Hindi Essay on “Dipawali” ,”Diwali”, ”दीपावली”, “दीवाली “Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
दीपावली
Dipawali
या
दीवाली
Diwali
ऋतु-परिवर्तन के अवसर पर मनाया जानेे वाला प्रकाश और उज्जवलता का पुण्य पर्व दीपावली। हमारे देश में अत्यंत प्राचीन कला से जिन त्योहारों को सामूहिक स्तर पर मनाने की परंपरा है, दीपावली या दिवाली उनमें सर्वप्रमुख है। यह आनंद और प्रकाश का त्योहार है। अज्ञान, अन्याय, अत्याचार और अंधकार के विरुद्ध ज्ञान, न्याय और प्रकाश की अभूतपूर्व विजय का त्योहार है। भारत में मनाए जाने वाले अन्य अनेक त्योहारों के समान इसे मुख्य रूप से ऋतु-परिवर्तन का सूचक त्योहार ही माना जाता है। पर इसके साथ कई अन्य धार्मिक आदर्श मान्यतांए भी जुड़ी हुई हैं। कहते हैं, रावण जैसे अत्याचारी का नाश कर और चौदह वर्षों का कठिन वनवास काटकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इसी दिन अयोध्या वापस लौटे थे। उनकी विजय और आगमन की खुशी के प्रतीक रूप में तब अयोध्यावासियों ने नगर को घी के दीपों से जगमगा दिया था, प्रसन्नता के सूचक पटाखे जैसे अन्यायी-अत्याचारी से मुक्ति मिलने की खुशी के प्रतीक रूप में, यह दिन दीपावली के नाम से कार्तिक अमावस्या की रात सारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।
यह तो हुआ एक कारण। दूसरा मान्य कारण भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। दीपावली का त्योहार वर्षा ऋतु के बाद शरद की सुहावनी ऋतु में आता है। वर्षा ऋतु के कारण दूष्ज्ञित हो गया वातावरण और आकाश अब निर्मल होने लगता है। वातावरण की उमस भी स्निज्ध शीतलता में बदलने लगती है। वर्षा ऋतु के कारण घरों में दुबके और बंद रहने वाले लोग अब बाहर निकलने लगते हें। घरों की खूब सफाई करते और रंग-रोगन या सफेदी आदि कर-कराकर वातावरण को उज्जवल बनाते हैं। फिर वायुमंडल के दूषित प्रभाव को समाप्त करने के लिए घी या तेल के दीये जलाते हैं, पूजन-हवल करते हैं। निश्चय ही इस सबसे वायुमंडल शुद्ध और वातावरण पवित्र होता है। इस प्रकार दीपावली एक ऋतु-परिवर्तन का सूचक त्योहार है, यह बात स्पष्ट हो जाती है। इसकी व्यापकता और प्रभाव भी एक सर्वविदित तथ्य है।
भारत का परंपरागत व्यापारी वर्ग अपने व्यापारिक नव-वर्ष के आरंभ के रूप में भी इस त्योहार को मनाता है। इसके लिए पहले धन की स्वामिनी लक्ष्मी देवी की दीपों के प्रकाश में पूजा की जाती है। फिर नए बहीखाते शुरू किए जाते हैं। इस खुशी को प्रदर्शित करने के लिए मिठाइयों बांटी और खाई जाती है। रिश्तों-नातों, बंधु-बांधवों, मित्रों-पड़ोसियों के साथ स्नेह-मिलन कर उन्हें भी मिठाई खिलाई-खाई जाती है। इस प्रकार सारा वातावरण प्रकाशमय, सुगंधित, पवित्र और आनंदमय हो उठता है। कुछ प्रांतों में इस त्योहार के उपलक्ष्य में विशेष प्रकार की पूजाओ ंऔर पूजा-पंडालों का भी व्यापक एंव सामूहिक स्तर पर आयोजन किया जाता है। आर्यसमाजी भाई दीपावली का त्योहार ऋषि-बोधोत्सव के रूप में मनाते हैं। उनका कहना है कि इसी दिन स्वामी दयानंद सरस्वती को वास्तविक बोध या ज्ञान प्राप्त हुआ था। परिणामस्वरूप उन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ लिखा और आर्य-समाज की स्थापना कर सारे संसार को जीवन का नया प्रकाश प्रदान किया था। जो हो, महत्व इस दृष्टि से भी प्रकाश का ही है, यह तथ्य स्पष्ट है। इस अर्थ में भी इसे सार्थक कहा जाएगा।
इसी प्रकार कुछ और संदर्भ भी दीपावली मनाने के लिए उपलक्ष्य में प्रसिद्ध है। संदर्भ या कारण कोई भी क्यों न हो, आनंद और प्रकाश-साधना का मूल भाव या विचार सभी संदर्भों-कारणों में समान रूप से विद्यमान है। अपने-अपने ढंग से घर-घर में, सामूहिक पूजास्थलों पर लक्ष्मी या अन्य देवी-देवताओं की पूजा करना, घर-घर में दीप जलाना, आतिशबाजी का आनंद लेना, मिठाइयां बांटना-खाना, स्नेह-मिलन करना-कराना आदि सभी बातें भी इस दिन समान रूप से प्रचलित है। जुआ खेलना और उसकी हार-जीत को वर्ष-भर की हार-जीत मान लेना, मद्य-मांस का सेवन जैसी कुछ कुप्रथांए और कुप्रवृत्तियां भी इस पवित्र त्योहार के साथ जुड़ी हैं। उल्लू-दर्शन को शुभ मानने जैसे कुछ अंध-विश्वास भी दीपावी के त्योहार के साथ जुड़े हैं, परंतु इन सबका कोई मूल्य और महत्व नहीं, इन सब प्रकार के कुटैवों, अंध-धारणाओं का निाकरण होना ही चाहिए। मुख्य बात है वातावरण की शुद्धि, अंधकार पर प्रकाश की विजय, नव ऋतु और अच्छी बातों का स्वागत, इस सबके साथ प्राप्त होने वाले आत्मिक आनंद की , जो अन्य सभी मूल्यों-मानों से महत्वपूर्ण है। केवल उसी की प्राप्ति के लिए ही हमें इस महान पर्व को पवित्र और आनंद भाव से उज्जवलता के साथ अवश्य मनाना चाहिए। निश्चय ही यह प्रकाशमय, आनंदमय जीवन का शुभ प्रतीक और प्रदाता भी है। रंजकता और लोक-कल्याण दोनों भाव समान रूप से साथ रहकर इसके महत्व को और भी बढ़ा देते हैं।