मित्रों के यहाँ उपहार स्वरूप भिजवाते हैं।

त्योहार मनाने के विभिन्न ढंग : दीपावली पर्व भारत में प्रत्येक क्षेत्र में मनाया जाता है। हिन्दू इस शुभावसर पर अपने घरों एवं दकानों को सजाते हैं और दीवारों पर ‘लक्ष्मी सदा सहाय’ लिखते हैं। देवताओं और नेताओं के चित्रों तथा मिट्टी के सुन्दर-सुन्दर खिलौनों से घर की शोभा को बढ़ाते हैं। बाजारों की शोभा द्विगणित से उठती है। नर-नारियों और बच्चे-बूढों की चहल-पहल बढ जाती है। हलवाइयों की दुकानों पर तो भीड़ ऐसी दृष्टिगत होती है जैसे कहीं बाजीगर के तमाशे पर इकट्ठी हो जाती है। यही अवस्था बर्तन वाले, मिट्टी के खिलौने वाले और आतिशबाजी वालों की दुकानों की। होती है। अमीर-गरीब सभी अपनी-अपनी धुन में दृष्टिगत होते हैं। सभी अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार बच्चों के दिल बहलाव का सामान खरीदते हैं और एकाध बर्तन भी।

दीपावली विशेषकर व्यापारी वर्ग का त्योहार माना जाता है। इस । दिन पुरानी पद्धति को मानने वाले व्यापारी अपने बहीखाते बदलते हैं। उनके नववर्ष का आरम्भ इसी शुभ पर्व से होता है। नव वर्ष शुभ हो, इस कामना के लिए रात्रि को श्री गणेश और लक्ष्मी का पूजन होता है। सभी हिन्दू गृहस्थ अपने-अपने घरों में परिवारों के सदस्यों के साथ बैठकर श्रद्धा और भक्ति से और लक्ष्मी श्रीगणेश का पूजन करते हैं।

कृषक समाज इस त्योहार को नए अन्न के आगमन की खुशी में। मनाता है। पहले वे उसका भगवान् को भोग लगाते हैं तब बाद में उसे प्रयोग में लाते हैं। यह प्रथा बहुत ही पुरातन है।

महाराष्ट्र में इस नए अन्न से पूर्व कुछ कड़वी वस्तु का भक्षण किया जाता है। गोवा में इस शुभ त्योहार पर चिउड़ा और मिष्ठान्न खाने का महत्त्व है, जिसमें सभी इष्ट-मित्र सम्मिलित होते हैं। गुरु गोविन्द सिंह जिन्हें इसी शुभावसर पर मुसलमानों के बन्दीगृह से मुक्ति मिली थी, सिख लोग इस कारण भी इस त्योहार को पूर्ण उल्लास से मनाते हैं। आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती का निर्वाणोत्सव भी इसी शुभ घड़ी में मनाया जाता है।

उपसंहार : दीपावली भारतीय समाज का बहुत ही गौरवपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार देश की नवरात्रि पूजा से आरम्भ होकर भाई के ललाट पर लगाई जाने वाली बहिन की उमंग भरी रोली के उत्सव में भैयादूज के दिन समाप्त होता है। भारत के हर कोने में दीपों एवं बिजली के बल्बों का प्रकाश अमावस्या की रात्रि के अंधकार को किंचितमात्र भी नहीं अखरने देता है। इस शुभ त्योहार के विषय में लोगों में यह भी विश्वास है कि द्यूत-क्रीड़ा से लक्ष्मी का आगमन होता है। वे इस अवसर पर दाँव पर दाँव लगाते हैं। इस में बहुत से लोग बेघर हो जाते हैं ; पर जुए की। मादकता उन पर से नहीं उतरती। ऐसे शुभावसर पर ऐसा कुकृत्य नहीं करना चाहिए; बल्कि इसे ठीक ढंग से मनाना चाहिए ।

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