Hindi Essay on “Desh Bhakti” , ”देश-भक्ति” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
देश-भक्ति
Desh Bhakti
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी‘ अर्थात माता और मातृभूमि हमारे लिए स्वर्ग से भी बढ़कर है। जन्मभूमि के लिए मनुष्य के ह्नदय में इतना अधिक मोह होता है कि वह उसके हितार्थ सहज भाव से सप्तकोटि स्वर्गों का प्रलोभन त्याग देता है। जिस देश में हम जन्म लेते हैं, जिसकी गोद में हमारा पालन-पोषण होता है, जिसके अन्न-जल-वायु आदि से हमारे शरीर का संवर्धन-संरक्षण होता है तथा मरणोपरांत हम जिसकी ममता भरी गोद में ही चिर विश्रांति ग्रहण करते हैं, वही हमारी जन्मभूमि है। अपनी भूमि-माता की सुरक्षा तथा समृद्धि के लिए हम जी-जान से प्रयत्न करते हैं, क्योंकि उसकी समृद्धि ही हमारी समृद्धि है। मातृभूमि के प्रति हमारी निष्ठा ही राष्ट्रभक्ति, राष्ट्र प्रेम, देश-भक्ति अथवा देश- प्रेम कहलाती है। जन्मभूमि के प्रति मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी ( समस्त जीवधारी) सहज ढंग से आकर्षित होता है।
जहां जन्म देता हमें है विधाता
उसी ठौर में चित्त है मोद पाता ।
हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय जीवन में देश-प्रेम का अत्याधिक महŸव है। देश-प्रेम की भावना राष्ट्रीय चेतना को जगाती है और इससे राष्ट्रीय एकता का भाव सुदृढ़ होता है। स्वदेश-प्रेमी का ह्नदय पारस्परिक ईष्र्या-द्वेष, स्वार्थपरता, शोषण-उत्पीड़न आदि दुष्प्रवृतियों से मुक्त होता है। उदारता, सहकारिता, सहिष्णुता, जन-सेवा तथा स्वार्थ-त्याग जैसी सद्प्रवार्तियाँ सहज ही उसमें कण-कण के साथा स्वदेश प्रेमी का आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। महाऐक्य की इस भावना से राष्ट्रीय शक्तियों का विस्तार होता है। शायद ही ऐसा कोई मनुष्य राष्ट्र के अन्दर हो जिसके ह्नदय में देश-प्रेम न हो। देश-प्रेम से रहित ह्नदय वाला व्यक्ति कितना शुष्क और पत्थर दिल होता है, कवि के शब्दों में द्रष्टव्य है-
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
वह ह्नदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
अंग्रेज कवि वाल्टर स्टॉक ने अपनी एक कविता में कहा है। ’’स्वदेशाभिमान की भावना से शून्य व्यक्ति उच्च उपाधियों और अतुल संपत्ति का स्वामी होने पर भी दोहरी मौत मरता हैं
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं, पशु ही निरा है और मृतक समान है।
स्वदेश-प्रेम यद्यापि मन की एक भावना है तथापि उस भावना की अभिव्यक्ति हमारे क्रिया-कलापों और दैनिक आचरण में होती है। हमारा आचार-विचार, हाव-भाव तथा हमारी कथनी-करनी में देश-भक्ति की भावना पूर्णतः स्पष्ट हो जाती है। स्वदेश प्रेमी का ह्नदय स्वदेशाभिमान तथा स्वदेश गौरव की भावनाओं से ओत-प्रोत होता है। उसमें अपने देश की परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्था होती है। वह अपने स्वार्थों पर कम, देशवासियों के सामान्य स्वार्थों का विशेष ध्यान रखता है।
