Hindi Essay on “Dharamnirpekshta – Bharat me Rajniti ka Durupyog” , ”धर्मनिरपेक्ष – भारत में राजनीति का दुरूपयोग” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
धर्मनिरपेक्ष – भारत में राजनीति का दुरूपयोग
Dharamnirpekshta – Bharat me Rajniti ka Durupyog
प्रस्तावना- हमारा देश भारत एक लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष देश है। यह प्रत्येक भारतवासी के लिए बहुत गौरव की बात है। यहां सभी व्यक्तियों को अपनी-अपनी इच्छा से धर्म अपनाने की कानूनी स्वतन्त्रता है। भारत का प्रत्येक नागरिक जिस धर्म में आस्था व विश्वास रखता है वह उसे बेहिचक एवं बिना किसी दवाब के अपना सकता है।
लेकिन आज के जमाने मेें राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थ के लिए आम-जनता में भेदभाव उत्पन्न कर धर्मनिरपेक्षता का दुरूपयोग किया है। वे चुनाव में जीतने के लिए हरसम्भव प्रयास करते हैं। जनता को जाति और धर्म के नाम पर लड़वाते हैं। बड़े-बड़े राजनैतिक दल भी इसका समय-समय पर दुरूपयोग कर रहे हैं वे अपनेे थोड़े-से लाभ के लिए भारत देश को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने का प्रयत्न कर रहे हैं। वे जातीय एवं धार्मिक स्थानों पर ऐसे ही उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं जो किसी भी ढंग से चुनाव जीत सकें। जिसके कारण धर्म एंव जाति-पाति आधारित राजनीती जन्म लेती है।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ नास्तिकता या किसी प्रकार के धर्म का विरोध करना नहीं है बल्कि इसका तात्पर्य यह है कि राज्य अपने नागरिकों द्वारा अपनाये जाने वाले धर्म और धार्मिक मामलों में सबके प्रति एकसमान विचार रखेगा। वह किसी का भी पक्षपात नहीं करेगा।
संवैधानिक स्थिति- धर्मनिरपेक्ष शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना मंे 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया है। लेकिन उसके कर्ण 15 और 25वें अनुच्छेद में पहले से ही मौजूद हैं। धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में अनुच्छेद 15(1) में यह व्यवस्था उपलब्ध है कि जाति, धर्म, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर राज्य द्वारा अपने नागरिकों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये।
व्यावहारिक स्थिति- सामान्य रूप से संवैधानिक रूप से इतनी सुस्पष्ट, आकर्षित तथा दृढ़ प्रतीत होने वाली यह धर्मनिरपेक्षता की नीति, व्यावहारिक रूप से अत्यन्त दुर्लभ, दुर्बल एंव अनेक प्रकार की उलझनों से परिपूर्ण है। ऐसा प्रतीत हुआ है कि इस नीति का पग-पग पर अनुचित व्याख्यायें की जाती हैं, धार्मिक कटृरता को प्रोत्साहन दिया जाता है और प्रायः सभी राजनैतिक दलों द्वारा इसका अपमान किया जाता है, खिल्ली उड़ायी जाती है। इन सब तथ्यों के अतिरिक्त कई उपलब्ध भी धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के विपरीत हैं।
इस प्रकार की नीति यदि धर्मनिरपेक्ष संविधान की विडम्बना नहीं और क्या है कि आज तक सरकार द्वारा देश में ‘समान नागरिक संहिता‘ की व्यवस्था न हो सकी। अब भी उसमें ‘मुस्लिम व्यक्तिगत विधि‘ और ‘हिन्दू संहिता अधिनियम‘ जैसे विभेदकारी कानून उपस्थित हैं।
हिन्दू और मुस्लिम स्त्रियों के लिए तलाक और सम्पति से सम्बन्धित अलग-अलग विधि व्यवस्थाएं मौजूद हैं। जो लोकतन्त्र की मूल भावना और विधि के सक्षम समानता की भावना के विरूद्व हैं। अनेक राजनैतिक दलों एवं उनकी सरकारों द्वारा वर्ग विशेष को नुकसान पहुंचाने के लिए समय-समय कई ऐसे कदम उठाये जाते हैं जो धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर अहितकारी सिद्व होते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में हिन्दी भाषा के बाद उर्दू भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देना, अलीगढ़ मुस्लिम विघालय का अल्पसंख्यक स्वरूप बनाये रखना और शाहबानों प्रकरण में सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले को उलट देना इस प्रकार के ही उदाहरण हैं।
कुछ समय पूर्व केरल सरकार द्वारा मुस्लिम बहुल मल्लपुरम जिले में रविवार के स्थान पर शुक्रवार को सार्वजनिक अवकाश घोषित करना किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्षता कहा जाएगा। इसे तुष्टिकरण की नीति माना जाएगा।
जातीयता के आधार पर नागरिकांे में भेदभाव की भावना उत्पन्न करना भी धर्मनिरपेक्षता के विरूद्व है। चुनाव की राजनीति द्वारा धर्मनिरपेक्षता के पवित्र सिद्वान्त को भी आज राजनीतिक, हथिहार के रूप मे प्रयोग करने लगे हैं। जब चुनाव आते है तो जातीय धार्मिक आधारों पर प्रत्याशियों का चयन इन्हीं आधारों पर मतदान की अपील इस प्रकार की ही बातें हैं।
अब तो मन्त्रिमण्डल गठन, उच्च पदों पर मनोनयन के मामलों मंे जाति धर्म का ही ध्यान रखा जाने लगा है। जहां एक ओर कांग्रेस एवं वामपंथी दल से धर्मनिरपेक्षता का नाम देते हैं वहीं दूसरी ओर उनकी विराधी पार्टी इसे ‘छद्म धर्मनिरपेक्ष‘ कहते हैं।
धर्मनिरपेक्ष के दुरूपयोग के दुष्परिणाम भी सामने आते दिखायी पड़ रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर प्रतिदिन हो रहे साम्प्रदायिक दंगे इसी की ही देन हैं।
रोकने के उपाय- धर्मनिरपेक्षता के दुरूपयोग को रोकने के लिए सर्वप्रथम सरकार को ‘समान नागरिक संहिता‘ का नियम लागू करना चाहिये। देश के सभी राज्यों को अपने-अपने क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक नागरिक से समान व्यवहार करना चाहिये। उन्हें अपनी जाति एवं धर्म के आधार पर व्यवहार नहीं करना चाहिये।
उपसंहार- धर्म के आधार पर वर्ग विशेष को छूट और तुष्टीकरण की नीति को बन्द करना चाहिये। राजनीतिक दलों को भी अपने आचार संहिता का निर्माण कर जातीय आधार पर खोट की राजनीति को छोड़ देना चाहिये तथा अपनी सांझी सांस्कृतिक धरोहर को लोगों के सामने लाकर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ एवं विकसित करना चाहिये।
धार्मिक कटृरता की समाप्ति के लिए सख्त से सख्त कानून बनाने चाहियें। आरक्षण की नीति पर पुनर्विचार करके योग्यता पर ही नौकरियों की व्यवस्था करनी चाहिये। कम योग्य लोगों को धर्म, जाति, पिछड़ेपन और दलित आधार पर सरकारी नौकरियां मिलना तथा योग्यतम व्यक्तियों को वंचित रह जाना भी राजनीति की तुष्टिकरण है। इस व्यवस्था को समाप्त किया जाना चाहिये।
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