कृषक, मजदूर, शिक्षक, शिल्पी, व्यापारी, वैज्ञानिक, कलाकार सभी वर्गों के नागरिक आदि अपने-अपने क्षेत्र की अधिकाधिक सेवा करते हैं तो वे सच्चे देश-प्रेमी हैं। मुनाफाखोरी, कामचोरी, घूसखोरी, जनशोषण जैसी भ्रष्टाचार मूलक प्रवृतियाँ जिनमें पाई जाती हैं वे नागरिक राष्ट्रद्रोही हैं। भले ही वे धन-बल, जन-बल (बाहु-बल), अधिकार-बल तथा सामाजिक मान-मर्यादा के स्वामी क्यों न हों उन्हें देशभक्त नहीं कहा जा सकता। विश्व का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं, जिसने राष्ट्र की बलिवेदी पर शहीद हो जाने वाली वीर संतानों को जन्म न दिया हो। भारतवर्ष में तो शहीदों की एक दीर्घ श्रृंखला तथा गौरवशाली परम्परा है। अस्थियुगीन महर्षि दधीचि से लेकर आधुनिक युग के महात्मा गांधी तक भारत माता की ऐसी संतानें जन्म ले चुकी हैं जिन्होंने मातृभूमि की बलिवेदी पर हंसते-हंसते सर्वस्व न्योछावार विद्यासागर, महात्मा गांधी, गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, जवाहर लाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण, महर्षि अरविन्द जैसी महान आत्माओं ने आजीवन साधनारत रहकर सांस्कृतिक नवजागरण तथा राजनीतिक मुक्ति आन्दोलन द्वारा मातृ-सुख की आभा द्विगुणित की। इसी तरह लोकमान्य तिलक, लाला लाजपतराय, मदन मोहन मालवीय, बाबासाहेब अम्बेडकर, विनोबा भावे, सुब्रह्नाण्यम भारती, सी.वी. रमन, जगदीश चन्द्र बोस, सी. आर. दास आदि के अवदान भी देशभक्ति के सर्वोत्तम आदर्श प्रस्तुत करते हैं। लेकिन स्वतंत्र भारत में देश-भक्ति का वह मानदण्ड नहीं रह गया जो स्वतंत्रता-आन्दोलन के दिनों में था। आज वह कसौटी सर्वथा बदल गई है। उन दिनों देशभक्ति का तकाजा था ‘राष्ट्र की मुक्ति‘।
आज राष्ट्र के प्रत्येक ईमानदार नागरिक अर्थात देश-भक्ति का दायित्व है कि स्वदेश की सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति आस्थावान होकर क्षेत्रीयता, जातीयता, धार्मिकता तथा भाषावाद जैसी विभेदसूचक दुष्प्रिवृतियाँ का विनाश करे तथा राष्ट्रीय एकता की भावना को सुदृढ़ बनाए। स्वतंत्रता पूर्व हमने देश-प्रेम से अभिभूत होकर विदेशियों से संघर्ष करना है, जो शायद कहीं अधिक कठिन कार्य है। स्वदेश प्रेमी राष्ट्रोन्नति के लिए प्रयत्नशील होता है तथा भारत की उन्नति तभी संभव है जब हम विभिन्नताओं में जीना सीखें और उनके बीच से जातीय व्यक्तित्व का गठन करें।
जिस देश में आज भी 30-40 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हों, वहां स्वदेश प्रेम की भावना कितनी-शिथिल होगी, यह समझने की बात है। आज हमारी मातृभूमि शोषण और भ्रष्टाचार की बुरी तरह शिकार है। बेकारी और अशिक्षा की पीड़ा से भी वह जर्जर है। इन कमियों को दूर कर ही देश का उत्थान सोचा जा सकता है। आज भी हमारे स्वदेश प्रेम की मांग है- ‘देश को सबल बनाने की चेष्टा करना।‘
देश-प्रेम पर बलिदान होने वालों को राष्ट्र युगों तक याद करता है। हमारे देश में प्रतिवर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को देश सेवा में विशिष्ट कार्य करने वालों को राष्ट्रपति पद्यभूषण, पद्याश्री एवं अन्य पुरसकारों से सम्मानित करते हैं। हमें हमेशा इन सूक्तियों को स्मरण रखना चाहिए-
शहीदों की मजारों पर लगेंगं हर बरस मेले।
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।।
देश सर्वोपरि है, देश का नागरिक नहीं। देश की गरिमा को बचाने के लिए जो सदा सचेष्ट, सजग और तत्पर है वह निश्चय की देशभक्त है। प्रेम एक ऐसा महामंत्र है जो परिवार-प्रेम, जाति-प्रेम, मित्र-प्रेम और देश-प्रेम आदि अनेक रूपों में प्रकट होता है। जिनमें स्वदेश-प्रेम सर्वोत्तम माना गया है।